एक दिन दादा जी घर में उदास बैठे थे। दादा जी को उदास बैठे देखकर बच्चे ने पूछ ही लिया कि क्या बात है दादा जी आप इतने उदास क्यों हो?
दादा जी ने कहा बेटा कुछ नहीं बस यूँही अपनी जि़ंदगी के बारे में सोच रहा था। बच्चे ने कहा दादा जी मुझे भी बताओ अपनी जि़ंदगी के बारे में।
दादा जी थोड़ी देर सोचते रहे और फिर उन्होंने कहा कि जब मैं छोटा था तब मेरे ऊपर किसी भी प्रकार की जि़म्मेदारियां नहीं थी और मेरी कल्पनाओं की भी कोई सीमा नहीं थी। मैं तब दुनिया बदलने के बारे में सोच रहा था।
जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ तब मेरे में पहले से ज्य़ादा बुद्धि बढ़ गयी थी और उसके साथ ही मेरी सोच भी बदलने लगी थी। मैं सोचने लगा कि दुनिया बदलना तो बहुत मुश्किल है। इसलिए मैंने मेरे लक्ष्य को थोड़ा छोटा कर दिया और मैंने ये सोचा कि मैं दुनिया नहीं बल्कि सिर्फ अपने देश को बदलूँगा।
मैं थोड़ा और बड़ा हुआ और समय भी बीता तब मुझे अपने देश को बदलना भी मुश्किल लग रहा था। मैंने सोचा कि देश में बदलाव लाना कोई मामूली बात नहीं है और मैंने अपना लक्ष्य और भी छोटा कर दिया।
मैंने अब तय किया कि मैं सिर्फ अपने परिवार और करीबी लोगों को बदलूंगा। पर समय बीतता चला गया और अफसोस मैंं वो भी नहीं कर पाया।
अब तो मैं सिर्फ इस दुनिया में कुछ ही दिनों का मेहमान रहा हूँ। आज मुझे ये एहसास होता है कि अगर मैंने केवल खुद को बदलने का सोचा होता तो मैं ऐसा ज़रूर कर पाता और शायद मुझे देखकर मेरा परिवार भी बदल जाता और उनसे प्रेरणा लेकर देश भी बदल जाता और तब शायद मैं इस दुनिया को भी बदल पाता।
इतना बोलते-बोलते दादा जी की आँखें नम हो जाती हैं और वो अंत में बच्चे से बोले कि तुम बेटा ऐसी गलती मत करना। तुम कुछ और बदलने से पहले स्वयं अपने आप को बदलना। अगर तुम अपने आप को बदलोगे तो दुनिया अपने आप बदल जाएगी।
वैसे तो हम सभी में दुनिया बदलने की ताकत होती है पर उसकी शुरुआत खुद से ही करनी होती है। अगर हमें दुनिया में बदलाव देखना है तो हमें सबसे पहले अपने आप को ही बदलना होगा। हमें अपने आप को और भी बेहतर बनाना होगा और अपने रवैये को सकारात्मक बनाना होगा।
जो चीज़ हम दूसरों में बदलाव चाहते हैं वो हमें पहले खुद अपने आप में बदलनी होगी। हम तभी दूसरों को बदलने में कामयाब रहेंगे।