पूर्वजों की दास्तान सुनो

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कहा जाता है कि जब कभी किसी के अहले खानदान की बात की जाती है तो हमेशा उसके व्यवहार को देखकर, वर्तमान स्थिति को देखकर कहा जाता है कि इनके पूर्वज ऐसे ही थे। लेकिन आज अगर हमारे व्यवहार में, हमारी एक-एक चीज़ में परिवर्तन आया है तो कहा जाता है कि इनके पूर्वज ऐसे ही होंगे। दोनों स्थितियों को वर्तमान में देखते हैं और ये किसी से छुपा नहीं है कि कोई भी चीज़ को बताने के लिए इतिहास का सहारा लिया जाता है। तो इतिहास हमेशा सभी का रहा है। दुनिया में कहते हैं अंग्रेजी में एक कहावत है, लेकिन उसका हिन्दी में अनुवाद ये है कि क्रबिना बैकग्राउंड के कोई पिक्चर नहीं होतीञ्ज। तो इसका अर्थ ये हुआ ना कि सबके पीछे कोई न कोई बैकग्राउंड है। हर विचार के पीछे कोई न कोई उसकी भूमिका है। नहीं तो वो विचार हमारे अन्दर पनपता ही नहीं। तो ऐसे ही हम सभी जो वर्तमान समय में या ध्यान, योग अभ्यास करते हैं उसमें परमात्मा हमें बार-बार एक बात पर विशेष फोकस करते हैं। वो कहते हैं कि अपने पूर्वजपन के संस्कार को इमर्ज करो। कि तुम जब पूर्वज थे, जब तुम पहले ऐसे थे तो तब तुम्हारी स्थिति क्या थी? तुम ऐसे नहीं थे। तुम साधारण नहीं थे। तुम्हारी सोच बहुत अच्छी थी, उम्दा(श्रेष्ठ) थी। तुम हमेशा से अच्छे रहे हो। तो इस सोच के साथ तुम धीरे-धीरे अपने वर्तमान को भी सुधार सकते हो।
पूर्वजों को आपने देखा होगा कि लोग पूजते हैं, भक्ति में। जाने के बाद उनकी बर्सी मनाई जाती है। बीच-बीच में उनके आधार से कुछ ऐसे त्योहार भी रखे हैं ताकि उनको याद करके, उनके संस्कारों को हम इमर्ज करके फिर से वैसी स्थिति बनायें। लेकिन आज के समय में सिर्फ वो त्योहार तक ही सीमित है। उसका वर्तमान के साथ कोई सरोकार रह नहीं गया। लेकिन अभ्यास में ये चीज़ शामिल करने से देखो फायदा क्या होगा! कहा जाता है कि जो पूरा सृष्टि चक्र बना इसके अन्दर परमात्मा हम सबको सिखाते हैं कि जितने भी धर्म आये, धर्म पितायें आये, इन सबने आ करके परमात्मा के बारे में बताया और हम सब आत्मायें जो परमात्मा के इस ज्ञान को पूरी तरह से याद करके, फॉलो करके आगे बढ़ रहे हैं उनके अन्दर जब ये भाव पैदा हुआ कि हम सभी सबसे पहले आये। तो हम सबके अन्दर एक चीज़ परमात्मा ने पैदा कर दी वो है माफ करने के संस्कार, माफी देने के संस्कार, कि अगर मैं पहले आया तो मैं सबका पूर्वज हो गया। ये सारी चीज़ें बाद में हुईं, बाद में सब आये तो इसका मतलब हम उनके पूर्वज हो गए।
आज वर्तमान में वो भी हैं और हम भी हैं क्योंकि कई सारे जन्म हमने लिए। आज वो वाली स्थिति देखकर कि हमारे पुराने स्वरूप को परमात्मा ने याद दिलाकर अच्छा बनाया। तो कहा उनको देखकर जो हमारे अन्दर विचार चलते हैं कि आज हर धर्म में कितनी सारी गिरावट आ गई है। आज देखो लोग क्या-क्या कर रहे हैं। तो उसको देखकर हमारे थॉट चल जाते हैं, हमारे अन्दर की स्थिति बदल जाती है, हमारे विचार बदल जाते हैं, हमारी भावनायें बदल जाती हैं और उससे हमारी स्थिति खराब हो जाती है। तो जब हम बार-बार इस स्थिति को इमर्ज करते हैं, बार-बार अपने आपको पूर्वज मानते हैं तो उनको स्वीकार करना इज़ी हो जाता है। उनको एक्सेप्ट करना इज़ी हो जाता है कि नहीं हम इनको तभी बदल सकते हैं जब अपने उस संस्कार को इमर्ज कर पायेंगे, ले पायेंगे या रख पायेंगे कि मैं सच में पुरानी आत्मा हूँ। पहले से हम इस धरती पर आये थे। धीरे-धीरे आज हम इतने वीक हो गये, कमज़ोर हो गये कि आज हम किसी को स्वीकार नहीं कर पा रहे।
तो बीज परमात्मा है, हम उसके बच्चे हैं। और हम बच्चों को परमात्मा ने कहा कि अगर अपने आपको हमेशा इस कल्प वृक्ष में सबसे नीचे मानेंगे तो आप आने वाली आत्माओं को स्वीकार कर पायेंगे। और उनको फिर से उन्हीं संस्कारों में ले आ पायेंगे जैसा आप चाहते हैं। तो इसको आप प्रैक्टिकल व्यवहार में भी यूज़ कर सकते हैं। जो भी आपके साथ घर में रह रहा है, ऑफिस में रह रहा है, आस-पास रह रहा है उनको भी यही मान के कि मैं सबसे पहले कोई चीज़ को अगर फॉलो करूँ, सबसे पहले इस चीज़ को समझूं तो दूसरों को स्वीकार करना, दूसरों के साथ रहना, दूसरों के साथ जीना आसान हो जायेगा। और उससे हमारे संस्कार में भी बदलाव आ जायेगा। और जो भी हमारे साथ रहेगा उसको परिवर्तन करने का एक आधार मिलेगा और एक स्पेस भी मिलेगा कि नहीं, मुझे स्पेस दे रहे हैं बदलने के लिए। तो ऐसे पूर्वजपन की स्थिति में आने के बाद हम सभी, सभी आत्माओं को पूरी तरह से स्वीकार करके उनको आगे बढ़ा सकते हैं और खुद भी आगे बढ़ सकते हैं।

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