मोह के मोह जाल में न फँसें…

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अब परिवार जहाँ बहुत प्यार होता है बचपन से, वो एक ऐसा सम्बंध है जिसको नकारा नहीं जा सकता, उसको छोड़ा नहीं जा सकता है। और आजकल तो कहीं-कहीं दुविधा ये भी हो गयी है कि लोग न निभा सकते और न छोड़ सकते। क्या करें हम ?

व्यर्थ संकल्प मनुष्य की खुशी के शत्रु हैं। जो श्रेष्ठ ज्ञानी और योगी व्यर्थ संकल्पों पर विजय प्राप्त कर लेता है, वो बन जाता है विजय माला का चमकता हुआ मणका। क्योंकि व्यर्थ संकल्पों को छोड़े बिना योगयुक्त स्थिति तो बन नहीं सकती। हम लगातार चर्चा कर आ रहे हैं और सभी को पूर्ण विश्वास है कि व्यर्थ संकल्पों के प्रकोप को धीमा करते-करते, उन्हें नष्ट करेंगे। आज हम ले रहे हैं मोह के कारण कितने संकल्प चलते हैं मनुष्य को। अब मोह एक ऐसी चीज़ है जो बड़ा नैचुरल है लाइफ में। एक माँ का अपने बच्चों से मोह, पति-पत्नी के बीच मोह कॉमन-सी बात है, इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं और कोई ये भी नहीं कह सकता कि नहीं होना चाहिए, वो तो होता ही है। वस्तुओं में मोह, जो चीज़ हमारे पास है, साधन है उनमें मनुष्य की आसक्तियां रहती हैं। मोह मनुष्य को दु:ख भी बहुत देता है और मन पर एक बुरा प्रभाव भी डालता है।
मान लो माँ के दो बच्चे हैं, बड़े हो रहे हैं, प्यार से रहते हैं, आज्ञाकारी बनकर रहते हैं। माँ को सम्मान देते हैं तो माँ बहुत प्रसन्न रहेगी, गौरवान्वित होगी और यदि वो विरोध करने लगें, यदि वो उल्टा-सुल्टा जवाब देने लगे यानी अनादर करने लगें तो फिर सभी जानते हैं क्या होता है। अब ये व्यर्थ संकल्पों का प्रकोप क्योंकि जिससे इमोशनली मनुष्य जुड़ा रहता है, भावनाओं के साथ जुड़ा रहता है। उसकी हर चीज़ का गहरा प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है। अब परिवार जहाँ बहुत प्यार होता है बचपन से, वो एक ऐसा सम्बंध है जिसको नकारा नहीं जा सकता, उसको छोड़ा नहीं जा सकता है। और आजकल तो कहीं-कहीं दुविधा ये भी हो गयी है कि लोग न निभा सकते और न छोड़ सकते। क्या करें हम? मोह की रस्सियों को जब तक हम ढीला नहीं करेंगे, ये मोह से उठने वाले संकल्प-विकल्प, व्यर्थ संकल्प हमें परेशान करते ही रहेंगे, हमें दु:खी करते ही रहेंगे और जो मनुष्य दु:खों में होता है उसके मन में विचार तो कम चलते हैं पर न जाने वो क्या सोच लेता है? आजकल बहुत केस हो रहे हैं अचानक मृत्यु और बहुत ही परिवारों को इस बड़ी त्रासदी(दु:ख) से गुजरना पड़ रहा है। किसी का पति जा रहा है, किसी का कोई जा रहा है, समय का प्रकोप चल रहा है। हम देखते हैं उन माताओं की, पिताओं

की उदासीनता, कैसे उदास हो जाते हैं। अकेलापन लगने लगता है, संसार असार लगने लगता है। क्या करें अब? इस स्थिति में संकल्प ज्य़ादा नहीं होते, लेकिन एक सदमा बैठ जाता है। ये बहुत प्रैक्टिकल बातें हैं, असर आता है। हम ये तो बिल्कुल नहीं कह सकते कि असर नहीं आना चाहिए। आना तो नहीं चाहिए लेकिन इसके लिए तो बहुत परिपक्व स्थिति की ज़रूरत है। हम अपने मोह को आत्मिक प्रेम में बदलते चलें और ज्ञान की पराकाष्ठा को प्राप्त करें। बिना उसके ये अटैचमेंट बहुत कष्ट देगा। वस्तुओं में है, जिन वस्तुओं को, पदार्थों को मनुष्य कमाकर उनका सृजन करता है। बाज़ार से खरीद के लाता है। मेहनत करके, कमाई करके वो चीज़ें प्राप्त की हैं। उसमें मनुष्य की आसक्ति होना बड़ा स्वाभाविक है। अगर वो चली जाये, वो छीन जाये, तो व्यर्थ संकल्पों का बोझ मनुष्य को बेचैन करने लगता है।
किसी के बच्चे अच्छे नहीं निकले, कहीं गलत अफेअर में फँस जायें, कहीं बुरे संग में फँस जायें। बदनामी का डर, भविष्य क्या होगा? बहुत बुरा हाल हो जाता है। तो व्यर्थ संकल्पों का एकदम प्रकोप हो जाता है। उसका जीवन पर बहुत बुरा असर पड़ता है। हम ज्ञान का प्रयोग करेंगे। ज्ञान के प्रयोग से इन बातों को थोड़ा हल्का करेंगे। सम्बंधों में मोह तो होता ही है। लेकिन हम ये न भूलें सबका पार्ट भी अपना-अपना है। सबका भाग्य भी अपना-अपना है। हमसे उनका नाता भी कभी अच्छा है, कभी बुरा है। एक निश्चित समय तक किसी का नाता रहता है। जब वो समय पूरा हो जाता है तो व्यक्ति छोड़कर चल देता है। कोई प्रियजन घर से चला गया, आ नहीं रहा है कितने संकल्प चलते हैं। माताओं के बच्चें स्कूल में चले गये आज एक घंटा हो गया आने के टाइम से, आये नहीं हैं माता की धड़कन तेज़ हो जाती है। संकल्प-विकल्प बहुत चलने लगते हैं, कहीं कुछ हो तो नहीं गया उन्हें? किसी ने टक्कर तो नहीं मार दी और फिर इससे जुड़े हुए हज़ारों संकल्प। हमारे जो बहुत संकल्प चलते हैं उनको ठीक करके हम कुछ सुंदर संकल्प मन में क्रियेट करें।
एक बात जो आप ने बहुत सुनी होगी। मेरे साथ सब कुछ बहुत अच्छा होगा। कइयों के लोग खो जाते हैं, कोई बेहोश कर देता है, इधर-उधर भटक जाते हैं, एकदम हाहाकार हो जाता है। जब इसका थोड़ा भी आभास होता है, लेकिन मेरे साथ सब कुछ बहुत अच्छा होगा। बाबा बैठा है उल्टे को भी सीधा कर देगा। मुझे अपने शिवबाबा पर पूर्ण विश्वास है। ऐसे नशे में रहकर हम अच्छे संकल्प जितने चलायेंगे, उतना मन हल्का होगा। और हम देखेंगे कि समस्या भी खत्म होती जाती है। याद रखेंगे जितना पॉजि़टिव सोचेंगे उतनी समस्याओं का समाधान होगा। हम भी व्यर्थ से बचेंगे और समस्या भी ठीक हो जायेगी।

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