अभी वायुमण्डल व वातावरण देख कहाँ-कहाँ अपनी रूपरेखा बदल देते हो। इसलिए सफलता कब कैसे, कब कैसे दिखाई देती है। जबकि कलियुग अंत की आत्माएं अपनी सत्यता को प्रसिद्ध करने के लिए निर्भय होकर स्टेज पर आती हैं तो पुरूषोत्तम संगमयुगी सर्वश्रेष्ठ आत्माएं अपने को सत्य प्रसिद्ध करने में वायुमण्डल प्रमाण रूपरेखा क्यों बनाती हैं? आप मास्टर रचयिता हो ना! वह सभी रचना हैं ना! रचना को मास्टर रचयिता कैसे देखेंगे? जब मास्टर रचता के रूप में स्थित होकर देखेंगे तो फिर यह सभी कौन-सा खेल दिखाई देगा? कौन-सा दृश्य देखेंगे? जब बारिश होती है तो बारिश के बाद कौन-सा दृश्य देखते हैं? मेंढ़क थोड़े से पानी में महसूस ऐसे करते हैं जैसे सागर में हैं। ट्र्रां-ट्रां… करते नाचते रहते हैं। लेकिन है वह अल्पकाल सुख का पानी। तो यह मेंढ़कों की ट्रां-ट्रां करने और नाचने-कूदने का दृश्य दिखाई देगा, ऐसे महसूस करेंगे कि यह अभी-अभी अल्पकाल के सुख में फूलते हुए गये कि गये। तो मास्टर रचयिता की स्टेज पर ठहरने से ऐसा दृश्य दिखाई देगा। कोई सार नहीं दिखाई देगा। बिगर अर्थ बोल दिखाई देंगे। तो सत्यता को प्रसिद्ध करने की हिम्मत और उल्लास आता है? सत्य को प्रसिद्ध करने का उमंग आता है कि अभी समय पड़ा है? क्या अभी सत्य को प्रसिद्ध करने में समय पड़ा है? फलक भी हो और झलक भी हो। ऐसी फलक हो जो महसूस करें कि सत्य के सामने हम सभी के अल्पकाल के यह आडम्बर चल नहीं सकेंगे। जैसे स्टेज पर ड्रामा दिखाते हैं ना! कैसे विकार विदाई ले हाथ जोड़ते, सिर झुकाते हुए जाते हैं! यह ड्रामा प्रैक्टिकल विश्व की स्टेज पर दिखाना है। अब यह ड्रामा की स्टेज पर करने वाला ड्रामा, बेहद के स्टेज पर लाओ। इसको कहा जाता है सर्विस। ऐसे सर्विसएबुल विजयी माला के विशेष मणके बनते हैं। तो ऐसे सर्विसएबुल बनना पड़े। अभी तो यह प्रैक्टिस कर रहे हैं। पहले प्रैक्टिस की जाती है तो छोटे-छोटे शिकार किए जाते हैं, फिर होता है शेर का शिकार। लास्ट प्रैक्टिकल पार्ट हू-ब-हू ऐसे देखेंगे जैसे यह छोटा ड्रामा। तब एक तरफ जयजयकार और एक तरफ हाहाकार होगी। दोनों एक ही स्टेज पर।