अपने ज्ञान-योग के पंखों को चेक करते रहें..

0
181

कोई चीज़ बढिय़ा हो उसको सम्भाल के रखा भी हो परन्तु वो समय पर काम में नहीं आवे तो उसकी क्या वैल्यू? हमारे लिए तो वो बेकार ही हुई ना! ज्ञान सुनते-सुनते शक्तियों की परिभाषा जो आपके पास है, उसे मनन करके यूज़ करो तो समय पर आपको काम में आयेंगी। समय पर शक्ति इमर्ज होगी। तो यह प्रैक्टिस करो, समय पर मेरी शक्ति काम में आती है या नहीं? तो एक सहनशक्ति को धारण करना है क्योंकि उसके बिना गति नहीं है। दूसरा समाने की शक्ति भी आपको बहुत चाहिए।
हर एक अपने पंखों को पहले चेक करो- ज्ञान और योग की दोनों ही सब्जेक्ट मेरी ठीक है? जब मैं उडऩा चाहूँ तब उड़ सकता हूँ? हमारे ज्ञान की तलवार की धार बड़ी तेज होनी चाहिए और इस ज्ञान की तलवार को केवल म्यान में ही रख करके खुश नहीं हो जाओ बल्कि हमेशा अपनी इस तलवार को देखते रहो तो समय पर काम में आ सकेगी।
अन्त में यह पांचों तत्व आंधी, तूफान, आग, पृथ्वी का हिलना… यह सब इक_ा काम करेंगे तो सोचो उस समय हमारी कैसी स्थिति होनी चाहिए? अभी तो फिर भी ठीक है, कहीं कुछ, कहीं कुछ होता है तो एक-दो के सहारे से, स्थान के सहयोग से अपने को फिर भी बचा रहे हैं। लेकिन जब पांच तत्व ही एक साथ काम करेंगे तो अन्त में ऐसा कोई सहारे का स्थान नहीं मिलेगा। उस समय तो हमारी यही तैयारी काम आयेगी कि फरिश्ता बनके उड़ जायें, बस।
अन्त समय के लिए अभी तो अशरीरी बनने का अभ्यास करो। अशरीरी माना शरीर में होते हुए भी शरीर का भान न हो। शरीर के सम्बन्ध व पदार्थों के तरफ बार-बार मन का खिंचाव न हो। इसके लिए जितना समय चाहे, जहाँ चाहे उतना समय हमारा मन वहाँ ही रहे, यह अभ्यास चाहिए और यह अभ्यास सारे दिन में भी बीच-बीच में करते रहो।
अभी-अभी बॉडी कॉन्सेस, अभी-अभी सोल कॉन्सेस और अभी-अभी बाबा की याद। बहुतकाल युद्ध के अभ्यासी होंगे तो चन्द्रवंशी में पहुँचेंगे। फिर पहले युग का सुख तो ले ही नहीं पायेंगे। तो ब्रह्माकुमार बनके क्या किया? बी.के. बने हैं तो बाबा से पूरा वर्सा लेना चाहिए। अगर योग में मेहनत व युद्ध है तो कर्मातीत व अशरीरी स्थिति का अनुभव नहीं कर सकेंगे। फिर अन्त में आप युद्ध में ही जायेंगे क्योंकि अन्तकाल तो किसका पूछकर नहीं आयेगा।
बाबा ने कहा है कि सबकुछ अचानक ही होने वाला है इसलिए एवररेडी रहो। जो एवररेडी रहेंगे वही पास होंगे। कल क्या होगा, कुछ भी हो सकता है, इतना एवररेडी हमको रहना चाहिए। इसके लिए मम्मा का एक फेवरेट स्लोगन था कि हर घड़ी हमारी अन्तिम घड़ी है। अन्तिम घड़ी में और कोई बात याद नहीं हो।
कभी भी, कुछ भी हो सकता है लेकिन मैं रेडी हूँ? मैं सेकण्ड में उड़ सकती हूँ या टाइम लगेगा! बाबा को उल्हना देंगे या बाबा से मदद मिलने लिए बाबा को याद करेंगे! लेकिन बाबा ने कहा है कि हिम्मत वाले को मदद मिलेगी। हिम्मत माना योग ठीक हो, विजयी हो।
विजयी को मदद नहीं मिले, यह नहीं हो सकता है।
याद का टाइम बॉक्स बनाओ। एक-एक मिनट करके 10 मिनट हो जायेंगे तो हमारी लिंक जुटी रहेगी, हर घण्टे में 5 मिनट, 2 मिनट जितना समय निकाल सकते हो, उतना निकालने का अभ्यास करके बाबा को याद करो। बीच-बीच में चेक भी करो कि हमारा सारे दिन में याद का लिंक जुटा रहा? निरन्तर याद का अभ्यास बढ़ाओ तो अन्त में उसकी मदद मिलेगी।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें