आपने अपने आस-पास ऐसे कई लोगों को देखा होगा जो ज़रूरत से ज्य़ादा बोलते हैं, हमेशा वे बहुत तेजी में रहते हैं या फिर बहुत जल्दी कोई निर्णय ले लेते हैं। इसी तरह कुछ लोग बैठे हुए भी पैर हिलाते रहते हैं। दरअसल ये सारे लक्षण वात प्रकृति वाले लोगों के हैं। अधिकांश वात प्रकृति वाले लोग आपको ऐसे ही करते नज़र आयेंगे। आयुर्वेद में गुणों और लक्षणों के आधार पर प्रकृति का निर्धारण किया गया है। आप अपनी आदतों या लक्षणों को देखकर अपनी प्रकृति का अंदाज़ा लगा सकते हैं। इस लेख में हम आपको वात प्रकृति के गुण, लक्षण और इसे संतुलित रखने के उपाय के बारे में विस्तार से बता रहे हैं…
वात दोष क्या है
वात दोष ‘वायु’ और ‘आकाश’ इन दो तत्वों से मिलकर बना है। वात या वायु दोष को तीनों दोषों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। हमारे शरीर में गति से जुड़ी कोई भी प्रक्रिया वात के कारण ही संभव है। चरक संहिता में वायु को ही पाचक अग्नि बढ़ाने वाला, सभी इन्द्रियों का प्रेरक और उत्साह का केंद्र माना गया है। वात का मुख्य स्थान पेट और आंत में है।
वात में योगवाहिता या जोडऩे का एक खास गुण होता है। इसका मतलब है कि यह अन्य दोषों के साथ मिलकर उनके गुणों को भी धारण कर लेता है। जैसे कि जब यह पित्त दोष के साथ मिलता है तो इसमें दाह, गर्मी वाले गुण आ जाते हैं और जब कफ के साथ मिलता है तो इसमें शीतलता और गीलेपन जैसे गुण आ जाते हैं।
वात के गुण
रूखापन, शीतलता, लघु, सूक्ष्म, चंचलता, चिपचिपाहट से रहित और खुरदरापन वात के गुण हैं। रूखापन वात का स्वाभाविक गुण है। जब वात संतुलित अवस्था में रहता है तो आप इसके गुणों को महसूस नहीं कर सकते, लेकिन वात के बढऩे या असंतुलित होते ही आपको इन गुणों के लक्षण नज़र आने लगेंगे।
वात प्रकृति की विशेषताएं
आयुर्वेद की दृष्टि से किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य और रोगों के इलाज में उसकी प्रकृति का विशेष योगदान रहता है। इसी प्रकृति के आधार पर ही रोगी को उसके अनुकूल खानपान और औषधि की सलाह दी जाती है।
वात दोष के गुणों के आधार पर ही वात प्रकृति के लक्षण नज़र आते हैं। जैसे कि रूखापन गुण होने के कारण भारी आवाज़, नींद में कमी, दुबलापन और त्वचा में रूखापन जैसे लक्षण होते हैं। शीतला गुण के कारण ठंडी चीज़ों को सहन ना कर पाना, जाड़ों में होने वाले रोगों की चपेट में जल्दी आना, शरीर कांपना जैसे लक्षण होते हैं। शरीर में हल्कापन, तेज चलने में लडख़ड़ाने जैसे लक्षण लघुता गुण के कारण होते हैं।
इसी तरह सिर के बालों, नाखूनों, दांत, मुंह और हाथों-पैरों में रूखापन भी वात प्रकृति वाले लोगों के लक्षण हैं। स्वभाव की बात की जाए तो वात प्रकृति वाले लोग बहुत जल्दी कोई निर्णय लेते हैं। बहुत जल्दी गुस्सा होना या चिढ़ जाना और बातों को जल्दी समझकर फिर भूल जाना भी वात प्रकृति वाले लोगों के स्वभाव में होता है।
वात बढ़ जाने के लक्षण
वात बढ़ जाने पर शरीर में तमाम तरह के लक्षण नज़र आते हैं। आइये उनमें से कुछ प्रमुख लक्षणों पर एक नज़र डालते हैं…
अंगों में रूखापन और जकडऩ
सुई के चुभने जैसा दर्द
हड्डियों के जोड़ों में ढीलापन
हड्डियों का खिसकना और टूटना
अंगों में कमज़ोरी महसूस होना एवं अंगों में कंपकपी
अंगों का ठंडा और सुन्न होना
कब्ज
नाखून, दांतों और त्वचा का फीका पडऩा
मुंह का स्वाद कड़वा होना
अगर आपमें ऊपर बताए गए लक्षणों में से 2-3 या उससे ज्य़ादा लक्षण नज़र आते हैं तो यह दर्शाता है कि आपके शरीर में वात दोष बढ़ गया है। ऐसे में नज़दीकी चिकित्सक के पास जाएं और अपना इलाज करवाएं।
वात को संतुलित करने के उपाए
वात को शांत या संतुलित करने के लिए आपको अपने खानपान और जीवनशैली में बदलाव लाने होंगे। आपको उन कारणों को दूर करना होगा जिनकी वजह से वात बढ़ रहा है। वात प्रकृति वाले लोगों को खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए जैसे…
घी, तेल और फैट वाली चीज़ों का सेवन करें।
गेहूं, तिल, अदरक और गुड़ से बनी चीज़ों का सेवन करें।
नमकीन छाछ, मक्खन, ताजा पनीर, उबला हुआ गाय के दूध का सेवन करें।
घी में तले हुए सूखे मेवे खाएं या फिर बादाम, कद्दू के बीज, तिल के बीज, सूरजमुखी के बीजों को पानी में भिगोकर खाएं।
खीरा, गाजर, चुकंदर, पालक, शकरकंद आदि सब्जियों का नियमित सेवन करें।
मूंग दाल, राजमा, सोया दूध का सेवन करें।
वात प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए
अगर आप वात प्रकृति के हैं तो निम्नलिखित चीज़ों के सेवन से परहेज करें…
साबुत अनाज जैसे कि बाजरा, जौ, मक्का, ब्राउन राइस आदि के सेवन से परहेज करें।
किसी भी तरह की गोभी जैसे कि पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली आदि से परहेज करें।
जाड़ों के दिनों में ठंडे पेय पदार्थों जैसे कि कोल्ड कॉफी, ब्लैक टी, ग्रीन टी, फलों के जूस आदि ना पियें।
नाशपाती, कच्चे केले आदि का सेवन न करें।
जीवनशैली में बदलाव
जिन लोगों का वात अक्सर असंतुलित रहता है उन्हें अपने जीवनशैली में ये बदलाव लाने चाहिए।
एक निश्चित दिनचर्या बनाएं और उसका पालन करें…
रोज़ाना कुछ देर धूप में टहलें और आराम भी करें।
किसी शांत जगह पर जाकर रोज़ाना ध्यान करें।
गुनगुने तेल से नियमित मसाज करें, मसाज के लिए तिल का तेल, बादाम का तेल और जैतून के तेल का इस्तेमाल करें।
मजबूती प्रदान करने वाले व्यायामों को रोजाना की दिनचर्या में ज़रूर शामिल करें।
वात में कमी के लक्षण और उपचार
वात मे बढ़ोतरी होने की ही तरह वात में कमी होना भी एक समस्या है और इसकी वजह से भी कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं। आइए पहले वात में कमी के प्रमुख लक्षणों के बारे में जानते हैं।
वात में कमी के लक्षण
बोलने में दिक्कत
अंगों में ढीलापन
सोचने समझने की क्षमता और याद्दाश्त में कमी
वात के स्वाभाविक कार्यों में कमी
पाचन में कमज़ोरी
जी मिचलाना
उपचार
वात की कमी होने पर वात को बढ़ाने वाले आहार का सेवन करना चाहिए। कड़वे, तीखे, हल्के एवं ठंडे पेय पदार्थों का सेवन करें। इनके सेवन से वात जल्दी बढ़ता है। इसके अलावा वात बढऩे पर जिन चीज़ों के सेवन की मनाही होती है। उन्हें खाने से वात की कमी को दूर किया जा सकता है।
साम और निराम वात
हम जो भी खाना खाते हैं उसका कुछ भाग ठीक से पाच नहीं पता है और वह हिस्सा मल के रूप में बाहर निकलने की बजाय शरीर में ही पड़ा रहता है। भोजन के इस अधपके अंश को आयुर्वेद में क्रआम रसञ्ज या क्रआम दोषञ्ज कहा गया है।
जब वात शरीर में आम रस के साथ मिल जाता है तो उसे साम वात कहते हैं। साम वात होने पर निम्नलिखित लक्षण नज़र आते हैं।
मल-मूत्र और गैस बाहर निकालने में दिक्कत
पाचन शक्ति में कमी
हमेशा सुस्ती या आलस महसूस होना
आंत में गुडगुडाहट की आवाज़
कमर दर्द
यदि साम वात का इलाज ठीक समय पर नहीं किया गया तो आगे चलकर यह पूरे शरीर में फैल जाता है और कई बीमारियां होने लगती हैं।
जब वात, आम रस युक्त नहीं होता है तो यह निराम वात कहलाता है। निराम वात के प्रमुख लक्षण त्वचा में रूखापन, मुंह जीभ का सूखना आदि है इसके लिए तैलीय खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करें।
अगर आप वात प्रकृति के हैं और अक्सर वात के असंतुलित होने से परेशान रहते हैं तो ऊपर बताए गए नियमों का पालन करें। यदि समस्या ठीक ना हो रही हो या गंभीर हो तो किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें।