हर कर्म को श्रेष्ठ बनाने लिए उसमें परमात्मा की याद ज़रूरी

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जो आत्माएं सिर्फ परमात्मा को याद करती हैं उनके अंदर परमात्मा की दिव्यता, उनका प्यार और परमात्मा की सर्व शक्तियां समाने लगती हैं, मानो उनकी मन की स्थिति वैसी बन जाती है। और उन्हीं आत्माओं को देवी-देवता कहते हैं।

हम बचपन से सुनते आ रहे हैं कि भगवान को याद करो। प्रश्न उठता है कि क्यों हम सिर्फ भगवान को याद करें, क्यों जाप करें? क्या कारण है कि हम सब कुछ करते हुए उन्हीं को याद करें।
अगर हमें यही समझ में नहीं आया कि क्यों सारा दिन भगवान को याद करना चाहिए तो प्रश्नों के जवाब मिलना मुश्किल है। थोड़ा गहराई में उतरने की कोशिश करते हैं। विज्ञान ने और अनुभव ने एक चीज़ प्रत्यक्ष बताई है कि हम जिसको याद करते हैं उनकी मन की स्थिति, हमारे मन की स्थिति के साथ जुड़ जाती है। जैसा वो महसूस कर रहे होते हैं, हम वही महसूस करना शुरू कर देते हैं। हम सबने अनुभव किया होगा कि अगर घर का कोई सदस्य किसी मुश्किल में होता है तो दूर होने के बावजूद भी हमें पता चल जाता है। विज्ञान और अनुभव कहता है कि जिसको हम याद कर रहे हैं, अगर वो तनाव में हैं, परेशान हैं, डर में हैं, तो हमारे मन की स्थिति पर भी वो उदासी, दु:ख के वायब्रेशन आ जाएंगे। और हम कहेंगे कि पता नहीं मुझे अच्छा क्यों नहीं लग रहा। क्योंकि हमने किसी को याद किया है, जिसका मन किसी कारण से दु:खी है।
अगर हम निराकार परमात्मा शिव को याद करेंगे जो पवित्रता-ज्ञान-शांति का सागर है, तो हमारे मन की स्थिति उनके साथ जुड़ जाएगी। जब हमारी मनोस्थिति उनके साथ जुड़ जाएगी तब हम उनके जैसा बनने लग जाएंगे। जो आत्माएं सिर्फ परमात्मा को याद करती हैं उनके अंदर परमात्मा की दिव्यता, उनका प्यार और परमात्मा की सर्व शक्तियां समाने लगती हैं, मानो उनकी मन की स्थिति वैसी बन जाती है। और उन्हीं आत्माओं को देवी-देवता कहते हैं। वही आत्माएं सोलह कला सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम बन जाती हैं। क्योंकि वो सर्वशक्तिवान परमात्मा को याद करती हैं। उठते-बैठते, खाते-पीते हर कर्म करते हुए मन में सिर्फ परमात्मा की याद बसी है।

हर कर्म में ईश्वर का ध्यान हो
जब मन में सिर्फ एक का ज्ञान और एक की याद रहती है, तो हम जो कर्म करते हैं उसमें परमात्मा की पवित्रता, परमात्मा का ज्ञान प्रत्यक्ष दिखाई देने लगता है। जब हर कर्म परमात्म ज्ञान के आधार से होगा, तब हमारा हर कर्म सर्वश्रेष्ठ बन जाएगा। हमारा हर संस्कार, दिव्य संस्कार बन जाएगा। तो अब जाकर समझ में आया कि किसको याद करना है, कैसे और क्यों याद करना है? जब तक इन तीन बातों की स्पष्टत: नहीं आती तो वो सम्बन्ध नहीं जुड़ता और वो याद निरंतर नहीं बनती है। वो निराकार परमात्मा शिव जिसकी हम शिवरात्रि पर बहुत महिमा करते हैं, पूजन करते हैं। वो निराकार परमात्मा शिव जब इस सृष्टि पर स्वयं अवतरित होते हैं तो वो सबसे पहले हमें सत्य ज्ञान देते हैं। जिसके आधार से हम उन्हें पहचानते हैं और उनसे सम्बन्ध जुडऩा शुरू होता है। नहीं तो हम कहते थे हम याद तो करना चाहते थे लेकिन क्या करें मन तो यहाँ-वहाँ भटक गया। और वो इसलिए याद नहीं आया क्योंकि हमने उनसे रिश्ता बनाया ही नहीं था। इसे हम इस बात से समझ सकते हैं कि जब भी जीवन में छोटी या बड़ी कोई भी बात आए, तो चेक करना कि सबसे पहले मुझे कौन याद आता है? कई बार ऐसा होता है कि हम इनसे पूछते हैं, सबसे राय लेते हैं। जब कहीं से समाधान नहीं मिलता तब अंत में हम भगवान को याद करते हैं और कहते हैं अब तो तुम्हीं एक सहारा हो। तो वह हमारे रिश्तों की सूची में थोड़ा पीछे चले जाते हैं। लेकिन जब उनके साथ एक बहुत समीप, घनिष्ठ रिश्ता होता है तो सारा दिन हर बात में सबसे पहले वही याद आता है। और जब उनको याद कर लो और उनसे बात कर लो, उनकी टचिंग लेकर अपने जीवन की बात को सॉल्व कर लो तो किसी और से जाकर कुछ मांगने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती है। क्योंकि हमारे सारे सम्बन्ध उनके साथ हैं। अगर हम अभी भी किसी से मांग रहे हैं या किसी से अपेक्षा रख रहे हैं तो समझ लो हमने परमात्मा से संबंध नहीं जोड़ा। क्योंकि जिसका कनेक्शन परमात्मा से जुड़ा वो सृष्टि पर कभी किसी से कुछ मांगेगा ही नहीं। उससे जुड़ गया तो हम सिर्फ देंगे और देते ही रहेंगे। और देते-देते वो ही आत्माएं देवी-देवता बन जाते हैं, तब यह सृष्टि सतयुग बन जाती है।

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