ज्ञान समझने का मतलब… परिवर्तन

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हमें समय से पहले अपने आपको सम्पूर्ण बनाना है। योग का लक्ष्य क्या है, तपस्या से मुझे क्या बनना है? बाबा कहते हैं ना, जन्म-जन्मान्तर के विकर्मों का बोझा हमारे सिर पर है वो योग बल से उतारना है। हमें खुद ही खुद को रियलाइज़ कराना है।

बाबा की याद से ही आत्मा शुद्ध बनती है, शक्तिशाली बनती है। अभी हमारी साधना का, तपस्या का लक्ष्य भी यही है। साधना की जाती है आत्मा शुद्धि के लिए। भक्ति में हम तपस्या करते हैं भगवान को पाने के लिए, हमें भगवान मिल चुका है। हमें भगवान का सम्पूर्ण सत्य ज्ञान मिल गया है। बाबा से सर्व प्राप्तियाँ करके अपने आप को सम्पन्न और सम्पूर्ण बनाना यही हमारा लक्ष्य है। हमें तपस्या क्या करनी है? हमारी पहली तपस्या देहभान से न्यारा, आत्म-अभिमानी बनना है। हर कर्मेन्द्रियों से देह भान का त्याग करना। हर कर्मेन्द्रियों में आत्म अभिमानिता का तेज भरना। ये हमारा फाउंडेशन है। बार-बार ये महसूस करना है कि मैं कौन हँू। मैं आत्मा हँू, शरीर से अलग हँू। हमें अपने आपको बार-बार डिटैच करते रहना है। अगर बाबा से जुडऩा है, योग लगाना माना बाबा से कनेक्ट होना। जुडऩा है तो मुझे यहाँ से डिटैच होना है। देहभान से, इन्द्रियों के रसों से अपने आपको ऊँचा उठाना है। कहाँ इन्द्रियों के रसों में डूबे हुए थे, हमें उससे न्यारा होना है। देह, देह के सम्बन्ध, दुनिया, वैभव, पदार्थ, दैहिक क्रियाएं इसलिए बाबा ने पहले हमारे पूरे जीवन को बदला है। हमारा योग कोई क्रिया नहीं है। जो घंटा-दो घंटा कर लें, हमारा योग जीवन पद्धति है। जीवन को श्रेष्ठ विधि से जीने की कला है। इसलिए केवल अभ्यास की बात नहीं है, हमें टोटल लाइफ को चेंज करना है।
ज्ञान समझने का मतलब ही है परिवर्तन। ब्राह्मण जीवन की शुरूआत, फाउंडेशन बड़ा पॉवरफुल हम सबने डाला है। सिर्फ फाउंडेशन डालकर खुश रहना है या भवन भी बनाना है। हमें तो पूरी बिल्डिंग बनानी है, पूरी लाइफ बनानी है, पूरी नई दुनिया हमें बनानी है तो हमें इतनी ही मजबूती से आगे भी अपने आपको बढ़ाना है। जो हमारे अंदर कमियाँ, जानते हैं हर एक अपने आपको क्योंकि ज्ञान तो बाबा ने सम्पूर्ण बनने का दिया है। इसलिए जानते हैं कौन-सी कमी-कमज़ोरियाँ हैं। पर हमने शायद ये स्वीकार कर लिया है कि ये थोड़ी बहुत कमियाँ तो रहेंगी, इसलिए पॉवरफुल फाउंडेशन डाला। ब्राह्मण बनने के बाद दो साल, दास साल… वो कमज़ोरियाँ हमारे से गई नहीं। इसलिए इतने अच्छे योगी, पवित्र योगी बनने के बाद भी, मैंने सोचा, इतनी ऊँची धारणाओं के बाद भी हमारे जो साथी हैं लौकिक या अलौकिक हमारे आगे-पीछे हमारे बारे में कौन-सी बातें करते हैं? हमारी कमी-कमज़ोरियों की ही बातें क रते हैं। देखो आप चेक करो वरना पवित्रता, अन्न शुद्धि, अमृतवेला उठना, रोज़ ज्ञान-योग करना। कितनी ऊँची धारणायें हैं हमारे जीवन की, पर इसका प्रभाव नहीं है, जो कमियाँ हैं वो ही बातें होती हैं, होती हैं कि नहीं। हमें ये कमियाँ निकालनी हैं या नहीं? पूछना है अपने आप से कि इन कमियों के बारे में हमने क्या सोच लिया?
देखो जब तक हम अपने आपको सम्पन्न नहीं बनायेंगे तब तक संतुष्टता जीवन में नहीं आयेगी। भौतिक रूप से भी घर में सोचते हैं ना! हमारे घर में हर साधन हो, सुविधाएं हों। जो आवश्यक है वो हर साधन हो, हर सुविधा हो, वर्णन भी करते हैं, हमारे घर में ये है, ये है, ये नहीं है बस। वहाँ असंतुष्टता आ जाती है। जो है उसकी खुशी नहीं है, जो नहीं है वो ही बार-बार माइंड होता है। सेम आध्यात्मिक दृष्टि से भी है। जो है धारणायें वो कॉमन हो गई और जो नहीं है, वो ही दिखाई देती हैं। हमारे ये बहुत पुराने ज्ञानी हैं पर फिर कमी का वर्णन करते हैं हम। ये बहुत अच्छे, पर तेरी-मेरी करते हैं, ये बहुत अच्छे, पर गुस्सा करते हैं, अवस्था बिगड़ती रहती है, जो कमी है वो ही वर्णन हो रही है, तो मुझे ये कमी क्यों रखनी है? पूछो अपने आप से, इसलिए बाबा ने सम्पन्न बनने का लक्ष्य दिया, कोई भी कमी नहीं, ऐसे नहीं मैं तो ये सहन नहीं कर सकती, वो हमें करना है, सीखना है। इसके कारण अवस्था बार-बार बिगाड़ते नहीं रहना। क्योंकि अभी बार-बार स्थिति बिगडऩा माना फिर-फिर पानी फिर जाना। और हर कर्म बाबा कहते हैं सम्पूर्ण, परफेक्ट। काफी बातों में हम एक्यूरेट बन गये हैं, पर कहाँ नहीं है। ज्ञान बाबा सम्पूर्णता का देता है इसलिए खुद को भी समझ तो आ जाता है कि ये मेरा ठीक नहीं है।
जो ज्ञान, योग, धारणा और सेवा मैं कर रही हँू, पर एक्यूरेट कर रहे हैं? जिस विधि से होना चाहिए वो परफेक्ट विधि से है? यहाँ सब कुछ ठीक रखा हो, एक चीज़ उल्टी रखी हो, तो उसपर ही ध्यान जाता है। भई सब ठीक है पर ये गुलदस्ता तो उल्टा रखा है। अटेंशन वहीं जाता है कि ये थोड़ा टेढ़ा है, थोड़ा बांका है तो हम भी ठीक कर देते हैं उसको। तो स्थूल में भी देखो परफेक्शन चाहते हैं ना! तो जीवन के बारे में क्यों नहीं, स्थिति के बारे में क्यों नहीं? बाकी ऐसे ही चलते रहने से तो टाइम पास होता जा रहा है। हमें तो आगे बढऩा है, लक्ष्य पर पहुंचना है। हमें अपनी आधी-अधूरी स्थिति से संगम पूरा नहीं करना है। लक्ष्य है ना सबका कि हमें समय से पहले अपने आपको सम्पूर्ण बनाना है। योग का लक्ष्य क्या है, तपस्या से मुझे क्या बनना है? बाबा कहते हैं ना, जन्म-जन्मान्तर के विकर्मों का बोझा हमारे सिर पर है वो योग बल से उतारना है। हमें खुद ही खुद को रियलाइज़ कराना है।

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