माउंट आबू, ज्ञानसरोवर,राजस्थान।
मूल्यनिष्ठ शिक्षा से ही भारत को विश्वगुरू बनाने की राह होगी आसान
विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के शिक्षाविदों का महासम्मेलन
ब्रह्माकुमारीज़ शिक्षा प्रभाग द्वारा ज्ञानसरोवर परिसर में विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों के शिक्षाविदों के लिए `शिक्षक – नई पीढ़ी के शिल्पकार’ विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ हुआ।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए पूर्व केन्द्रीय संस्कृति, पर्यटन एवं वन मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने कहा कि इस पवित्र स्थान पर आना मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है। मैंने स्वयं इस आध्यात्मिक ज्ञान से अपने जीवन में सुखद परिवर्तन अनुभव किया है। आध्यात्मिकता से ही दिव्यता की ओर उन्मुख हुआ जा सकता है। भगवान ने जब इस दुनिया को और मनुष्य को रचा तो उन्होंने अपनी सर्वश्रेष्ठ सुन्दर रचना रची थी। उन्होंने सदा सुखमय जीवन के लिए कुछ आध्यात्मिक मूल्य भी दिये थे। मनुष्य को श्रेष्ठ बुद्धि व शक्ति भी प्रदान करके संसार में भेजा था। लेकिन स्वार्थ ने इंसान को पथ से भ्रमित कर दिया। वर्तमान समय मानव में देने का भाव कम और लेने की भावना बढ़ती जा रही है। सबको देने वाला तो परमात्मा है। वही सबका सच्चा सतगुरू है।
उन्होंने आगे कहा कि आज शिक्षकों के ऊपर बहुत महती जिम्मेदारी है जो वे समाज में नैतिक मूल्यों को पुनः स्थापित करने में अपना योगदान दें। माता-पिता के साथ शिक्षक ही है जो छात्र को अपने से भी बेहतर देखना चाहता है। शिक्षक स्वयं मूल्यनिष्ठ होकर ही छात्रों को मूल्यों की ओर प्रेरित कर सकता है। छात्र को उच्च पद पर पहुंचाना ही शिक्षक का कार्य है। इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय की आध्यात्मिक शिक्षा विश्व के हर वर्ग को धर्म, जाति के भाव से ऊपर उठकर आत्मिक भाव में स्थित करने का महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। जिस सच्ची खुशी की खोज आज हर इंसान कर रहा है वह खुशी व आंतरिक शांति अपने भीतर स्वयं के सत्य स्वरूप को अनुभव करने से प्राप्त होगी। खुशी से सम्पन्न व्यक्ति ही दूसरों को खुशी बांट सकता है। मैं सुबह अपने दिन का आरंभ ब्रह्माकुमारीज़ द्वारा सिखाये जा रहे राजयोग मेडिटेशन से करता हूँ और दिनभर के लिए स्वयं को चार्ज ऊर्जा से सम्पन्न अनुभव करता हूँ।
ब्रह्माकुमारी संस्था की संयुक्त मुख्य प्रशासिका ब्र.कु. डॉ. निर्मला दीदी ने आशीर्वचन देते हुए कहा कि सबसे श्रेष्ठ दान है- ‘विद्या का दान’। उसमें ही सर्वश्रेष्ठ है- ‘आध्यात्मिक ज्ञान’। एक शिक्षक अनेकों का भविष्य बनाने का कार्य करता है। परमात्मा आध्यात्मिकता के बल से भारत का पुनउर्त्थान कर रहे हैं, मानव में दैवीय मूल्य भर रहे हैं। यही भारत सतयुग में देव आत्माओं की भूमि कहलाता था। लक्ष्मी नारायण समान दिव्यता से सम्पन्न आत्माओं का गायन आज भी है। रात के बाद दिन आ रहा है, कलियुग के बाद सतयुग आना ही है। स्वयं परम शिक्षक शिव हमें दिव्य गुणों से श्रृंगारित कर रहे हैं। उम्मीद है आप यहां से जाकर भी इस आध्यात्मिक शिक्षा का श्रवण कर जीवन में नैतिक मूल्यों को अपनायेंगे।
ब्रह्माकुमारीज़ शिक्षा प्रभाग के अध्यक्ष डॉ. ब्र.कु. मृत्युंजय ने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति है ही ‘गुरू देवो भव’ की संस्कृति। शिक्षकों के लिए आदर भाव व उनके प्रति समर्पण हमारे संस्कारों में है। हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति राधाकृष्णन जी कहा करते थे कि राष्ट्र का निर्माण स्कूल की कक्षाओं में होता है। इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय में परम शिक्षक शिव ने हमें चार विषयों- सत्य गीता ज्ञान, सहज राजयोग, मूल्यों व दिव्य गुणों की धारणा एवं मानव मात्र के लिए सेवा भाव, के माध्यम से सम्पूर्ण ज्ञान प्रदान किया है। ब्रह्माकुमारीज़ संस्था की 30 हजार समर्पित ब्रह्माकुमारी बहनें बिना कोई फीस लिए समर्पित रूप से विश्व को मूल्यनिष्ठ बनाने के लिए आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करने की सेवा कर रही हैं। परमपिता शिव ने यह समझ दी कि बच्चे शिक्षा को बेचना नहीं है। यहां आने वालों से कोई फीस नहीं लिया जाता था। शिक्षा का व्यापारीकरण होने से ही नैतिक मूल्यों का ह्रास हुआ है। दुनिया में हर विधा के विश्व विद्यालय हैं लेकिन आध्यात्मिक विश्व विद्यालय यह एक ही है।
प्रो. बी.जे. राव, उपकुलपति, हैदराबाद विश्वविद्यालय ने कहा कि सच्ची शिक्षा से मनुष्य न केवल शिक्षित कहलाता है बल्कि वो प्रबुद्ध अलौकिक मानवीय व्यक्तित्व बन जाता है। भविष्य के लिए तैयार होता है। भारत की सदियों पुरानी सभ्यता व संस्कृति पूरे विश्व का मार्ग प्रशस्त कर रही है। विभिन्न देशों के मुखिया व बुद्धिजीवी भारतीय संस्कृति को उत्कृष्ट मानते हैं।
स्वामी विवेकानंद तकनीकि विश्वविद्यालय, भिलाई के उपकुलपति प्रो. डॉ.मुकेश कुमार वर्मा ने कहा कि ज्ञान की महत्ता उसे आचार, विचार व व्यवहार में लाने से है। शिक्षक व गुरू में अंतर यही है कि गुरू हमें भौतिक व आध्यात्मिक दोनों रूप से समर्थ बनाते हैं। वशिष्ठ, विश्वामित्र, समर्थ गुरू रामदास, संदीपन आदि अनेक ऐसे गुरू हुए हैं, जिन्होंने अपनी सशक्त चेतना से अनेकों ऐतिहासिक आदर्श व्यक्तित्व गढ़े।
ब्रह्माकुमारीज़ शिक्षा प्रभाग की उपाध्यक्षा ब्र.कु. शीलू ने राजयोग की अनुभूति कराई।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के उपकुलपति प्रो. दीपेन्द्र नाथ दास एवं फार्मास्यूटिकल साइंस एण्ड रिसर्च यूनिवर्सिटी के उपकुलपति प्रो. रमेश गोयल ने कहा कि यदि विश्वविद्यालयों एवं कॉलेजों में कार्यरत शिक्षक मूल्यनिष्ठ शिक्षा के लिए प्रयास करें तो नई पीढ़ी में अवश्य ऐसे संस्कार विकसित किये जा सकते हैं जिससे वे पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण से बच सकेंगे।
भारत के अनेक विश्वविद्यालयों में संचालित विभिन्न मूल्यनिष्ठ कार्यक्रमों के बारे में मूल्यनिष्ठ कार्यक्रम के निदेशक ब्र.कु. डॉ. पांडयामणि ने प्रकाश डाला। ब्रह्माकुमारीज़ शिक्षा प्रभाग की राष्ट्रीय संयोजिका ब्र.कु. सुमन ने शब्दों के माध्यम से सभी का स्वागत किया। दिल्ली पालम विहार की कुमारी आकांक्षा व काम्या ने स्वागत नृत्य प्रस्तुत किया। मंच संचालन शिक्षा प्रभाग की मुख्यालय संयोजिका ब्र.कु. शिविका ने किया।