भगवान की श्रीमत है…अभी अभिमान से मुक्त हो जाओ…

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जब से मैंने सुना था तब से ये बात बहुत प्रिय लग गई थी मुझे। बाबा ने कहा जो कुछ भी तुम्हारे पास है वो सब ईश्वरीय देन है। मन भावन महावाक्य है भगवान का। ये सब कुछ उसने दिया हमें।

हम आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर हैं और अध्यात्म का एक प्रैक्टिकल स्वरूप होता- अहंकार को छोड़ देना, नम्रचित्त हो जाना। आपने सुना होगा दुर्वासा ऋषि धनुष भंग होने पर जब क्रोध करने लगे तो लक्ष्मण ने उन्हें क्या कहा था? तुलसीदास की चौपाई है- संत नहीं होत अभिमानी। संत कभी अभिमानी नहीं होते हैं। हम सब भी सच्चे संत बने हैं, पवित्र बने हैं। हमें अपनी पवित्रता में पूर्ण विश्वास है, उसका स्वमान अवश्य होना चाहिए। अहंकार को छोडऩा, ये प्रभु आज्ञा है। स्वमान से अभिमान नष्ट हो जाता है। मैं रीयल में कौन हूँ, जब हमें ये आभास होने लगता है तो मैं-मैं खत्म हो जाता है। मनुष्य के बहुत संकल्प उसके अहंकार के कारण चलते हैं। अहंकार का एक रूप मैं पन और साथ में मेरापन भी होता है। मेरापन जो मोह को पैदा करता है।
बाबा के कभी महावाक्य सुने थे। बहुत साल हो गये कि 10 मिनट योग में बैठो और अपने को चेक करो कि मेरे संकल्प कहाँ जा रहे हैं,तो पता चलेगा। संकल्पों का इधर-उधर भागने का कारण, मैंपन और मेरापन ही है इनको समाप्त कर दो। अभी इनको समाप्त करना है तो गहरी साधना परंतु हम लोगों को साधना मालूम है और हमारे लिए बिल्कुल सहज है। इसलिए मैंपन और मेरेपन को समाप्त करेंगे। हम देह अहंकार को छोड़ते जा रहे हैं। इसकी पहली विधि तो सबको मालूम है, हमको मालूम है कि मैं देह हूँ ही नहीं। अंहकार मनुष्य को विभिन्न प्रकार का रहता है। किसी को देह का अंहकार, सुंदर देह है उसको ही सजाने-संवारने में लगे हैं। अपने देह का खुद ही बहुत आकर्षण रहता है। सारे दिन ख्याल रहता है कि मैं अच्छा तो दिख रहा हूँ, अच्छी तो हूँ। कपड़े वैसे ही पहनेंगे, श्रंृगार वैसा ही करेंगे। इसमें टाइम कितना जाता है और मान लो किसी ने कह दिया कि तुम तो अच्छी नहीं लग रही हो आज, तो फिर क्या होता है? हमारे पास एक व्यक्ति था लोगों ने उसकी नब्ज देख ली थी,उसको भगाते रहते थे। नये कपड़े पहनकर आया। अरे भई! क्या कपड़े पहने हैं दादी देखेंगी तो तुम्हें क्या कहेंगी, ये कोई कपड़े होते हैं! बेचारा सज-धज कर आया था, उसको लगा मैंने कुछ गड़बड़ की हुई है। गया दूसरी डे्रस पहनकर आया, फिर दूसरा ग्रुप तैयार था- 10-15 मिनट के बाद उसने कहा अरे! ये क्या पहना है तुमने सन्यासियों जैसा कपड़ा। ये कोई कपड़े होते हैं? तुम्हारी पर्सनैलिटी के अनुसार तो ये कुछ भी नहीं हैं। फिर बेचारा भागा शायद मैंने गलत पहन लिया। और अच्छा करके आया। फिर तीसरा ग्रुप मिला कुछ समय के बाद फिर उसने भी कुछ कह दिया। फिर भागा गया।
आखिर में मैंने एक दिन उसको समझाया कि कपड़े कौन देखता है, चेहरा देखते हैं लोग, कई सन्यासी सीधा-सादा बैठे रहते हैं। चेहरे पर तपस्या की झलक होती है। लोग उनके कपड़ों को देखते हैं क्या? हमसे भी कई लोग बिल्कुल साधारण सफेद कपड़े पहने रहते हैं, कोई सूट-बूट नहीं। चेहरा आकर्षित करता है लोग देखते ही नहीं है क्या पहना हुआ है। अब हमें इस तरह का देह अभिमान रहता है तो एक्सपेक्टेशन्स(उम्मीद) ये भी रहती है कि लोग हमें एप्रीशिएट(प्रशंसा) करें। अगर कोई प्रशंसा न करे तो संकल्प चलने लगेंगे कि यहाँ तो सब मगन हैं अपने-अपने में, स्वार्थी हो गये हैं सब। किसी को नाम-मान-शान का, मेरा बहुत नाम है इसका अभिमान, किसी को तो ये भी हो जाता है कि मैं बहुत अनुभवी हूँ । मुझे बहुत समय से ज्ञान मिला हुआ है भगवान का। भगवान को पहचाना है तो इन सबको हमें पीछे छोडऩा है, नहीं तो ये सब व्यर्थ संकल्पों के कारण बन जाते हैं।
अब इस मैंपन के कारण, इस अभिमान के कारण, व्यक्ति की मान की इच्छा बहुत रहेगी और मान सब जगह मिलेगा नहीं ये भी निश्चित है। मान नहीं मिलेगा तो व्यर्थ संकल्प बहुत चलेंगे। देखा मुझे पूछा ही नहीं गया, छोटों-छोटों को मान दिया जा रहा है। मेरी तरफ तो देखा ही नहीं, मेरा स्वागत ही नहीं हुआ। छोटे-छोटे संकल्प की लहर, चेन बहुत लम्बी-चौड़ी चलती रहेगी। इसलिए एक संकल्प कर लें, देखें एक ही संकल्प अनेक संकल्पों को काटने वाला होता है। संकल्प कर दें कि भगवान मुझे मान दे रहा है। भगवान की श्रीमत है अभी इस अभिमान से मुक्त हो जाओ। जन्म-जन्म इसी में तो तुम रहे हो, नीचे उतरते आये हो, गिरते आये हो। तुमने अपने सुख-चैन भी खो दिये हैं। छोड़ो इसको, अब मुझे भगवान की आज्ञा माननी है तो देखो एक लाइन केवल, अब मुझे भगवान की आज्ञा माननी है। हमें कई तरह के संकल्पों से मुक्त कर देगी।
हम सभी अपने चित्त को शांत करेंगे। ये हमारा महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है तो ऐसे इधर-उधर की बातें सोचने की आदत हमें अपने अंदर नहीं डालनी है। एक संकल्प बहुत सुंदर रखना है। आपने बहुत बार सुना होगा, लेकिन इसको प्रैक्टिकल में लाना है। तो देखना कि हमारा जीवन कितने आनंद से भर जायेगा। जब से मैंने सुना था तब से ये बात बहुत प्रिय लग गई थी मुझे। बाबा ने कहा जो कुछ भी तुम्हारे पास है वो सब ईश्वरीय देन है। मन भावन महावाक्य है भगवान का। ये सब कुछ उसने दिया हमें। अच्छे काम करने वाले भी बहुत हैं दुनिया में लेकिन मान नहीं मिलता है। हमें मान मिल रहा है प्रभु देन है हमारे साथ। बहुत मेहनत करने वाले बहुत हैं। सफलता दूर रहती है। हम सफल हो रहे हैं ये प्रभु की गिफ्ट है, वरदान है सफलता का। हमारा योग बहुत अच्छा लग रहा है। हम जो ज्ञान दूसरों को देते वो उन पर बहुत प्रभाव डालता है। ये सब प्रभु देन है मुझे, उसका बल मेरे साथ है, काम कर रहा है। तो मैं निमित्त हूँ। करनकरावनहार शिवबाबा है, मुझे केवल करना है। मैं निमित्त मात्र हँू। उसकी शक्तियाँ मेरे साथ न जुड़ी हों तो हम बहुत सारे अच्छे काम कर नहीं पाते हैं। ऐसे सुंदर संकल्पों से अपने चित्त को शांत करेंगे। स्वमान में रहने से सम्मान स्वत: ही मिलेगा। स्वमान में रहने से ये अभिमान स्वत: ही नष्ट होता जायेगा। हमारा स्वमान हमें जगाता है। हमें याद दिलाता है कि तुम्हें कितने बड़े-बड़े काम करने हैं। तुम भगवान के राइट हैण्ड हो, अगर तुम व्यर्थ में रहोगे तो तुम बड़े-बड़े काम कैसे करोगे। अपने को सुंदर संकल्प देते रहें, बड़े काम करने हैं हम बड़े बाप के बच्चे हैं। हमारे विचार भी बहुत बड़े होने चाहिए। काम भी हमें बड़े ही करने हैं। इन संकल्पों में रमण करने से व्यर्थ का प्रकोप समाप्त हो जायेगा। चित्त शीतल और शांत हो जायेगा। जीवन की यात्रा का परम आनंद अनुभव होगा।

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