रिश्तों में समझदारी का होना आवश्यक

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ये समझदारी अगर हमारे भीतर आ जाए कि रिश्ता सिर्फ वो नहीं है, जो हम उनके लिए कर रहे हैं। रिश्ता वो होता है जो हम उनके लिए सोच रहे हैं।

रिश्तों का अर्थ क्या है? हम सोचते हैं कि रिश्ते वो हैं जो बाहर दिखते हैं। मतलब एक-दूसरे से कैसा व्यवहार करते हैं। एक-दूसरे के लिए क्या करते हैं। कितनी बार हमने अपने आपको ये कहते हुए सुना या दूसरे कह रहे होते हैं कि आपने इस रिश्ते के लिए क्या किया? सामने वाला कहेगा मैंने रिश्ते के लिए यह किया, वो किया। पर रिश्ते में सच्ची समझदारी कैसे पैदा हो?
हम सबके जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण चीज़ हमारे रिश्ते हैं.. रिश्ते परिवार के साथ, मित्रों के साथ, सहकर्मियों के साथ। हम जो सोचते हैं, अनुभव करते हैं, जो बोलते हैं, जैसा व्यवहार करते हैं, वो वायब्रेशन यानी स्पंदन है, जो चारों ओर वातावरण में फैलती हैं। सामने वाला जो सोचता है, महसूस करता है, व्यवहार करता है वो उसकी वायब्रेशन है, जिसे वह पैदा करते हैं और जो हम तक पहुंचती है। ऊर्जा के रूप में जो आदान-प्रदान होता है, उसे हम रिश्ता कहते हैं। रिश्ता सिर्फ वो नहीं है, जो नाम से होता है। दो आत्माओं के बीच वायब्रेशन्स का आदान-प्रदान ही रिश्ता है।
क्या किया से ज्य़ादा ज़रूरी है कैसा सोचा। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि आपकी तरफ से जैसे वायब्रेशन पैदा होते हैं, वही आपका रिश्ता बनाते हैं। रिश्तों में हमारा फोकस यह हो जाता है कि हमने एक-दूसरे के लिए क्या किया। लेकिन उससे भी ज्य़ादा महत्त्वपूर्ण है कि हमने एक-दूसरे के लिये कैसा सोचा। ये समझदारी अगर हमारे भीतर आ जाए कि रिश्ता सिर्फ वो नहीं है, जो हम उनके लिए कर रहे हैं। रिश्ता वो होता है जो हम उनके लिए सोच रहे हैं। ‘उन्होंने क्या किया’ पर समाज का फोकस रहता है, उसके लिए क्या किया, हम उनके घर गए थे उन्होंने मेरे लिए क्या किया। मतलब हम उस पर फोकस करते हैं, जो दिखता है। चाहे परिवार के लिए, दोस्तों के लिए या रिश्तेदारों के लिए। रिश्ते अगर सिर्फ ‘किया’ से बनते, मतलब हम एक-दूसरे के लिए क्या कर रहे हैं, तो आपको नहीं लगता कि हमारे रिश्ते मजबूत होते! क्योंकि हम सारे प्रयास अच्छे रिश्तों के लिए ही तो कर रहे हैं। इतना करने के बाद और अपना पूरा जीवन उस रिश्ते में लगा देने के बाद ये महसूस करते हैं कि ये रिश्ता उतना मजबूत नहीं है। ये छोटी-सी बात से हिलता क्यों है। ये छोटी-छोटी बातों में नाराज़ क्यों हो जाते हैं। इतना मैंने इनके लिए किया वो इनको याद नहीं रहता, ये छोटी-सी बात पकड़कर बैठे हैं। ‘किया’ पर इतना फोकस है कि हमें लगता है कि इतना करने के बाद भी रिश्ता मजबूत नहीं है।
आज यह प्रयोग करके देखें
थोड़ा-सा मन को अतीत की तरफ ले जाएं और किसी भी एक रिश्ते को तलाशें, जिसमें आपको लगता है कि सद्भाव, खूबसूरत ऊर्जा का बहाव होना चाहिए, पर किसी कारण वश वैसा हो नहीं पा रहा है। कोशिश बहुत कर रहे हैं, मेहनत बहुत कर रहें हैं, लेकिन पता नहीं, फिर कोई नासमझी, फिर कोई बात, फिर से कोई नाराज़गी, दर्द से टीस उठती है। उस रिश्ते में जाकर, उस व्यक्ति के लिए अपने मन के पास आइए। आप ये नहीं देखिए कि आपने उनके लिए क्या-क्या किया है। सबसे पहली चीज़, ध्यान कीजिए कि उनके लिए वो सब करते हुए हमारे मन की स्थिति कैसी थी। माता-पिता और बच्चों के बीच का खूबसूरत रिश्ता देखिए। नि:स्वार्थ भाव, सेल्फलेस गिविंग। पिता को बदले में कुछ नहीं चाहिए होता है।
हमारा सारा ध्यान शब्दों पर होता है। छोटी-छोटी बातों पर इतनी उम्मींदे होती हैं कि पूरी नहीं होने पर हम दु:खी होते हैं। हमें लगता है कि इतना करने के बाद भी रिश्ते मजबूत नहीं हैं। पर रिश्ते तो ऊर्जा का आदान-प्रदान हैं। रिश्ता सर्वप्रथम आत्मा के साथ होता है।
पिता सिर्फ देता और देता है। ये बहुत ही सुंदर नि:स्वार्थ रिश्ता है, लेकिन जब हम इतनी मेहनत कर रहे हैं, ऐसे में कोई भी आपसे पूछे कि आप इतनी मेहनत क्यों करते हो, थोड़ा रेस्ट करो ना। पर आप कहेंगे कि परिवार के लिए, अपने घर के लिए इतना कर रहे हैं और फिर भी बच्चे नाराज़ हो जाते हैं। सम्मान नहीं करते हैं, हमारे साथ वक्त नहीं बिताते हैं, अपनी ही दुनिया में रहते हैं, हमारी तरफ ध्यान नहीं देते हैं। हमने छोटी-छोटी बातों पर इतनी उम्मीदें बांध ली हैं कि वे पूरी नहीं होती और हम व्यथित हो जाते हैं। जब हम चिंतन करते हैं कि मैंने इतना किया, ये अभी भी मुझसे संतुष्ट नहीं हैं। सामने संतुष्टि दिखाई नहीं दे रही है। मैं क्या करूं इनके लिए, जिससे ये संतुष्ट हो जाएं? और हम कभी-कभी उनको कह भी देते हैं अब हम आपके लिए और क्या करें। आप तो खुश ही नहीं होते हैं इतना सब करने के बाद भी। तो यह रिश्तों पर सवाल खड़े करना है। ध्यान रखिए रिश्ते उम्मीद से नहीं नि:स्वार्थ होकर चलते हैं।

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