अपने स्वरूप, स्वदेश, स्वधर्म, श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ स्थिति में रहते हुए चलते हो? क्योंकि वर्तमान समय इसी स्व स्थिति से ही सर्व परिस्थितियों को पार कर सकेंगे अर्थात् ‘पास विद ऑनर’ बन सकेंगे। सिर्फ स्व शब्द ही याद रहे तो स्व स्वरूप, स्वधर्म, स्वदेश ऑटोमेटिकली याद रहेगा। तो क्या एक स्व शब्द याद नहीं रह सकता? सभी आत्माओं को आवश्यकता है स्व स्वरूप और स्वधर्म में स्थित कराते स्वदेशी बनाने की। तो जिस कर्तव्य के लिए निमित्त हो अथवा जिस कर्तव्य के लिए अवतरित हुए हो, तो क्या कोई कर्तव्य को व अपने आपको जानते हुए, मानते हुए भूल सकते हैं क्या? आज कोई लौकिक कर्तव्य करते हुए अपने कत्र्तव्य को भूलते हैं? डॉ. अपने डॉक्टरी के कर्तव्य को चलते-फिरते, खाते-पीते, अनेक कार्य करते हुए यह भूल जाता है क्या कि मेरा कर्तव्य डॉक्टरी का है? तुम ब्राह्मण, जिन्हों का जन्म और कर्म यही है कि सर्व आत्माओं को स्व-स्वरूप, स्वधर्म की स्थिति में स्थित कराना, तो क्या ब्राह्मणों को व ब्रह्माकुमार-कुमारियों को यह अपना कर्तव्य भूल सकता है? दूसरी बात- जब कोई वस्तु सदाकाल साथ, सम्मुख रहती है वह कभी भूल सकती है? अति समीप ते समीप और सदा साथ रहने वाली चीज़ कौन-सी है? आत्मा के सदा समीप और सदा साथ रहने वाली वस्तु कौन-सी है? शरीर व देह, यह सदैव साथ होने कारण निरन्तर याद रहती है ना! भुलाते हुए भी भूलती नहीं है। ऐसे ही अब आप श्रेष्ठ आत्माओं के सदा समीप और सदा साथ रहने वाला कौन है? बापदादा सदा साथ, सदा सम्मुख है। जबकि देह जो साथ रहती है वह कभी भूलती नहीं, तो बाप इतना समीप होते हुए भी क्यों भूलता है? वर्तमान समय कम्पलेन क्या करते हो? बाप की याद भूल जाती है। बहुत जन्मों के साथ रही हुई वस्तु देह व देह के सम्बन्धी नहीं भूलते तो जिससे सर्व खज़ानों की प्राप्ति होती है और सदा पास है वह क्यों भूलना चाहिए? चढ़ाने वाला याद आना चाहिए व गिराने वाला? अगर ठोकर लगाने वाला भूल से भी याद आयेगा तो उनको हटा देंगे ना! तो चढ़ाने वाला क्यों भूलता है? जब ब्राह्मण अपने स्व स्थिति में, स्व स्मृति में व श्रेष्ठ स्मृति में स्थित रहें तो अन्य आत्माओं को स्थित करा सकेंगे।