मुख पृष्ठब्र.कु. उषाराजयोग से बनता सकारात्मक नज़रिया

राजयोग से बनता सकारात्मक नज़रिया

परिस्थितियां तो अनेक आती हैं और आती रहेंगी। और अंत में भी बहुत सारी परिस्थितियां आयेंगी, लेकिन परिस्थिति के वक्त ज्ञान स्वरूप बनने की बात नहीं होती है इसका अभ्यास पहले से करना होता है। मान लो आपके अन्दर गुस्से की कमज़ोरी है और यदि आप बहुत जल्द गुस्से के वश हो जाते हैं, परिस्थिति आयेंगी और उस वक्त आप सोचो कि मैं ज्ञान स्वरूप हो जाऊं, मैं शांत हो जाऊं ये नहीं होगा। पहले से उसका अभ्यास छोटी-छोटी बातों में करते जाओ।
विशेष रूप से अभ्यास करना है ड्रामा की प्वाइंट बाबा ने हमें दी है और हमेशा बाबा ने बताया है कि बच्चे ड्रामा कल्याणकारी है जो होता है कल्याण के लिए ही होता है। तो छोटी-छोटी बातों में उसे अप्लाई करना(लागू करना) शुरु करो। जैसे ही हम कुछ बात देखते हैं मान लो भोजन आपके सामने बहुत अच्छा है वाह बाबा वाह! हमारे मन में ये आना चाहिए कितना सुन्दर बाबा भोजन खिला रहा है। कोई भी दृश्य देखा वाह बाबा कितना सुन्दर दृश्य है। जो इस तरह से अभ्यास करता है, अच्छी बातों में वाह-वाह निकलना स्वाभाविक है लेकिन जब ये एक संस्कार बना देंगे तो कोई भी परिस्थिति, समस्या भी आयेंगी तो भी पहला अन्दर से वो ही निकलेगा कि वाह! बहुत सुन्दर। जैसे ही बहुत सुन्दर निकला तो अन्दर फिर आयेगा अरे, तो जो गुस्सा उस वक्त आना चाहिए था, लेकिन नहीं आता। क्योंकि वाह कहने से जैसे पॉजि़टिविटी अन्दर में आयी तो ज्ञान स्वरूप हो गये ना! क्योंकि बाबा ने यह कहा है कि हर दृश्य के अन्दर कल्याण समाया हुआ है। तो फिर हमारा देखनेे का नज़रिया बदल जायेगा। निगेटिव दृष्टिकोण से देखने की बजाय फिर हम पॉजि़टिव दृष्टिकोण से देखना शुरु करेंगे कि वाह! तो मैंने कह दिया अब इसमें वाह! वाह! क्या चीज़ है, कैसे है ये वाह! वाह! क्या सिखाने आई है क्योंकि कोई भी परिस्थिति आती है तो वो आपको अनुभवी बनाने आती है, कुछ सिखाने आती है या कुछ देने के लिए, कोई अवसर देने के लिए आती है। कुछ न कुछ प्रदान करके जाती है। कोई सीख प्रदान करके जाती है, कोई अनुभव प्रदान करके जाती है। इसीलिए जैसे ही कोई दृश्य सामने आये और मुख से निकला वाह बाबा वाह! वाह ड्रामा वाह! जैसे ही निकला फिर इसमें आप देखना शुरु करो कि इसमें वाह क्या था? तो आपको पता चलेगा कि ये परिस्थिति आई तो ये आते ही मुझे कौन-सा अवसर प्रदान करके गई। कौन-सी रियलाइज़ेशन देकर गई, कौन-सी सीख देकर गयी। किस बात में मुझे अनुभवी बनाकर गई। तो ये जितना अनुभव आप प्राप्त करते जायेंगे उतना अनुभव का फाउंडेशन मजबूत होता जायेगा और बाबा हमेशा कहते हैं अनुभवी जो बन जाता है वो आगे कभी धोखा नहीं खाता है।
परिस्थितियां तो अंत तक आनी हैं। तो पहले से ही अपने आपको छोटी-छोटी बातों में अनुभवी बनाते जाओ। अनुभवी बनते जायेेंगे तो जब बड़े से बड़ी परिस्थितियां आयेंगी तो उस समय सहजता से, उस अनुभव के माध्यम से उसे हैंडल कर सकेंगे, उसे ओवरकम(नियंत्रित करना) कर सकेंगे। उसको पार कर सकेंगे और उस समय आपको बहुत खुशी अनुभव होगी। सचमुच ये बहुत काल का अभ्यास जो बाबा कहते हैं- ये बहुत काल से अभ्यास छोटी-छोटी बातों पर मैंने किया, ये अभ्यास मुझे काम आने लगा।
मैं अपना अनुभव आपको बताना चाहती हूँ कि मैंने इस बात का अभ्यास किया कि जो होता है ड्रामा कल्याणकारी है, कल्याणकारी है, तो मैं ऐसे ही जल्दी-जल्दी फास्ट चल रही थी, अचानक ठोकर लगी और गिर गई। और गिरते ही पैर फ्रैक्चर हो गया, पैर में दर्द भी है लेकिन गिरते ही पहला संकल्प यही आया कि ज़रूर इसमें कोई कल्याण है, जो आगे पता चलेगा क्योंकि ये अभ्यास किया हुआ था। तो सचमुच जो दर्द था उस दर्द को सहने की शक्ति आ गई, उसको ओवरकम करने की शक्ति आ गई। और उसी वक्त मुझे फ्लाइट पकडऩी थी और मधुबन आना था। तो इतनी अन्दर में हिम्मत और शक्ति आ गई कि नहीं, जाना है मुझे, वो कार्यक्रम रूकना नहीं चाहिए। और सचमुच यहाँ आने के बाद महसूस किया कि कितनी सारी बातें कल्याण की इसमें समाई हुई थी। इतना समय मुझे अपने लिए मिला, इतना अध्ययन करने का मौका मिला और दिल से निकला कि वाह! अगर ये फै्रक्चर नहीं होता तो मुझे अपने आपको ब्रेक लगाकर, इतना अध्ययन करके इतनी प्राप्ति नहीं होती। लेकिन देखो क्या कल्याण था! तो बहुत अध्ययन करने को मिला, बहुत कुछ प्राप्त करने को मिला, अनुभवी बनते गये और बातों के लिए भी।

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