मुख पृष्ठदादी जीदादी हृदयमोहिनी जीमुरली सुनते हर प्वाइंट का स्वरूप बनते जाओ तो कभी उबासी नहीं...

मुरली सुनते हर प्वाइंट का स्वरूप बनते जाओ तो कभी उबासी नहीं आयेगी

जब मुरली सुनते हैं तो बाबा जो प्वाइन्ट कह रहा है उस प्वाइन्ट का अनुभव करते जायें और सुनते जायें तो नींद या भारीपन कभी नहीं आयेगा, जैसे कोई खुराक खाये तो ये मन की खुराक है ना, तो खाना खाते समय कोई सोते हैं क्या? सोये तो फिर खाना कहाँ जायेगा! तो यह भी मन का भोजन है, तो मन नाचना चाहिए ना! हमेशा मुरली जब हम सुनते हैं तो यह नहीं समझें कि बाबा क्लास के लिए मुरली चला रहा है, बहुत बैठे हैं ना। लेकिन नहीं, बाबा मुरली द्वारा पर्सनल मेरे से बात कर रहा है। अब कोई मेरे से बात कर रहा हो तो उस समय झुटका खायेंगे क्या! बाबा मेरे लिए आया है, मेरे लिए बाबा सुना रहा है और मेरा बाबा है अगर इस स्मृति से बैठेंगे तो कभी भी मुरली सुनते हुए सुस्ती नहीं आयेगी।
साकार के समय मुरली के बीच में कोई ने अगर उबासी ली और बाबा की नज़र पड़ गई तो बाबा फ ौरन कहता था इसको उठाओ क्योंकि बाबा को यही आता था कि कल्प में एक बार इतना दूर से शिवबाबा आके पढ़ाता है और यह ऐसे समय पर उबासी देवे…। तो जब जो बात जैसी बाबा कहते हैं उसी समय वैसा ही अनुभव करते जायें, परमधाम कहा तो परमधाम की स्मृति आ गई, अगर सूक्ष्मवतन कहा तो वो स्मृति आ जाये, भक्तों की बातें की तो मैं देवी के रूप में भक्तों को देख रही हूँ। तो जो बात बाबा कहता है उसी अनुभव में अगर हम होंगे, तो नींद या भारीपन नहीं आयेगा। मानों अतीन्द्रिय सुख का अनुभव हो रहा है तो नींद, अलबेलापन या सुस्ती आयेगी क्या? तो हमेशा मुरली सुनने के समय हमें यह चेक करना है कि आज मेरे लिए बाबा क्या-क्या सौगात लाये हैं? मेरा टीचर इतना दूर से आया है, वैसे भी कोई दूर से आता है तो उसका कितना स्वागत किया जाता है। यह तो 5 हजार वर्ष के बाद बाबा हमारे लिए आता है। जैसे मेरा बाबा कहते हैं, वैसे मेरे लिए आया हुआ है, यह पर्सनल भासना अगर हमारे पास होगी तो बहुत स्फूर्ति से मुरली सुनेंगे और अनुभव होने लगेगा कि बाबा हमारी झोली में इतने मोती डालकर ज्ञान रत्नों से भरपूर कर रहा है, तो हमारा अटेन्शन मुरली सुनने में होना चाहिए। मुरली में बाबा ने जो कहा उसमें हाँ या ना नहीं किया तो बाबा कहता था यह कौन-सा बुद्धू सामने बैठा है? इतना अटेन्शन ब्रह्मा बाबा हमारे ऊपर देता था। बाबा शिक्षायें भी देता तो प्यार भी इतना करता।
ऐसे ही हमारी दादी की नेचर थी- समझो कोई छोटी बहन जाके दादी को कहती है दादी, आज ऐसा हुआ मेरे को बहुत रोना आ गया, मेरे को फीलिंग आ गई, तो दादी कभी भी उनकी बात बड़ी बहन को सुनायेंगी नहीं, उल्हना नहीं देगी। उसको ऐसा खुश करके भेजती थी, उसको ठीक कर देती थी। जनरल में क्लास कराके टोटल शिक्षा देगी, पर्सनल में इशारे से सुनायेगी, सीधा नहीं कहेगी कि तुमने यह कि या है, उस बात को दादी फिर दिल में नहीं रखती थी।

दिल में अगर किसी बात की फीलिंग बैठ जाती है तो उसकी खुशी गायब हो जाती है इसलिए दिल में बाबा की बातों को बिठा दो। मुरली इतना प्यार से सुनो जो वही रिपीट होती रहे, दूसरी कोई बात आये ही नहीं। अच्छा।

RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Most Popular

Recent Comments