एक बारी बाबा ने कहा जिन सोया तिन खोया, ऐसी हमारी नींद न होवे। जिन जागा तिन पाया, ऐसी नींद होवे। तिन खोया माना अज्ञान की नींद में सोया, भले वो जागते हैं पर सोये हुए हैं तो वो समय गंवा रहे हैं। जिन जागा तो बाबा कहता है अब औरों को जगाओ। सतयुग में देवतायें कैसे सोते होंगे, कैसे चलते होंगे। बाबा ने इतनी अच्छी समझ दी है, सावधानी के साथ शिक्षा भी दी है कि मुझे क्या करने का है। बाबा ने जो समझ दी है यानी बुद्धि दी है, उससे जांच करनी है कि राइट क्या है, रॉन्ग क्या है? उसके लिए विवेक है, बताता है यह राइट है कर ले। किसने कहा कर ले? समय ने कहा- कर ले, बाबा कहता है- कर ले। यह समय है करने का इसलिए कभी भी कैसे करें, क्या करें? यह नहीं कहो क्योंकि यह बड़ी भूल है। कोई ऐसे पूछे तो क्या समझेंगे? क्या जवाब देंगे? बाबा कहता है यह करो, ऐसे करो, प्रैक्टिकल करके दिखला रहा है।
कैसे करें, क्या करें के बजाए पाँच बातें नैचुरल लाइफ में हों। पहले है पवित्रता, अगर थोड़ा भी अपवित्र यानी यथार्थ संकल्प नहीं हैं तो चेहरा मुँझा हुआ है। संकल्प मेरा बताता है पवित्रता से योगबल कितना जमा कर रहे हैं। पवित्रता से सत्यता ऑटोमेटिक जीवन में धारण हो जाती है। परमात्मा सत्य है, पवित्रता से बहुत दिल साफ है तो सच्चा रहना, फिर है धैर्यता, थोड़ा भी अधैर्य हुए तो क्वेश्चन उठेगा कि क्या करूँ, कैसे करूँ? कहाँ गई पवित्रता? कहाँ गई सत्यता? इसलिए नाज़ुक नहीं बनना है। कभी भी ऐसी फीलिंग आई क्या करूँ, कैसे करूँ… मतलब यह अच्छा नहीं है, शोभता नहीं है। पवित्रता, सत्यता, धैर्यता, फिर है नम्रता और मधुरता। सबसे बड़ी सूक्ष्म इच्छा है- मान की, पर पवित्रता, सत्यता, धैर्यता से स्वमान में रह सकते हैं। व्यवहार में बड़ों को रिगार्ड देना, समान वालों को रिस्पेक्ट देना नैचुरल है।
बाबा कहते सिर्फ तुम अपना पुरुषार्थ अच्छा करो और जि़म्मेवारी भले कुछ नहीं सम्भालो। मेरे लिए पुरुषार्थ कोई नहीं करेगा। बाबा भी नहीं करेगा। हम हिम्मत और विश्वास से करेंगे, तो बाबा की मदद काम करती है। क्रअपनी घोट तो नशा चढ़ेञ्ज घोटना यह शब्द सिर्फ कहने लिए नहीं है, अनुभव की बात है कि अपने को देख औरों का दर्शन बन्द कर, सावधानी से पर का चिंतन बन्द करना जैसे जादू का काम हो जाये, इससे जीवन में बहुत परिवर्तन आयेगा। स्व चिंतन और पर चिंतन में कितना अन्तर है, जैसे अंधे को आँख मिली। स्व चिंतन, शुभ चिंतन में रहने से सब काम आपेही हो जाता है, इसमें बहुत शांति से काम लेना होता है। कई जगह मैंने देखा है नाम सेवा है, चिंतन पर का है इसलिए सफलता नहीं मिलती। अपने आप जिनके निमित्त कोई बनते हैं वो करते हैं, जो काम मैं कर भी नहीं सकती हूँ, सिर्फ प्यार से मिलते हैं तो खुश होते हैं, यह अभिमान की खुशी नहीं है, समझ से खुशी है।