आनन्द-मौज के लिए शुभ भावना के ‘चेक’ को चैक करें

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बाबा कहते हैं… चार प्रकार की मौज है। मिलन की मौज, सर्व प्राप्तियों की मौज, समीपता की मौज और समान बनने की मौज। किसी भी परिस्थिति में यदि किसी में ये सारे मौज हैं, वो घबराता नहीं, हिलता नहीं, उसे कोई अप्राप्ति नहीं, कोई चाहत नहीं, जो सर्वप्राप्ति सम्पन्न, परमात्मा के समान है, तभी कहा जा सकता है कि वो आनंद-मौज में है। तो अगर आपसे कोई पूछे कि आनन्द-मौज में हो, तो आप सोच-समझकर जवाब देना।

बहुत दफा जब हम आपस में मिलते हैं तो कहते हैं, आनन्द-मौज में हैं? यह एक शिष्टाचार है। पत्र में भी लिखते हैं, आशा है कि आप आनन्द-मौज में हैं। कोई आनन्द-मौज लिखते हैं, कोई मंगल-कुशल लिखते हैं। हम भी यहाँ पर आनन्द-मौज में है। पहले हम समझते थे कि आनन्द-मौज माना खुशी में रहना। इसी अर्थ से ही हम सब एक-दूसरे से बातें करते हैं अथवा पत्र लिखते हैं। लेकिन बाबा कहते कि चार प्रकार की मौज होती है। आप भी यदि किसी से पूछेंगे कि आप आनन्द-मौज में हैं, तो वे कहेंगे कि हाँजी, आनन्द-मौज में है। फिर आपको पूछना पड़ेगा कि आप किस मौज में हैं?
बाबा ने कहा कि पहली है मिलन की मौज। परमात्मा से मिलन हो गया तो इससे और बड़ी मौज क्या हो सकती है! क्या हम इस मौज में हैं? लोग कहते हैं, ईश्वर-मिलन अथवा प्रभु-मिलन, यह हमारे जीवन का लक्ष्य है। सर्वोच्च प्राप्ति यही है। जिसको यह हो जायेगी वह सब से बड़ी मौज में होगा।
दूसरी है, सर्व प्राप्तियों की मौज। जब परमपिता मिल गया तो सब चीज़े हमेें मिल गयीं, सर्व प्राप्तियाँ हमारी हो गयीं। मन हमारा गद्गद हो गया, चित्त हमारा सन्तुष्ट हो गया। अब और कुछ हमें चाहिए ही नहीं। और लोगों के साथ आप 10 मिनट भी बातें करो तो उनमें कई बार चाहिए-चाहिए के शब्द ही मिलते हैं। हमें यह चाहिए, उस व्यक्ति में यह होना चाहिए, सरकार को यह करना चाहिए, आजकल की दुनिया में यह चाहिए। लेकिन जो मौज में होगा उसे यह अनुभव होगा कि उसे सब प्राप्तियाँ हो गयीं। मेरी सब मनोकामनायें पूर्ण हो गयीं। मेरा मन असन्तुष्ट नहीं है। कोई चीज़ मुझे चाहिए नहीं, जो चाहिए था वो मिल गया।
तीसरी मौज है, समीपता की मौज। जो परमात्मा को पाये हुए है वो समझेगा कि मैं परमात्मा पिता के समीप हूँ। समाज में देखिये, किसी व्यक्ति ने यदि विशेष गणमान्य व्यक्तियों से जान-पहचान बना रखी है तो वह बहुत खुशी-नशे में रहेगा कि इतने सारे बड़े लोगों से मेरी पहचान है, मेरा कोई भी काम आसानी से हो सकता है। इसी प्रकार, जिसकी परमात्मा शिव से, उनके गुणों से, कत्र्तव्य से, स्वभाव-संस्कार से समीपता है उसको मौज ही मौज होगी।
चौथी मौैज है, समान बनने की मौज। जिसमें ईश्वरीय गुण अधिक आ गये होंगे वो बाप समान बन गया होगा। भक्ति मार्ग में तो प्रार्थना करते हैं, हे प्रभु, आप दयालु हो, कृपालु हो, दु:खहर्ता हो, सुखकर्ता हो। लेकिन अब यही गुण अपने में आ जायेंगे, अपने हो जायेंगे, अपने में धारण होंगे तो वह परमात्मा समान बन जायेगा। जो बाप समान अर्थात् परमात्मा समान होगा वही इस मौज में रहेगा।
अगर आपसे कोई पूछे कि आनन्द-मौज में हो, तो आप सोचकर जवाब देना। बाबा कहते, ये चारों बातें अपने में चेक करो। जब दुनिया के सब बैंक बन्द रहते हैं तो एक बैंक तो ज़रूर खुला रहता है। वह सदा ही खुला रहता है। वो कौन-सा बैंक है? उसकी कभी छुट्टी होती ही नहीं। वो है ईश्वरीय बैंक। उसमें सदा कारोबार चलता ही रहता है। उसमें हमारे कर्मों का खाता चलता रहता है। उस खाता में जमा करना वा निकालना चलता ही रहता है। उस बैंक में हमारे चेक आते रहते हैं और जाते रहते हैं। बाबा ने कहा, शुभ-भावना रूपी चेक द्वारा कितनी वृद्धि हुई अथवा जमा हुआ-यह चेक करो। हरेक के प्रति शुभ भावना और शुभ कामना देते रहो। और कुछ यदि नहीं दे सकते हैं तो यह तो सबको दे सकते हैं। इसमें तो खर्चा ही नहीं होता। चेक करना माना अपने कर्मों के बैंक में चेक डालना। दो प्रकार के चेक होते हैं-एक बेयरर्स चेक और दूसरा क्रॉस चेक। शुभ-भावना और शुभ-कामना वाला जो चेक है वो बेयरर्स चेक है। बेयरर्स चेक का कैश सीधा हाथ में मिलता है और क्रॉस चेक का कैश सीधा अकाउण्ट में जमा होता है। अलौकिक क्रॉस चेक तीन प्रकार के होते हैं: 1. संकल्प शक्ति का चेक 2. श्रेष्ठता का चेक 3. बोल का चेक। बाबा ने कहा, संकल्प-शक्ति में जितनी विशेषता लाओगे उतना खाता जमा होता जायेगा। दूसरा, श्रेष्ठता में क्या नवीनता लायी? जब हम नयी दुनिया स्थापन कर रहे हैं और नयी दुनिया मेंं हम जाने के लिए तैयारी कर रहे हैं तो हमारे में भी कोई-न-कोई नवीनता चाहिए। पुरानापन अथवा पुराने संस्कार निकालते जाना चाहिए और नये अर्थात् दैवी संस्कार लेते जाना चाहिए। तो यह चेक करो, यह चेक डालो कि आज हमने कौन-से नये संस्कार अर्थात् दैवी संस्कार भरे। यह जमा होना चाहिए। तीसरा, बाबा कहते हैं, बोल में मधुरता, सन्तुष्टता और सरलता कहाँ तक है, यह चेक करो।
इस प्रकार, हमें चार प्रकार की मौज में रह कर, रोज़ कर्मों के बैंक में सेवा के चेक डालते हुए, जमा खाते को चेक करते हुए आनन्द-मौज में रहना है।

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