मुख पृष्ठअंतर्राष्ट्रीय योग दिवससम्पूर्ण निरोगी बना देगा 'राजयोग'

सम्पूर्ण निरोगी बना देगा ‘राजयोग’

सब कुछ बदलना चाहते हैं। स्वास्थ्य भी अच्छा हो, सुख भी हो, शांति भी हो, समृद्धि भी हो। और चाहें भी क्यों नहीं, क्योंकि यदि मनुष्य हैं तो इन सभी चीज़ों की परम आवश्यकता है। सुख, शांति व समृद्धि हेतु मनुष्य अलग-अलग साधनों का इस्तेमाल कर रहा है, लेकिन इसके साथ भ्रम में भी है कि क्या मैं सही कर रहा हूँ, इसलिए उदासी, मायूसी छायी रहती है सबके चेहरे पर। हमारा अनुभव तो यही कहता है कि हमारे पास एक भाग्यदायिनी संजीवनी बूटी ‘राजयोग’ है जो समस्त रोगों का एकमात्र इलाज है। इससे शरीर आभामय और संचेतना परमात्मा से जुड़ी हुई होगी। यह कुछ नहीं सब कुछ बदल देगा। बस विश्वास कीजिए।

योग का प्रथम सोपान ”मैं ज्योति-बिन्दु हूँ”
योग के लिए सबसे पहले स्वयं को ‘आत्मा’ निश्चय करें क्योंकि इससे हमारी स्वयं की पहचान पक्की होगी। परमात्मा से जुडऩे के लिए हमें अपने आपको उसके स्तर पर ले आना पड़ेगा। यह सम्बन्ध आध्यात्मिक है, न कि शारीरिक। जैसे पॉवर हाउस की तार से घर की बिजली की तार जोडऩे के लिये तार के ऊपर का रबड़ उतारना पड़ता है तभी बिजली का करंट आता है, वैसे ही आत्मा का सम्बन्ध परमात्मा से जोडऩे के लिये देह रूपी रबड़ को भूलना पड़ता है अथवा उससे अलग होना पड़ता है। इसे ही आत्म-अभिमानी होना या ‘प्रत्याहार’ कहा गया है। इसके लिए हमें अपने को ज्योतिर्बिंदु आत्मा समझना है।

लाइलाज का इलाज राजयोग
योग का अर्थ है आत्मा का सम्बन्ध परमात्मा के साथ जोडऩा। आत्मा और परमात्मा के सर्वश्रेष्ठ मिलन को राजयोग कहते हैं। राजयोग सभी योगों का राजा है। स्वयं परमात्मा ही अपना परिचय देकर आत्मा को अपने साथ योग लगाने की विधि बताते हैं। यह योग ”राजयोग” इसलिए भी है क्योंकि इसे सभी के मन के राजा परमात्मा ने स्वयं सिखाया। इस योग द्वारा हमारे संस्कार उच्च अथवा ”रॉयल” बनते हैं इसलिए भी इसे राजयोग कहा जाता है। राजयोग ही वर्तमान जीवन में कर्मों में श्रेष्ठता लाकर हमें कर्मेन्द्रियों का राजा बनाता है।

  1. स्वयं के अंदर झाँकें
    यह प्रथम कदम है, जिसमें आपको अपने व्यर्थ विचारों को हटाकर स्वयं को आत्मा समझना है। अब स्वयं के विचारों के रूपों को आपको देखना है। यह आपके मानसिक विचारों की गति को सामान्य रूप से कम कर देगा। इसके लिए आप किसी भी आरामदायक स्थिति में बैठ सकते हैं।
  2. अब उसे सही दिशा दें
    आप सकारात्मक तथा श्रेष्ठ विचारों को बार-बार मन में दोहरायें, इससे आपका मन व्यवस्थित हो जाएगा। उसे एक सही दिशा मिल जाएगी। विचारों के प्रवाह को रोकने से हमें सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
  3. इन विचारों को दें मानसिक चित्रण
    सकारात्मक तथा श्रेष्ठ विचारों को बुद्धि(तीसरी आँख) द्वारा इमेज या कलरफुल बनाकर देखना है। इससे हमारा अवचेतन मन पूर्णतया सक्रिय हो जाता है। रचनात्मक विचार जब हमारे अवचेतन मन से दृश्य रूप में आना शुरु कर देते हैं तो हमारा मन शांत होने लगता है। ये सकारात्मक और मूल्यवान चित्र न केवल हमारे शरीर और मन को आराम देते हैं बल्कि हमें सशक्त भी करते हैं।
  4. इन चित्रों को दिव्यता दें
    जब हम श्रेष्ठ विचारों रूपी चित्रों को परमात्मा की सर्वोच्च शक्तियों से वेरीफाई(सत्यापित) कराते हैं तो उनमें और शक्ति आ जाती है। हमें कुछ भी नहीं सोच लेना है, हमें वो सोचना है जिसमें हमारी आत्मा दिव्य बने, अर्थात् हम दिव्य बनें। इसके लिए सर्वोच्च सत्ता, परमात्मा जो गुणों का सागर है, उससे जुडऩा तो पड़ेगा ना! तभी हमारी अन्दर ये सारी शक्तियाँ आ जायेंगी।
  5. अब करें अनुभूति
    किसी चीज़ को पक्का करने के लिए बार-बार उस चीज़ को दोहराना पड़ता है। इसके लिए हमें एकाग्रता की आवश्यकता है। जैसे आपकी एकाग्रता बढ़ेगी, अर्थात् एक श्रेष्ठ संकल्प में जब आप स्थित होंगे तो आपको सुखद अनुभूति होने लगेगी। आप एक ऐसी नई दुनिया में प्रवेश कर जाते हैं जहाँ आप पूर्णत: शांत हैं। इस अवस्था में आपकी इंद्रियाँ आपके वश हो जाती हैं जिससे आप शांत हो जाते हैं और आपका सर्वोच्च सत्ता से संपर्क हो जाता है, जिससे आप सम्पूर्ण रूप से शांति की अनुभूति में खो जाते हैं।
RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Most Popular

Recent Comments