कहा जाता है कि मनुष्य का पूरा शरीर एटम से बना है या अणु-परमाणुओं से निर्मित है। इस दुनिया में हर एक वस्तु जो इन आँखों से दिखाई दे रही है वो अणु-परमाणु से ही निर्मित है। और अणु-परमाणु की एक विशेषता है कि वो निरंतर गतिशील हैं। जो चीज़ गतिशील है उसपर आप ध्यान कैसे लगा सकते हैं! किसी भी देवी-देवता की प्रतिमा है या फिर किसी सिद्ध पुरुष की प्रतिमा है, उसकी आकृति पर ध्यान लगाना, तो क्या हमारा ध्यान टिकेगा? नहीं टिक सकता। कारण, क्योंकि वो गतिशील हैं और हमारी आँखें भी उसी गति के साथ उसको देखती हैं। हमारी आँखों की पुतली भी उसी हिसाब से नाचती है जैसे मूर्ति है, कभी आँख को देख लेगी, कभी कान को देख लेगी, कभी नाक को देख लेगी, मतलब एक जगह स्थिर नहीं हो सकती। योग उससे हो, जो स्थिर हो। मूर्तियां तो हमने बनाई हैं जो अणु-परमाणु से ही बनी हैं। या किसी मनुष्य के चित्र को देखकर हम स्थिर तो हो ही नहीं सकते। इसीलिए इसका ध्यान और योग से कोई सम्बंध नहीं। हम भावनावश भले बैठ जायें पर हम योग नहीं लगा रहे हैं।
योग उससे… जो स्थिर हो
इस दुनिया में सभी वैज्ञानिक या मनोवैज्ञानिक, वो हमेशा मैटर की बात करते हैं या मैटर से जुड़ी हुई चीज़ों के बारे में बात करते हैं। कभी इससे ऊपर उठकर बात नहीं की। क्योंकि जो तत्व हैं या तत्व से बनी हुई चीज़ें हैं वो अस्थिर है यानी गतिशील हैं और उसपर हमारा मन टिक नहीं सकता। परमात्मा एक अनादि अविनाशी सत्ता है जो स्थिर है, और अपरिवर्तनशील है। जिसका स्वरूप ज्योति है जो मैटर से और इन पाँच तत्वों से परे और पार है। जिसका बैकग्राउण्ड भी उसी प्रकाश से निर्मित है जिसपर आपका मन स्थिर हो जायेगा। उदाहरण के लिए आप अपने कमरे के एक बिल्कुल सफेद दीवार पर देखो, जिसपर कोई छोटा-सा दाग भी न हो, बिल्कुल क्लीन हो तो उसपर आपका मन स्थिर हो जायेगा, क्यों, क्योंकि वहां और कुछ देखने और सोचने के लिए स्थान ही नहीं है। तो हमने मन को सोचने के लिए स्पेस दिया तो वो रुक गया। ऐसे ही परमधाम एक बैकग्राउण्ड है जो बिल्कुल गोल्डन लाइट का प्रकाश है। इस प्रकाश में कोई ऐसी आकृति नहीं है जिसपर आपका संकल्प चले। और परमपिता परमात्मा पर वैसे ही ध्यान हमारा टिक जाना है क्योंकि वो कोई आकृति नहीं है, चित्र नहीं है। इसीलिए परमात्म शिव ज्योति बिंदु स्वरूप, और उनके पीछे का बैकग्राउण्ड भी लाल प्रकाश का बना है। जिसे देखने से, मिलने से, चिंतन करने से, बैठने से अगर कुछ मिलेगा तो मिलेगी शांति। इसलिए योग एक स्थिर अवस्था को प्राप्त करने का आधार है और स्थिरता सिर्फ और सिर्फ निराकार परमात्मा शिव के पास ही है। तो उससे योग या उससे जुड़ाव ही सही योग की विधि है और उसी से हम उस तरह का सहयोग ले पायेंगे और अपने चिंतन को शक्तिशाली बनायेंगे।