बच्चे की परवरिश माँ-बाप के लिए एक अपरिहार्य आवश्यकता है। बच्चों को पढ़ाने का भी कार्य करना है। माता-पिता को हमेशा उनके भविष्य को लेकर चिंतित रहते देखा जाता है। लेकिन जब बच्चा अपना मन भटकाता है या उसका मन भटकता है बाहरी चीज़ों को देखकर, तब माता-पिता उसको समझाने के बजाय ये कहकर डांट लगा देते हैं कि आपको पढऩा चाहिए।
आज कलियुग की ये मानसिक स्थिति है। समझने के लिए हम ये बात आपके सामने रख रहे हैं कि शुरु में गुरुकुल परंपरा में बच्चों को सात से पच्चीस साल तक ध्यान प्रक्रिया से गुज़ारा जाता था। वहां पढ़ाई पर ज़ोर कम, ध्यान पर ज़ोर ज्य़ादा था। क्यों था, क्योंकि एक बार ध्यान सीख लेने के बाद किसी भी क्षेत्र में हम बहुत आराम से सफल हो सकते हैं। जो भी सीखने वाली चीज़ होगी उसे हम जल्दी सीख सकते हैं। इसलिए ध्यान पहली नितांत आवश्यकता है बच्चों के लिए। बच्चे को चाहे हम कितना ही ट्यूशन, कोचिंग आदि आदि में डाल दें लेकिन उसका माइंड हमेशा बाहर की तरफ होता और उसकी ऊर्जा डाउन रहती है।
ध्यान बच्चे को हर स्तर पर जगाता है। शारीरिक स्वास्थ्य के साथ, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर भी। कहने का अर्थ है, हर स्तर पर अगर हम जगे हुए हैं तो पढ़ाई या कोई भी क्षेत्र हमारे लिए आसान हो जाता है। इसीलिए बच्चों को और-और चीज़ों में डालने से अच्छा है कि उनको किसी भी चीज़ के महत्व को बताकर उससे जोड़ देना चाहिए। कई बार बच्चे जि़द्द करते हैं कि हमको यह नहीं, हमको यह सीखना है। लेकिन दुनिया के किसी भी क्षेत्र में जाने के लिए पढ़ाई ज़रूरी है और पढ़ाई के लिए ध्यान ज़रूरी है। इसीलिए दोनों स्तर से बच्चे को गाइडलाइन देते रहेंगे तो बच्चा जल्दी ग्रो कर जायेगा और हमेशा जीवन में तरक्की करेगा। अत: अति अति आवश्यक है ध्यान और योग सभी के लिए।