अन्तर्मुखता नहीं होगी तो त्याग-तपस्या भी नहीं होगी

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जो ईश्वरीय कायदे में चलते हैं, कुदरती लवफुल बन जाते हैं। वे हर एक को सच्चे प्रेम का अनुभव करायेंगे। अगर हम लॉ को तोड़ देते हैं तो प्यार मिल नहीं सकता।

बाबा द्वारा मिली हुई मीठी शिक्षाओं को धारण करने में अन्तर्मुखता बहुत मदद करती है। अन्तर्मुखता इशारा देती बाबा जो कहता है वह करना है। बाहरमुखता में याद करना पड़ता, अन्तर्मुखता याद की ओर खींचती है। हमारा पुरुषार्थ नैचुरल सहज हो जाता है। अन्तर्मुखी रहने से हमारे जीवन में दिव्यता और अलौकिकता नैचुरल दिखाई देती है।
अन्तर्मुखता का रस वैरागी बना देता है, उन्हें बाहर की कोई भी वस्तु अपनी ओर खींच नहीं सकती। बाहरमुखता वाले को अनेक बाहर के रस खींचते रहते हैं। ब्राह्मणों में हम सर्वोत्तम कुल भूषण बनें, जब यह अटेन्शन रहता है तब जीवन में दिव्यता और अलौकिकता दिखाई देती है।
ब्राह्मण बनने से जीवन में पवित्रता आ गई। आहार-व्यवहार सब चेंज हो गया। बाहर वालों की भेंट में जीवन में परिवर्तन आ गया। लेकिन बाबा की भेंट में कहेंगे अभी इसका पुरुषार्थ साधारण है। तो क्या परिवर्तन चाहिए? जीवन में दिव्यता और अलौकिकता हो। संगमयुगी ब्राह्मण बने, पतित विकारी जीवन से निकल आये यह बहुत अच्छा लेकिन ब्राह्मण सो देवता बनने के लक्षण हमारे में आ जायें, वो संस्कार दिखाई पड़ें।
ऊंचे ते ऊंचा बाप हमें ऊंचे ते ऊंचा बनाता है। इस बात को ख्याल में रखें तो हमसे कोई भी ऐसी बात हो नहीं सकती। जब हम अन्तर्मुखी होंगे तब ही ऐसी चेकिंग हो सकती है। हम अपना सच्चा चार्ट तब ही रख सकते जब अन्तर्मुखी हैं। बाहरमुखता छोटी-छोटी बातों के प्रभाव में खींच लेती है। अन्तर्मुखता इनसे मुक्त रखती है। अन्तर्मुखता हमें मजबूत कर देती है। देखते हुए भी नहीं देखते। उनकी अटैचमेन्ट छूट जाती है।
जितना हम आगे बढ़ते रहेंगे उतना परीक्षायें आती रहेंगी, लेकिन परीक्षा शब्द भी क्यों? यह बड़ी बात नहीं है। बाबा पढ़ा रहा है, हम पढ़ रहे हैं, जो करेगा सो पायेगा- यह शब्द भी नहीं कह सकते। यह भी जैसे अन्दर से खराब शब्द बोलना है। अन्दर से जानते हैं हर एक के कर्म का हिसाब-किताब है। हम और ही सीखते हैं, मैं ऐसी गलती न करूँ। उनसे नफरत नहीं आती, लेकिन हम सावधान हो जाते हैं।
ब्राह्मणों को लॉ फुल बनकर रहना है। लॉ पर चलने से लव पैदा हो जाता है। जो ईश्वरीय कायदे में चलते हैं, कुदरती लवफुल बन जाते हैं। वे हर एक को सच्चे प्रेम का अनुभव करायेंगे। अगर हम लॉ को तोड़ देते हैं तो प्यार मिल नहीं सकता। मर्यादा पुरुषोत्तम बनने की शिक्षाओं पर हम नहीं चलते हैं तो लव नहीं मिलता। प्रेम भी रूखा-रूखा नहीं, लेकिन रिगार्ड सहित प्रेम हो।
जिसने अपने पुरुषार्थ की लेवल अच्छी रखी है उनसे औरों को प्रेरणा मिलती है। हमारा बोलचाल, पुरुषार्थ साधारण न हो। हमारा लक्ष्य क्या है, यह अन्तर्मुखी होकर हम सोचें। सदा आगे बढऩे की भावना हो। जब बाबा खींच रहा है तो कोई बात मुझे रोक नहीं सकती। पुरुषार्थ में याद का बल हो। मुख से कुछ न कहकर अन्दर से याद की सच्ची लगन हो। तो जो होना चाहिए वही होगा। अन्दर शुद्ध संकल्प की दृढ़ता हो।
अन्तर्मुखता नहीं होगी तो त्याग तपस्या भी नहीं होगी। ऐसे ही चलते रहेंगे। हम जो चाहते हैं और बाबा जो चाहता है वह हमारे से मिस न हो जाये, यह ध्यान रखना है, इसलिए साधारण पुरुषार्थ न हो। जो लक्ष्य मिला है, उसे प्राप्त करने का पुरुषार्थ हो।

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