भोगना कौन भोगता… मनुष्य या पशु-पक्षी…!!!

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पशु-पक्षी योनि में तो खाली शारीरिक भोगना होगी। आज पशु-पक्षियों को कोई टेंशन तो नहीं है। और मनुष्य को जितनी टेंशन होती है उस हिसाब से कितना टेंशन में जीता है। मनुष्य इतना ही नहीं शारीरिक भोगना, मानसिक भोगना और इमोशनल अत्याचार, अनेक प्रकार की भोगनाओं से गुज़रता है…

कर्म और फल एक-दूसरे के पूरक हैं। इसीलिए व्यक्ति चाहे अपनी चालाकी से कहीं से छूट भी जाए लेकिन अपने कर्मों से कभी छूट नहीं सकता है। शास्त्रों के अंदर यह बात आती है कि मनुष्य जैसा कर्म करेगा वैसी योनी में उसको जाना पड़ेगा। अपने फल को भोगने के लिए पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े आदि कितनी योनियों में जाना पड़ता है। 84 लाख योनियों से गुज़र कर लास्ट में उसको मनुष्य जीवन प्राप्त होता है। अब इस बात को अच्छी तरह से हम समझें कि मान लो कि एक व्यक्ति ने बुरा कर्म किया और उसके फलस्वरुप कर्म का फल भोगने के लिए उसको 84 लाख योनियों से गुज़रना पड़ा। लास्ट में उसको मनुष्य जन्म मिलता है इसलिए कहते हैं मनुष्य जन्म अति दुर्लभ है। लेकिन सोचने की बात तो यह है कि मान लो मैंने कोई बुरा कर्म किया इसलिए मुझे पशु योनि में जाना पड़ा अब पशु योनि में अगर गई तो अपना कर्म का फल भोगने के लिए कहते हैं, मान लो व्यक्ति ने कोई हिंसक कर्म किया तो उसको हिंसक योनि मिलेगी, कोई बिल्ली की तरह चोरी करके दूध पी जाती है या ऐसा चोरी से खा लेती है तो उसको दूसरी योनि में बिल्ली की योनि प्राप्त होती है। अब मान लो कि एक व्यक्ति ने चोरी की और उसके फलस्वरूप उसको वह योनि प्राप्त हुई, जहाँ उसको चोरी से खाना पड़ता है। तो फल कैसे हुआ? क्योंकि फल उसको कहा जाता है कि जहाँ व्यक्ति को डीप रियलाइज़ेशन हो कि यह कर्म गलत था, यह कर्म मुझे नहीं करना चाहिए था। तब तो उसके संस्कारों में परिवर्तन आएगा लेकिन अगर उसको वही योनि मिली या हिंसक कर्म किया, इसलिए हिंसक योनि में जाना पड़ा उसको, तब वहाँ उसके संस्कार परिवर्तन होंगे या हिंसा के संस्कार और दृढ़ बनेंगे? सोचने कि बात है!
साथ में हम देखते हैं कि मान लो कि सारे फल भोग करके 84 लाख योनियों से गुज़र कर फिर जब मानव बनता है तो मनुष्य हर रीति से संपूर्ण होना चाहिए ना! लेकिन कोई बच्चा जन्म से ही लूला, लंगड़ा, अंधा, बहरा पैदा होता है। अब जन्मते ही उसने कौन-सा कर्म किया? जन्मते ही तो ऐसा कोई कर्म नहीं हुआ ना, जिसकी वजह से ऐसे पैदा हुए।
आज की दुनिया में तो यहां तक सुनने को मिलता है कि एक बच्चा गर्भ में है और गर्भ में उसके ऊपर ऑपरेशन किया जा रहा है। अब जो बच्चा पैदा ही नहीं हुआ, जीवन का आरंभ ही नहीं किया तो उसके पैदा होने से पहले ही इतनी भोगना, इतनी यातना से गुज़रना यह कौन से कर्म का फल है? पूर्व जन्म के कर्म का फल कहें तो वो भोग करके आया न कि 84 लाख योनियों से गुज़र के। आज हम देखते हैं कि एक बच्चा गोल्डन स्पून इन माउथ है तो दूसरे बच्चे को दूध भी नसीब नहीं होता। जन्मते ही यह दोनों बच्चों के अंदर इतना अंतर क्यों है? यही कहेंगे कि कर्मों की गति अति गुह्य है।
आज हम आपको ये स्पष्ट कर दें कि किसी भी मनुष्य की आत्मा हर योनि में नहीं जाती, मनुष्य की आत्मा मनुष्य योनि में ही जाती है और उसी में रहकर अपने कर्मों का फल भोगती है। दूसरी बात, हम यह क्यों समझें कि पशु योनि या पक्षी योनि भोगना की योनि है। आज पक्षियों को देखो मस्त गगन में उड़ते हैं, कौन-सी भोगना है उसको? ऊंचे गगन में आकाश में उड़ रहे हैं, मौज कर रहे हैं। और मनुष्य को देखो, मनुष्य योनि में कितने प्रकार की भोगनाएं हैं। पशु-पक्षी योनि में तो खाली शारीरिक भोगना होगी। आज पशु-पक्षियों को कोई टेंशन तो नहीं है। और मनुष्य को जितनी टेंशन होती है उस हिसाब से कितना टेंशन में जीता है। मनुष्य इतना ही नहीं शारीरिक भोगना, मानसिक भोगना और इमोशनल अत्याचार, अनेक प्रकार की भोगनाओं से गुज़रता है तभी तो मनुष्य कभी-कभी इतना तंग हो जाता है कि जीवन का अंत करने का सोच लेता है, सुसाइड कर लेता है। कभी सुना हमने कोई पशु या पक्षी ने सुसाइड किया? नहीं ना! वह तो खुश है अपनी योनि में। तो भोगना की योनि कौन-सी है? मनुष्य योनि पशु-पक्षी से भी कई गुना अधिक भोगना की योनि है। इसलिये आज के बाद हम यह न समझें कि यह भोगना कि योनि है।

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