मेरे पास इतनी शक्तियां हों… जो मैं दूसरों को शक्तियों की सकाश दे सकूं…

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जैसे स्थान का महत्त्व होता है ऐसे स्थान के साथ स्थिति भी बहुत अच्छी चाहिए। स्थिति श्रेष्ठ है तो स्थान का महत्त्व है। अगर स्थिति श्रेष्ठ नहीं तो स्थान का भी महत्त्व नहीं। तो हमको चेक करना है कि हमारी स्थिति महान है या साधारण? हम सिर्फ कर्म कर्ता हैं या कर्म करते हुए बाबा जो स्थिति की बात कहता है वो हैं? कर्म करते कर्मयोगी स्थिति रहती है? क्योंकि कर्म के बिना तो कोई रह नहीं सकता है। इसलिए बाबा कहता है जितना हो सके बिज़ी रहो क्योंकि मन सेकण्ड में यहाँ से कहीं भी, वल्र्ड के किसी भी कोने में बिना टिकट के पहुँच सकता है। जो भी स्थान आपने देखा होगा वहाँ अगर पहुँचने चाहो तो वहाँ मन से एक सेकण्ड में पहुँच सकते हो। तो कर्मणा सेवा भी जितना रूचि से यज्ञ सेवा समझकर करेंगे, उतना मन पुण्य का खाता बनाता रहेगा। सेवा तो हम सब करते हैं जो भी डयूटीज़ हैं वो हर एक की अपनी-अपनी है लेकिन सिर्फ सेवा करते हैं या सेवा करते पुण्य जमा करते हैं? अगर कर्म करते हुए हमारा पुण्य का खाता जमा हो रहा है तो उसकी निशानी यह होगी कि तन-मन में बहुत खुशी होगी और भरपूरता का नशा होगा। जैसे कोई साहूकार होता है तो उनकी शक्ल, चाल-चलन से हम समझ जाते हैं कि यह रॉयल घर का है, यह थोड़ा हल्का है। तो बाबा भी हमसे क्या चाहता है? बाबा कहता है जितना आगे चलेंगे, समय समीप आता जा रहा है और आता जायेगा तो आपको वाणी की सेवा करने का टाइम ही नहीं होगा। न सुनने वालों को टाइम होगा, न सुनाने वालों को, लेकिन अन्त में आपकी सेवा जो चलनी है वो या तो चेहरे से, चलन से या तो मन की शक्ति यानी मन्सा सेवा के आधार से उनकी सेवा होती रहेगी क्योंकि टाइम कम होगा।
तो सकाश देने की जो शक्ति है, वो पहले हमारे में वो सकाश बाबा द्वारा भरी हुई होगी तभी हम दूसरे को सकाश दे सकेंगे। तो चेक करो कि हमारे पास इतनी शक्तियां हैं जो हम शक्तियों की सकाश दूसरे को दे सकें? मन द्वारा, तन द्वारा तो है ही मुश्किल। तो यह चेकिंग करते हैं? क्योंकि बाबा ने इतला दे दिया है कि समय समीप आ रहा है और आयेगा अचानक, यह बाबा ने स्पष्ट सूचना दे दी है। तो होना अचानक है क्योंकि नम्बरवार माला है, जिसमें एक नम्बर सब तो लेंगे नहीं। तो इतनी हमारी तैयारी है? अचानक कुछ भी हो जाये तो मैं नष्टोमोहा हूँ? मित्र-सम्बन्धियों का मोह तो जल्दी कम हो जाता है, कोई-कोई होगा जिसे बहुत ज्य़ादा हो। परन्तु अपने देहभान का मोह जो है वो मुश्किल ही कम होता है। तो बाबा ने कहा है कि अभी अपने चेहरे और चलन से दिखाई दे कि हाँ, यह कुछ विशेष आत्मा है। आपके चेहरे से ही पता पड़े कि यह कोई न्यारे हैं। तो हमारी स्थिति जो है, कर्म करते हुए कर्म की गति को जानते हुए चेक करना है कि श्रेष्ठ कर्म हैं या साधारण कर्म है या उल्टे कर्म हैं?

समझो हमको यह स्मृति है ही नहीं कि यज्ञ सेवा है, साधारण रीति से जो डयूटी है वो बजा रहे हैं तो हमारे कर्म का फल क्या मिलेगा? साधारण ही मिलेगा ना। और यज्ञ सेवा है, यज्ञ सेवा का पुण्य कितना है वो हमारा जमा होगा! कर्मों की गति को हमेशा सामने रखना चाहिए- मैं कर्म कर रहा हूँ लेकिन इस कर्म की सफलता क्या है? नहीं तो कर्मों की गति ध्यान पर न होने से कर्म व सेवा तो कर रहे हैं लेकिन पुण्य नहीं जमा होता है क्योंकि कर्मकर्ता तो दुनिया में बहुत हैं।
जो भी ऐसे काम होते हैं जो नहीं होने चाहिए, उस काम से आपको कभी भी सुख नहीं मिल सकता है। तो अगर कोई ऐसे कर्म करता है तो उसको वरदान नहीं मिलता है, श्राप मिलता है। भगवान का श्राप जिसके सिर पर आयेगा तो उसको खुशी कैसे होगी! आगे कैसे बढ़ेगा! उसके जीवन का लक्ष्य पूरा कैसे होगा? तो हमको बहुत सावधानी रखनी चाहिए। इसलिए कभी बेकायदे काम नहीं करना चाहिए क्योंकि उससे पुण्य जमा नहीं होगा। तो कोई भी कर्म ऐसा न हो, जो श्रीमत के विपरित हो। अगर श्रीमत पर नहीं चलते हैं तो श्रापित हो जाते हैं। अपनी विशेषता का, अपनी चार्ज व डयूटी का नशा होने कारण, अभिमान के वश अन्दर बाहर युद्ध चलती रहती है। कोई तो हाथ, पाँव भी चला लेते हैं। फिर सोचते हैं कि हमारी सेफ्टी क्या है? हमारे पास कुछ पैसा होना चाहिए उसके लिए फिर कोई भी प्रयत्न करते हैं, एक पैसा एक पोजीशन – यह दोनों ही विकर्म कराते हैं। पोजीशन माना रोब, अपनी विशेषता का, डयूटी का, दिमाग का उससे गलतियाँ होती हैं। इसलिए दुनिया में भी कॉमन कहावत है कि पहले सोचो फिर करो। तो उस समय मानो हम सोचते नहीं हैं तो बाबा ने कहा जिस समय कर्म करते हो उस समय सोचके करते हो तो वो श्रेष्ठ कर्म हो जाता है। अगर उस समय आपने सोचा नहीं तो पीछे वो सोच पश्चाताप के रूप में बदल जाता है। जैसे मानो मुझे यह करना नहीं चाहिए, उस समय मैंने सोचा नहीं, थोड़ा सोच चलेगा फिर भी कर लेती हूँ, तो कर तो लिया लेकिन मेरा मन पश्चाताप करता ज़रूर है, उसको हम दबा देते हैं क्योंकि उसमें बॉडी कॉन्सेस के कारण माया की थोड़ी प्रवेशता होती है। तो बाबा ने कहा कि समय पर अगर नहीं सोचा तो वो सोच बदलके पश्चाताप हो जाता है। इसलिए सोच समझके कर्म करो तो पश्चाताप नहीं करना पड़ेगा। नहीं तो भगवान के घर में आके भी पश्चाताप ही जमा हो जायेगा। तो यह सजा बहुत कड़ी होती है। और समझदार, ज्ञानी भगवान के डायरेक्ट बच्चे उनको तो फीलिंग बहुत जल्दी आयेगी। जीवन की सारी गलतियाँ एक रोल के रूप में इक_ी होके सामने आवें तो कोई भी हो वो तो घबरायेगा ही। वो बहुत भयानक होता है फिर अन्दर का जो भय है वो उसकी सूरत में आता है। तो धर्मराज की सज़ायें माना कोई ऐसे गरम तवा आदि नहीं है, लेकिन महसूसता इतनी होती है जैसे एक घड़ी का एम मास का क्या एक वर्ष समान लगेगा। इसलिए हमको अपने कर्मों के ऊपर बहुत अटेन्शन देना चाहिए। कर्मों की गति बड़ी गुह्य है। हम साधारण रीति से कर्म करने मे लग जाते हैं, चलो आज का दिन पूरा हुआ ठीक हो गया। अच्छा, थोड़ा योग लगा दिया, मुरली सुन ली, डयूटी अपनी कर ली, दिन पूरा हुआ लेकिन कैसा मेरा दिन पूरा हुआ? क्या जमा किया? क्योंकि जमा की बैंक सिर्फ संगम पर खुलती है और कोई युग में ऐसा नहीं होता है। तो इतना कर्मों के गति के ऊपर अटेन्शन है कि साधारण रीति से चलते हैं? कमाया कितना? जमा कितना हुआ? क्योंकि अभी जमा किया हुआ ही फिर तो खायेंगे तो इतना अटेन्शन रहता है अपने ऊपर कि अभी भी जमा किया तो कभी नहीं हो सकता है। जितना किया जमा उनता ही मिलेगा, कमा नहीं सकते हैं। कमाई अभी है, सीधा बाबा ने कहा जमा की बैंक ही संगम पर खुलती है और कोई युग में खुलती नहीं है। कितनी वार्निंग दी बाबा ने, तो इतना अटेन्शन हमारा अपने ऊपर हो।
अगर हमारी चेकिंग अच्छी तरह से है तो हमारी छोटी सी गलतियाँ भी बड़ी दिखाई देती हैं और अटेन्शन कम है तो बड़ी गलती के लिए भी कहेंगे यह तो होता ही है, चलता ही है, सम्पूर्ण थोड़े ही बने हैं, कोई भी नहीं बना है, यह बाबा ने कहा, इस प्रकार से माया को बिठा देते हो, पानी भी पिला देते हो तो माया की भी आदत पड़ जाती है। क्यों, क्या कैसे की चाय-पानी माया को पिलाते हो इसलिए वो बैठ जाती है। तो बाबा ने वर्तमान समय बहुत अटेन्शन खिंचवाया है, अभी बाप का रूप है, टीचर का रूप है, अगर सतगुरू का रूप बाबा प्रैक्टिकल में धारणा करेगा तो यह सभी बातें जो हैं ना वो हमको खाने लगेंगी। अभी तो थोड़ा बाप का रूप है, तो प्यार भी मिलता है थोड़ा वो भी मिलता है फिर तो ऑफिशियली हिसाब-किताब लेना है, बाबा। उस समय कुछ करने चाहेंगे तो कुछ नहीं कर सकेंगे। इसलिए हमारी यही आपसे रिक्वेस्ट है कि अपने कर्मों की चेकिंग ज़रूर करो। दूसरे नहीं करेंगे दूसरे को उल्टा-सुल्टा भी कह देंगे। मैं जो हूँ जैसा हूँ, मैं तो अपने मन को जानता हूँ और खुद के बिना और कोई नहीं जान सकते हैं। तो अभी अच्छी तरह से अपने आपकी रियलाइजेशन करो। तो हम सब मिल करके क्यों नहीं ऐसा वायुमण्डल बनायें जो बाबा हमको वरदान ही वरदान देवे। वाह बच्चे वाह! कह दे। ऐसे बाबा वाह बच्चे! कहता है लेकिन कर्मों की गति में वाह बच्चे वाह!कहे। कर्म और योगी की स्टेज हर समय हो तो कोई भी हमारे हाथ-पाँव से दृष्टि से मुख से कोई ऐसे कर्म न हों, जो मिक्स हों। तो सभी बाबा को क्या जवाब देंगे? ऐसा कोई समाचार नहीं आवे, क्योंकि छिपता ता कुछ है नहीं और पहलते तो अपना मन खाता है, वेस्ट थॉट चलते हैं, खुशी गुम हो जाती है। तो सभी निर्विघ्न रहेंगे ना! कर्मों की गुह्य गति को पूर्ण जानने वाले हो ना! हम एक दो को उमंग उल् लास दे करके बाबा को कहें बाबा आपने कहा और हमने किया, यह शब्द कितना अच्छा है। गे गे वाली भाषा नहीं करो। बाबा ने कहा हमने किया- यह भाषा हो। अरे, हम नहीं करेंगे तो कौन करेंगे? क्योंकि हमने बाबा की इतनी पालना ली है, इतनी सेवा की है। वो तो कोई एक आध होगा जो लास्ट में आगे आगे जायेगा, बाकी तो हम नहीं होंगे तो कौन होंगे। इसमें पक्को बनो।
सरेण्डर माना अपना विवेक जो है वो श्रीमत के अंडर हो। तो ऐसी बाबा को रिज़ल्ट देना। अगर कोई ऐसा कमाल कर दिखायेंगे तो बाबा सोने के पुष्पों की वर्षा करता है। और उस समय की खुशी ऐसी होती है जिसमें अतीन्द्रिय सुख मिलता है। तो अभी ऐसे अतीन्द्रिय सुख लो। बाबा को कहो कि हम ही हैं। और हम ही होंगे, इतना तो नशा रखना है।

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