दुनिया के हर कोने में बाबा के बच्चे हैं, बाबा की उन पर नज़र है। कोई कहते हैं हम बाबा को ढूंढ रहे थे, कोई कहते हमें बाबा ने ढूँढा। हम तो मस्ती में घूम रहे थे, कमा रहे थे, खा रहे थे, गँवा रहे थे। यहाँ तो है बूंद-बूंद से तालाब। बाबा मेरा है, इसका एक बाप है, उसका दूसरा नहीं। हम सबका बाप एक है, लक्ष्य एक है। बाबा का घर परमधाम हमारा घर है। उस घर से आये हैं अब वापस जाने का टाइम आ गया है, नाटक में पार्ट पूरा हुआ है। क्रियेटर, डायरेक्टर सब अभी स्टेज पर खड़े हो गये हैं। सबको वापस जाना है। हमको क्या करना है? यह परमधाम, निर्वाणधाम में जाना है तो यहाँ ही पावन बनना है, आवाज़ से परे रहना है। शान्तिधाम पावन धाम है, जहाँ कोई कर्म नहीं है, सम्बन्ध भी नहीं है।
यह शरीर भी क्या है, अभी मरा, जलाया फिर उसकी राख रखने में भी डर लगता है। कहते हैं सीधे दरिया में डाल… लेकिन ऐसे शरीर का अभिमान कितना है! पढ़ाई का, घर का, पैसे का, सुन्दरता का नशा कितना दिखाते हैं। परन्तु यह सब है नाशवान। मैं कौन हूँ, मेरा कौन है- यह बाबा ने समझाया है। बाबा ने अन्दर की आँखें खोल दी हैं। न कोई मेरा है, न कोई मेरी है, न कोई तेरा है, न कोई तेरी है।
एकाग्रता की शक्ति से बुद्धि को स्थिर बनाना है। मैं आत्मा परमात्मा की हूँ, स्वधर्म शान्त है, ड्रामा में हरेक का पार्ट अपना है। मेरा किसी के साथ कोई हिसाब-किताब नहीं है। कर्म करना है पर पुराना कोई कर्मबन्धन नहीं है जो खींचे। कर्मबन्धन कोई पुश करेगा, कोई पुल करेगा। याद की शक्ति से कर्मबन्धन कट जाते हैं, विकर्म विनाश हो जाते हैं। अभी योग लगाते हैं, योग से शक्ति मिल रही है और कर्म से दुआयें मिल रही हैं। दुआयें कैसे मिलती हैं, यह रिहर्सल करके देखो। सबके दिलों से दुआ निकलती रहे, बाबा हमारी ऐसी लाइफ बना रहा है। सबकी दुआ मिले, बाबा की शक्ति मिले तो विश्व कल्याणकारी बन जायेंगे। तो बाबा कहते हैं बच्चे अपने आपको अन्दर चेक करते जाओ, बाबा से क्या-क्या मिला है, अभी और क्या-क्या लेना है। इतनी कमाई रोज़ हो रही है। बाबा का एक-एक बोल लाखों का है। ऐसे ही हमारा भी बोल हो।
सारे दिन में देखें मेरा अपने ऊपर कितना ध्यान है? जिनके लिए सोचते हो, जिनकी चिन्ता करते हो, उनको आपकी ज़रूरत ही नहीं है। भले आप उनकी चिन्ता में मर जाओ कहेंगे फालतू चिन्ता करता है, मेरे को जो करना है मैं करूँगा। तो मैं क्यों चिन्ता करूँ!
राज्य पद पाना है तो यहाँ संस्कार बनाने हैं। संस्कार बनाने में पहले प्युरिटी आई, अशुद्धता का नाम निशान नहीं। नाम ब्रह्माकुमार है, तो कर्म भी ऐसे हों जो देखकर सब कहें कि हाँ यह ब्रह्माकुमार है।
मर्यादा को तोड़ा, अवज्ञा की तो रामराज्य स्थापन करने में सीता के मुआफिक परीक्षा पास करनी पड़ेगी। एक बारी चलायमान हुए तो राज्य पद गंवाया, चलायमानी हुई तो रावण को चांस मिला राम से अलग कर जेल में बिठाने का। फिर जो मेरा नाम है, उसको ओ राम कहने लग जाते हैं। कितना अन्तर हो जाता है। फिर जेल से निकली तो राम इतना जल्दी नहीं कहेगा तुम मेरी हो। वह कहेगा पहले तपस्या करो, योग अग्नि से पार हो जाो, फिर से उनका बनकर रहने में बड़ी तपस्या करनी पड़ेगी। तो चलायमानी दूर कर देती है, क्रक्रमेरा रामञ्जञ्ज यह अनुभव करने नहीं देती है। डोलायमानी, अरे बड़ी तकलीफ आई है, शरीर को कुछ हो जाये, धन को कुछ हो जाये, सम्बन्ध चला जाये, अरे तेरा राम कहाँ गया। शरीर भी चला जाये तो भी मैं उसकी हूँ, उस खुशी में जाये ना। इनकी उनकी थोड़े ही हूँ। इतना अन्तर मन से, दिल से पुरुषार्थ करने वाले केवल एक परसेन्ट होंगे। बाबा की बेटी हो तो कैसी, बेटा हो तो कैसा। चलायमान-डोलायमान न हो, अंगद-हनुमान जैसा। कोई हिलाये तो भी न हिले। अरे बिना बात के भी हिलते रहते हैं। अन्दर अपने आप हिलते रहते हैं। कारण बुद्धि स्थिर नहीं। अचल-अडोल रहने का अन्दर लक्ष्य हो। टू मैनी बातें न हों, सबकुछ है, कुछ नहीं चाहिए। है भी तो किसी कोदे दो, काम में लगा दो। कोई दे तो सोचो क्या करेंगे, कहाँ रखेंगे। अभी अभी आया खाया पूरा। पर डोलायमानी, कोई मेरी निन्दा करता है, कोई झूठ बोलता है, इसी चिन्ता में मरेगा तो क्या हाल होगा! बाबा का चेहरा शुरू से लेकर लास्ट तक एक जैसा ही रहा। बच्चे तो नटखट ही थे। कोई कहता था मैं जा रहा हूँ… बाबा ने कभी गुस्सा किया ही नहीं। बाबा पर कोई गुस्सा भी करे तो भी बाबा जैसे शेष शैय्या पर लेटा हुआ है, विचार सागर मंथन कर रहा है। न पसन्द वाली बातें चेन्ज कर दें, तपस्या ऐसी जो नाग जैसा फूें देने वाला हो उसको भी वैजयन्ती माला का मणका बना दे। किसी कमी को न देख, ज्ञान के अन्दर गहराई में जाओ। मुख से कुछ न बोलो, पर शक्ल सब बोल दे।