बापदादा से जो खज़ाने मिले हैं बुद्धि उसी में रमण करती रहे

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बाप जानीजाननहार है, जहाँ ज़रूरत है अपने आप देता है। अगर हमारे में कोई कमी है तो बाबा का नाम बाला नहीं कर सकेंगे। मेरा नाम बाला हो, मुझे नाम चाहिए ही नहीं। पर मेरे बाबा का नाम हो, बाबा कितना कल्याणकारी है, किसी को अनुभव हो जाये, यह उसकी संतान हैं। आज की दुनिया में कोई भी निष्कामी, निरहंकारी नहीं हैं। अगर हमारे में ये दो बातें नहीं आयी तो सम्पन्नता बहुत दूर हो जायेगी। जो बाबा ने मुझ आत्मा प्रति कहा है वो मैं भूल जाऊं, बाकी बातें याद करूं तो मेरे जैसा मूर्ख कोई नहीं। कोई पराई और पुरानी बातें याद करना माना सब कुछ गंवा देना। सम्बन्ध में भी सहयोग नहीं मिलेगा, फिर सारा बोझ सिर पर आयेगा।
अपनी बुद्धि चलाने के बजाय, उससे योग क्यों न लगाऊं। शुरू से लेकर अगर कोई हमारे में कमज़ोरी रही तो कमी भी रहेगी। ज्ञान का खज़ाना, समय का खज़ाना, गुणों का खज़ाना, शक्तियों का खज़ाना जो हमें मिला है। उस खज़ाने को सम्भालना और बढ़ाना है। उसी में बुद्धि रमण करती रहेगी तो जीवन में रमणीकता आयेगी।
मेरे जैसे को हंसाना मुश्किल था, मैं समझती थी ये भी टाइम वेस्ट है। पर यह अक्ल नहीं था कि रूहानियत में भी रहूं और रमणीकता भी रहे। रूहानियत अपने स्वमान में रखती है, रमणीकता मीठा स्वरूप नम्रता वाला औरों को समीप ले आता है इसलिए अपने पास इतना खज़ाना हो जो कोई भी सामने आये, अच्छी रूहानियत तो करे ना। अरे मुस्कुराऊं तो सही! अन्दर से अपने आपको बाबा समान बनाना है। हम बाप समान बनते जायें तो और समानता में समीप आते जायेंगे। संग में समान बनते जायेंगे। सच्चाई, स्नेह, समीपता बाबा के नज़दीक ले आती है। जो हमारे संग साथ है, उनको भी ऐसे फीलिंग हो कि हम बाबा के साथ रहते हैं। केवल मैं नहीं रहती हूँ, हम सब बाबा के साथ रहते हैं।
सम्पन्न बनने में मेरी कमी या दूसरे की कमी बीच में इन्टरफियर न करें। अगर मेरी कमी हुई तो दूसरों को भी तकलीफ होगी। या दूसरों के कमी की मुझे तकलीफ होती है तो वो मेरी कमज़ोरी हो गयी। उसमें
सम्पन्नता तो और दूर हो जायेगी। अपने को
सम्भालने के लिए बाबा एकदम सामने आ जाता है, तुम क्या कर रही हो। कभी हम बाबा को नहीं कह सकते कि बाबा यह बिगड़ गयी है, अरे तुम क्या कर रही थी! यज्ञ बाबा का सो हमारा है, इसने किया, नहीं कह सकते हैं। तुम क्या कर रही थी?
बाबा हमको क्या बनाने चाहता है, वो करके दिखाया है। कितना भगवान को प्यार है, मैं तो यही देखती रहती थी। इतना प्यार मुझ आत्मा में है। अगर मेरे में प्यार नहीं तो मैं सूखी काठी हूँ, और सूखी काठी आपस में रगड़ेगी तो आग लग जायेगी। फिर बुझाये कौन! तो प्यार का सागर मेरा बाबा, ज्ञान देता है और कहता है कि ज्ञानी तू आत्मा मुझे प्रिय लगती है। यह भी समझाया है कि ये सतोगुण हैं, ये आसुरी गुण हैं, छोटी-छोटी बातों में भी बाबा ने इतना ध्यान खिंचवाया है, हम उन बातों में ध्यान न रखें और बातों में ध्यान रहे तो बाबा कहेगा कि यह मोटी बुद्धि है।
बाबा के काम का मुझे बनना है, बाबा के साथ प्यार है ना! दिल दिलवाले को दी है, दिलवाले के साथ तपस्या कर रहे हैं। वह कहता है तुम मेरी दिलरूबा हो, अगर वह कहे तुम मेरे काम की नहीं हो, तो संगम पर जीना किस काम का! जो मुझे अच्छा लगता है वो मैं करूं, तो बाबा कहेगा तुम मेरे काम की नहीं हो।
सर्वशक्तिवान बाबा की शक्ति काम करती है, सिर्फ हम लेते जायें। अपनी कमज़ोरी, कमी में अगर वो शक्ति नहीं खींच सकेंगे तो क्या हाल होगा! संगमयुग की सुनहरी घडिय़ां हैं, भगवान स्वयं पढ़ाकर लायक बना रहा है। तो जो कमी-कमज़ोरी है उसे खत्म करना है, दूसरों की कमी-कमज़ोरी नहीं देखना है। दूसरों की कमी मुझे कमज़ोर करेगी, पर मेरी कमी-कमज़ोरी को बाबा खत्म कर देगा।

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