दिल की हर बात सर्व श्रेष्ठ एक बाबा से…

0
201

प्यार हमेशा अनन्य भाव चाहता है। जब सर्व श्रेष्ठ परम बाबा से हम प्यार करते हैं तो और कोई हमारे दिल दिमाग में रह नहीं सकता। योगी माना एक बाबा दूसरी न कोई, ये सूक्ष्म बुद्धि की पवित्रता है।

बाबा ने ऐसी श्रेष्ठ जीवन पद्धति हमें सिखाई है जो विश्व के किसी भी देश के, किसी भी कोने की हर आत्मा को स्पर्श करता है। ऐसी श्रेष्ठ, पवित्र, सत्य जीवन जीने की कला बाबा ने हम बच्चों को सिखाई है।
फरवरी मास एक ऐसा मास है जो पतझड़ जाने लगती है और बसंत बहार आने लगती है। ये भी एक संगम है। जैसे वल्र्ड साइकल में कलियुग जा रहा है और सतयुग आ रहा है। उस संगम में हम सभी भी कलियुगी से संगमयुगी और संगमयुगी से सतयुगी बनने का पुरुषार्थ कर रहे हैं। तो ये मास भी परिवर्तन का मास है। पतझड़ में प्रकृति ज़ीरो हो जाती है। और कैसे अपने ही चक्र अनुसार ऑटोमेटिक पतझड़ फिर वापिस बसंत बहार में बदलने लगती है। तो सारी प्रकृति खिल उठती है और प्रकृति के सौन्दर्य को देखकर मनुष्य आत्माओं के मन भी खिल उठते हैं।
बाबा भी हम बच्चों को सदा कहते हैं कि तुम्हारा चेहरा कैसा हो? खिले हुए रूहे गुलाब की तरह, खुशनुमा। खुशमिज़ाज चेहरा हो। तो बाबा से जितना हम बच्चों का प्यार होगा उतना हमारा मन सदा खिला रहेगा।
दिल का सच्चा प्यार, एक लगन, एक धुन बाबा के लिए हो। बस दिन-रात हमारी बुद्धि पर यही बात सवार रहे बाबा-बाबा और बाबा। तो सबसे पहले तो बुद्धि में हमें ये स्पष्ट हो जाये कि संगमयुग परमात्मा से प्यार करने का समय है। ड्रामा में और अनेक जन्मों में, बाकी सभी युगों में आत्माओं से प्यार करते रहे हैं क्योंकि देह भान में होने के कारण निराकार में बुद्धि नहीं लगी। देहधारियों से ही बुद्धि लगी। और उन देहधारियों से प्यार करने में बुद्धि लगाने में आत्मा की उतरती कला ही होती रही। है ना ये तो पूरा इतिहास। द्वापर से लेकर पूरा कलियुग अंत तक हमें बताया है ना देह भान में आने से और देहधारियों के आकर्षण में आने से, देह संबंधों में फंसे रहने से हमारी उतरती कला ही होती है। तो ये समझ बुद्धि में रखकर अब संगमयुग में हमें ये पक्का कर लेना है कि ये हमारा अंतिम जन्म, अलौकिक जन्म संगमयुग का समय परमात्मा से जिगरी प्यार करने का समय है। अब हमें और किसी में भी बुद्धि नहीं लगानी है। बाबा मुरली में कहते हैं ना कि अब बुद्धि से भटकना बंद। अब एक बेहद के बाप को याद करो।
बुद्धि क्यों भटकती है क्योंकि आत्मा को कुछ चाहिए इसलिए बुद्धि भटकती है। अब जब बाबा मिले हैं और पूरा परिचय है तो ऐसा प्यार का सागर, सुख दाता, शांति दाता, सदा पावन कल्याणकारी भगवान हमें मिला है तो अब उनसे ही सबकुछ हमें प्राप्त करना है। अब आत्माओं से कोई आश नहीं रखनी है। आत्मायें खाली हो चुकी हैं, तमोप्रधान हो चुकी हैं इसलिए आत्माओं से कोई प्राप्ति की इच्छा नहीं रखनी। फिर वो आत्मायें ज्ञानी हैं या अज्ञानी। लौकिक है या अलौकिक। संबंधी हैं या मित्र, कोई भी आत्मा पूर्ण नहीं है। पुरुषार्थी है। पुरुषार्थी अवस्था में कोई कुछ भी नहीं दे सकते हैं और अगर देंगे तो वो बाबा से लेकर ही देंगेे तो क्यों न डायरेक्ट बाबा से ही लें। इसलिए बुद्धि में अब एक बाबा से ही प्यार हो। आत्माओं के प्यार में आत्मा बंधती है। कर्मबंधन, हिसाब-किताब बनते हैं। क्योंकि जो भी आत्मा से हमारी लेन-देन होती है वो हिसाब बनते हैं, वो फिर चुकाने होते हैं इसलिए आत्माओं का प्यार बांधने वाला है, आधारित करने वाला है। आप देखते हैं हम जैसे ही किसी के संबंध में नज़दीक आते हैं तो कोई न कोई पाने की इच्छायें जागने लगती हैं, ये सूक्ष्म में आत्मा आधारित होने लगती है। इसलिए बाबा ने हमें यही कहा कि अब सर्व सम्बन्ध मेरे साथ। सर्व प्राप्तियां मेरे से। तो ये धारणा जितनी हम अपने इस अलौकिक ज्ञानी जीवन में पक्की रखते हैं तो हमारा योग बाबा से सहज लगेगा। और जहाँ आत्माओं का प्यार बांधने वाला है वहाँ बाबा का प्यार आत्मा को मुक्त करने वाला है। स्व निर्भर करने वाला है। अपनी शक्ति से हम जी सकते हैं। बाबा तो दाता है, बाबा का प्यार आत्मा को भरपूर करने वाला है इसलिए आत्मा ऊंची उठती है तो ये सत्य बुद्धि में रखकर हमें अपने आपको बार-बार समझाना है, सावधान करना है और टोटल हमें दिल से एक बाबा का प्रैक्टिकली बन जाना है।
मेरे सर्व सम्बन्ध एक से, बाबा मेरा सर्वस्व है। हमें अपने मन और बुद्धि के लिए ऐसी लक्षण रेखा बना देनी है जो हमारे मन-बुद्धि के अन्दर और कोई प्रवेश न करे। हमारे मन-बुद्धि पर और कोई अधिकार न करे। बाबा भी प्यारा और फलाना भी प्यारा। तो बाबा कहते हैं-आपके दिलतख्त पर एक ही बैठ सकता है। बाबा हमसें प्यार में पूरी वफादारी चाहते हैं। और सिर्फ बाबा की बात नहीं है मानवीय रिश्तों में भी आप देखिए हर संबंध में वफादारी चाहिए। एक माना एक। एक से संबंध जोडऩे के बाद भी अगर औरों से बहुत ज्य़ादा संबंध जोड़ते हैं तो कहेंगे कि तुम्हारा प्यार झूठा है, बनावटी है। तुम्हारे में बेवफाई है, वफादारी नहीं है।
प्यार हमेशा अनन्य भाव चाहता है। जब सर्व श्रेष्ठ परम बाबा से हम प्यार करते हैं तो और कोई हमारे दिल दिमाग में रह नहीं सकता। योगी माना एक बाबा दूसरा न कोई, ये सूक्ष्म बुद्धि की पवित्रता है। दिल की हर बात एक बाबा से।

क्योंकि अगर हम बाबा के आशिक हैं बहुत कुछ कहानिां आपने पढी होंगी, बाबा भी मुरली में कहते हैं लैला मजनू की बातें करते हैं। ऐसी कई कहानियां बाबा कहते हैं कि भल उनका दैहिक प्यार है नामरूप से प्यार है पर विकार उन्होंने में नहीं है। वो आत्माओं की बात है पर संगमयुग में ऐसा शुद्ध प्यार आत्माओं से भी नहीं हमें जोडऩा है। क्योंकि अभी परमात्मा बाप आयें हैं और उनसे हमने सर्व संबंध जोड़े हैं इसलिए रूहानी पवित्र प्यार आत्माओं से करना नहीं है हाँ हमार सारे विश्व से प्यार है सभी रूहानी आत्माओं से प्यार है, सभी आत्माओं से रूहानी प्यार है, शुभ भावनायें हैं क्योंकि सभी आत्मायें बाबा के बच्चे हैं। पर हमारे दिल का जिगरी प्यार, हमारे मन बुद्धि का संबंध हमारे जीवन का सौदा अभी एक बाबा से, तभी हम योगी कहे जायेंगे। नहीं तो योगी नहीं कहे जायेंगे। इसलिए ये चीज़ हमें बहुत पक् की करनी है और इस बात में सदा हमें सावधान रहना है और अपने आपको अटेन्शन में रखना है नहीं तो बाबा कहते हैं ना कि सारा किया करा पुरुषार्थ ज़ीरो हो जाता है। देहधारी में बुद्धि जाने से उसी घड़ी हम बिल्कुल नीचे चले जाते हैं, रसातल में चले जाते हैं। चट खाते में चले जाते हैं ऐसे बाबा बड़ी कड़ी शिक्षा हमें देते रहते हैं। बाबा कहते हैं ना चढ़े तो चाखे वैकुण्ड रस गिरे तो चकनाचूर। तो ये शुरुआत बुद्धि से गिरने की होती है। बुद्धि से गिरने की होती है इसलिए मैंने ये शब्द यूज़ किया कि हम सभी भी पुरुषार्थी हैं। सम्पूर्ण आत्माभिमानी नहीं हैं पुरुषार्थी हैं। पवित्र हैं नहीं सम्पूर्ण निर्विकारी नहीं हैं हम बनने का पुरुषार्थ कर रहे हैं। इसलिए ऐसी पुरुषार्थी आत्माओं से, या लौकिक अज्ञानी आत्मा कोई भी आत्मा से हमारी नज़र डूबनी नहीं चाहिए। हमारी बुद्धि अटकनी नहीं चाहिए। इसलिए दादी भी पक्का कराते रहते हैं कि मेरा बाबा प्यारा बाबा मीठा बाबा। तो ये हर घड़ी बाबा बाबा हमारे दिल से उठते रहना चाहिए और अब खास जबकि सत्य मिल चुका है सम्पूर्ण ज्ञानी आत्मा हम बन चुके हैं तो अब अगर आगे बढ़ृना है उडऩा है, सिद्धि स्वरूप बनना है तो अब बस बाबा से प्यार और लगन सम्र्पण अनन्य भाव बस ये ही हमारा पुरुषार्थ है। साधना है। जिनको भगवान से प्यार है तो प्यार में उनके जैसा बनते जाना सहज हो जाता है। दादियां कहती हैं ना अपने अनुभव में कि हम तो प्यार प्यार में बाबा जैसा बन गए हमें कोई मेहनत नहीं लगी हमें कोई प्लानिंग नहीं करनी पड़ी। निश्चय हुआ, पहचान हुई ये वो ही मुझ आत्मा का कल्याणकारी बाबा है। तो बस बाबा से ही प्यार। दुनिया भूल गए, देहधारियों को भूल गए और प्रैक्टिकली दादियों ने रिज़ल्ट हमें बता दिया है कि बाबा के प्यार प्यार में बाबा जैसे बन गए। कोई बहुत लॉजिक चलाना नहीं पड़ा। दादियां कोई बहुत पढ़ी-लिखी नहीं है पर सत्य पहचान लिया और कुर्बान हो गई। वारी गई। बस उस प्यार ने सम्र्पूण बना दिया। तो जब प्यारे बाबा ने हमें स्वीकार कर लिया। बाबा ने कहा ना कि तुम जो हो जैसे हो क्या कहा है मेरे हो। देखो ऐसा कोई कहता है? भल दुनिया में सम्बन्ध जोड़ भी देते हैं समाज के कारण परिवार के बुजुर्गों के कारण सम्बन्ध जोड़ भी देते हैं साथ रहते भी हैं पर जो हैं जैसे हैं दिल से स्वीकार नहीं कर पाते। इसलिए टकराव होते हैं घृणा, नफरत होती है। एक दो से लड़ाई झगड़े होते हैं। बहन का मन किसी और में, भाई का मन किसी और में। ये हालात क्यों हैं आज। क्योंकि एक दो से सम्बन्ध जोडऩे के बाद, समाज के सामने सम्बन्ध स्वीकार करने के बाद भी एक दो को दिल से स्वीकार नहीं कर पाते। बाबा ने जो परम है ऊँंचे तो ऊंचा है बाबा ने हम आत्माओं को स्वीकार कर लिया। और जीवन भर 82 वर्षों से बाबा प्यार कर रहे हैं। हमें सीखा रहे हैं पढ़ा रहे हैं। तो बाबा ने हमें स्वीकार कर लिया। हम तो बाबा को स्वीकार करेंगे ना क्योंकि वो तो परम है सम्पूर्ण है, न स्वीकारने जैसे उसमें कोई बात ही नहीं है। न स्वीकारने जैसे तो हम हैं। पर बाबा हमें स्वीकार कर लिया है। हमने बाबा को कहा हम सभी ने कि बाबा हम जो हैं जैसे हैं आपके हैं। पर देखो टेढ़े, बांके हम हैं फिर भी इस सौदे को अगर पक् का नहीं रखते हैं तो भी बाबा कहते हैं कि चलो तुम जो भी हैं जैसे हैं मेरे हैं। पर अगर सच्चा प्यार है तो बाबा हमें कहते हैं अब जैसा मैं कहता हूँ ऐसे बनते जाओ। ठीक है तुम जो है जैसे हैं मेरे हैं। पर अब मैं जो सिखाता हूँ, मैं जो कहता हूँ, मैं जो सिखाता हूँ तो अब वैसा बनते जाओ। तो हैं ना तैयारी सबकी। ये सौदा मंजूर है सबको? कि बाबा जैसा चाहते हैं वैसा हम बनते जायेंगे। सिर्फ बाबा के गले नहीं पडऩा है। सिर पर बोझ नहीं बनना है कि बाबा हम जैसे हैं तेरे हैं। बाबा रोज़ सिखाते हैं दुनिया में अनपढ़ भी सीख सीख कर होशियार बन जाते हैं। हम बाबा के बच्चे हैं बाबा सिर्फ स्वीकार नहीं करते हैं बाबा कदम कदम हर बात हम बच्चों को सिखाते हैं। तो जैसा बाबा चाहते हैं ऐसा हम भी बनते जायेंगे। जो बाबा को पसंद वो ही बात करेंगे हम। दुनिया में भी गीत गाते हैं ना कि जो तुमको हो पसंद वो ही बात करेंगे। वो ही सोचेंगे, वो ही कर्म हम करेंगे। ये हमारा बाबा से प्यार प्यार में प्रॉमिस है। कि बाबा आपको जो पसंद है वो ही चिंतन हम करेंगे। जो आपको पसंद है वो ही ज्ञान रत् नों की लेन देन हम अपने इस मुख से करेंगे। जो आपकी श्रीमत पर है उसी पर हमारे कदम चलेंगे। ये है आशिकों का काम। बाबा ने कहा न इसलिए तुम भगवान नहीं कहते हो बाबा कहते हो। क्योंकि बाबा कहने में सम्बन्ध प्यार की बात अनुभव होती है। और आशिक बनना माना जिगरी चाहना वो जो कहे ऐसे करते जाना। हमें थोड़ा भी इधर उधर नहीं होना है। और जो बाबा को नहीं पंसद है वो मुझे नहीं करना है। हम देहधारी को याद करें वो बाबा को नहीं पसंद है। तो हम भी बाबा को प्रॉमिस करते हैं कि बाबा जो आपको पसंद नहीं हे वो हम भी नहीं करेंगे। हम भी नहीं करेंगे हम आपके पीछे पीछे आपके कदम कदम पर कदम रखते हुए जीवन को चलायेंगे तो ये प्रैक्टिकल ऐसा करना माना तब माना जायेगा कि मेरा बाबा सही अर्थ में हमने कहा। मेरे सर्व सम्बन्ध बाबा से ये तब सही माना जायेगा। बाबा से प्यार माना बाबा के ज्ञान से प्यार, बाबा की मुरली से प्यार, बाबा के यज्ञ से प्यार, बाबा के कत्र्तव्य से प्यार, बाबा बाबा मैं करूँ और बाबा की बात मानूं नहीं बाबा के रचे हुए यज्ञ से प्यार न हो स् नेह सहयोग न हो तो इसको प्यार का प्रमाण नहीं माना जायेगा। बाबा से प्यार माना बाबा की मुरली से प्यार, बाबा के यज्ञ से प्यार, बाबा के विश्व कल्याण के कत्र्तव्य से प्यार। प्यार कर्म तक आना चाहिए। सिर्फ मन्सा नहीं प्रैक्टिकल कर्म से प्यार दिखना चाहिए। प्रैक्टिकल सिर्फ मन से बात करें पर वचन और कर्म तक उस प्यार का प्रभाव दिखनाचाहिए। क्योंकि देह धारी प्यार में भी आप देखते हैं कि प्यार छिपा नहींरहता। किसी को किसी देहधारी से प्यार हो जाताह ै तो अपने आप वो दिखाई देता है क्योंकि प्यार होजाने के बाद और कोई उसको दिखता नहीं। हर बात में उसे ही वो देखना चाहते हैं, उनसे बात करना चाहते हैं। इसलिए जो भीसाथ में होते हैं उनके बीच होते हुए भी पता नहीं कैसे कहाँ से, झटक कर चले जाते हैं और उनसे मिल लेते हैं बातचीत कर लेते हैं तो ये निशानी है कि वो उनकी तरफ खींचे रहेंगे। उनको योग लगाना नहीं पड़ता है उनका योग लगा हुआ ही होता है। वो देहधारीसे योग है। बाबा कहतेह ैं ना प्यार है ना तो प्यार खिंचता है। प्यार का आधार याद है। इसलिए बाबा से प्यार है तो बस बाबा को देखते रहना है। मन की आँख बार बार देखती रहे। क्योंकि उनसे नज़रें ङ्क्षमलाना चाहेगी आत्मा तो हमारी बुद्धि भी बार बार मन की आँख से बुद्धि के नेत्र से बाबा को देखते रहें। भल हम आपस में मिलते हैं, सेवा करते हैं, पढ़ाई करते हैं पर बार बार बुद्धि बाबा को देखती रहे। हम उनसे मिलते रहें। हम उनसे मन ही मन बात करते रहें तो योग लगाना नहीं पड़ेगा। पर बुद्धियोग लगा ही रहेगा। मन एकाग्र करने का और कोई सॉल्युशन नहीं। मन बाबा के साथ चिपका रहे, दिल लगा रहे उसका एक ही सॉल्युशन है प्यार। प्यार से ही मन बाबा से चिपका हुआ रह सकता है। हठ दमन से नहीं। क्रियाओं से न हीं। इसलिए अपने आपको कैसे भी समझाकर सुधारकर सीखाकर एक बाबा से प्यार मुझे सीख लेना है और करते रहना है। हमारा मन उनसे बात करे, ये नैचुरल है जिससे प्यार होगा दिल की हर बात आप उनसे करेंगे। आपस में मिलेंगे घंटों बातें चलेंगी। दिल में इतनी बात एक दो को बताने की भरी हुई होती है। दिल उनके आगे खाली हो जाता है। तो अगर हमारा बाबा से प्यार है सच में हम सब आशिक हैं एक बाबा के तो बस उनसे बात चलती रहे उनको देखती रहूँ, उनसे मिलती रहूँ, उनसे बात करती हूँ। फिर योग मेहनत नहीं है। नैचुरल है। दिल की हर बात बाबा से। कोई देहधारी से नहीं। इसलिए बाबा दादियां अगर हम और बातें किसी देहधारी को करते तो दादियां कहती थीं कि तुम दिल बेचु है। तुमने अपना दिल किसी दूसरे को बेच दिया है। मेरा बाबा कहने के बावजूद तुमने अपना दिल किसी दूसरे को दे दिया। नहीं। बाबा से बात करनी है। बेशक हम अपने बड़ों से जो निमित्त हैं, उनसे मार्गदर्शन लेते हैं पर दिल की बात और किसी से नहीं। ये है आशिक की निशानी। प्यार है कोई विघ् न का अनुभव नहीं होगा। ये हमारी बांधेली माताओं ने, बांधेले कुमारों ने, कुमारियों ने ये सिद्ध करके बताया है कि बाबा के प्यार में वो कितने विघ्न, सितम, मार, अत्याचार, सहन करते हैं तो देखो प्यार एक ऐसी शक्ति है कि बाबा के लिए सबकुछ सहन करने की एडजेेस्ट करने की स्वाहा होने की समर्पण करने की, त्याग करने की शक्ति ऑटोमेटिक आ जाती है। वो कोई कहने की बात नहीं है। प्यार एक ऐसी चीज़ है जो अपने आप फना हो जाती है। कुर्बान हो जाती है। आज देश के प्यार में कितने लोग जीवन कुर्बान कर देते हैं। बाबा ने कहा ना कि यहाँ जान कुर्बान करने की बात नहीं है जहान से बुद्धियोग निकालना है। तो हमें मुश्किल नहीं लगेगा। हमें इस योगी जीवन में केवल भगवान का बन कर जीने में हमें मुश्किल नहीं लगेगा। हमारी लगन को हमारी धारणाओं को, हमारे नियम मर्यादाओं को कोई तोड़ नहीं सकेगा। लगन का ये प्रमाण है। बाबा कहते है ंना जहाँ लगन है वहाँ विघ् न भस्म हो जाते हैं। तो बाबा के प्यार में कुछ भी त्याग करना मुश्किल नहीं लगेगा। बाबा की मुरली में बहुत सुन्दर गीत आता है ना तेरे फूलों से भी प्यार, तेरे कांटों से भी प्यार। दुनिया में भी प्यार के खातिर सबकुछ स्वीकार कर लेते हैं। पति अच्छा है उसके खातिर और सब सम्बन्ध स्वीकार कर लेते हैं। अपने शौंक भी छोड़ेंगे बाबा के खातिर भी हम ऐसा सच्चा प्यार होगा तो हम करेंगे। एक कुमारी ने शादी की शादी के कारण फिर सबकुछ स्वीकार किया। भई तुमको नौकरी नहीं करनी, भल तुम कितनी भी पढ़ी लिखी हो तो उसने स्वीकार किया। बहुत अच्छा उसके अन्दर डांस की कला थी पर बोला कि नहीं। डांस ये सब नहीं। तो एक व्यक्ति के प्यार और सम्बन्ध में हम अपनी इच्छाओं को हम अपने शौंक को छोड़ते हैं। बाबा के खातिर हम कर सकते हैं? बाबा से प्यार है तो हम बाबा जो चाहते हैं वो करके दिखाएं। हरेक को स्पष्ट है कि परिवार में रहने वालों के लिए बाबा की क्या आज्ञा है, बाबा क्या चाहते हैं। कुमारों से बाबा क्या चाहते हैं, कुमारियों से बाबा क्या चाहते हैं। तो अपनी चाहना को समर्पित करना अपनी इच्छाओं को नाम शेष करना और भगवान को आशाओं को स्वीकार कर उससे पूरी करने का पुरुषार्थ करने में लग जाना प्रैक्टिकल में सच्चा प्यार है। बाबा बाबा करें पर सहन करने को तैयार नहीं। एडजस्ट करने हम तैयार नहीं, यज्ञ की दिन चर्या चलने में हम तैयार नहीं तो ये सच्चा प्यार तो नहीं कहा जायेगा। सच्चा प्यार अनुरूप बनाता है। ऑटोमेटिक उनके जैसे आप बनते जायेंगे। उनको जो खाना पसंद है वो बनायेंगे। उनको पंसद है उस प्रकार के कपड़े पहनेंगे। अपने आप जीवन एडजस्ट होता जाता है। उसके अनुरूप बनते जाते हैं। तो अगर हमारा बाबा से जिगरी प्यार है तो बाबा जैसा हम बनते जायें। ये रिज़ल्ट आता है तो कहेंगे सच्चा प्यार, प्रैक्टिकल प्यार। हम उनके जैसे बनते जायें। जो उनको पसंद वो ही खाना, जो उनको पसंद वो ही पहनना है। तो आपको नियम नहीं लगेगा कि बाबा के बने हैं तो ये नहीं करना है, ये नहीं करना है ऐसा महसूस नहीं होगा। पर हमें लगेगा कि उनकी खुशी में हमारी खुशी है। उनकी खुशी में हमारी खुशी है। क्योंकि हमारा तो लक्ष्य ही है उनके जैसा बनते जाना बनते जाना, बाबा जैसा बनते जाना है। बाबा जैसा बन जाना है। यही तो हमारा आखिरी निर्णय है। इसलिए ना मुश्किल लगेगा न मेहनत लगेगी तब बाबा कहते हैं कि जहाँ मोहब्बत है वहाँ मेहनत नहीं है। अगर योगी बनने में मेहनत लग रही है तो मिन्स हमारी बाबा से मोहब्बत कम है। प्यार प्यार में बाबा जैसा बनते जाना है। सहज सहज खुशी खुशी बाबा जैसा बनते जाना है। करेंगे, देखेंगे, एक साथ तो नहीं होगा, धीरे-धीरे होगा ये बातें वो ही करते हैं जिन्होंने पहचाना नहीं है, जिन्होंने निर्णय नहीं किया है कि बाबा जैसा ही बन जाना है। तो मैं समझती हूँ कि बाबा के लिए प्यार बस वो ही हमारी एकाग्रता का आधार है। बाबा जैसा बनने का सहज साधन है अपना सबकुछ आप सुनते हैं ना कितने किस्से आप सुनते हैं ना कि एक देहधारी के प्यार में जिस देहधारी का कोई ठिकाना नहीं है, न कोई गुण लक्षण ठीक हैं संस्कार भी अच्छे नहीं, आदतें भी कैसी, कलियुग अंत की आत्मायें कैसी होंगी। ऐसे देहधारी के प्यार में घरबार छोड़ के चले जाते हैं, माँ बाप को छोड़ के चले जाते हैं, समाज की लोक मर्यादा तोड़ के चले जाते हैं। और आजकल तो ऐसे किस्से हो रहे हैं कि उस देहधारी के प्यार में सम्बन्ध भी नहीं बने हैं। उस प्यार में पैसों की गहनों की चोरी करके भी ले जाते हैं। ऐसा अन्धा प्यार कहते हैं ना। बाबा कितना परम है कल्याणकारी है बाबा के प्यार में हमें तो कुछ छोडऩा नहीं है बाबा ने कहा नहीं है कि तुम चोरी करके ले आओ। बाबा ने तो हमें कभी कुछ कहा नहीं है। बाबा तो हमें कितनी ऊंच शिक्षायें देता है। बाबा कहते हैं कि तुम अपने परिवार को पालो, बच्चों को सम्भालो। पर बाबा के यज्ञ और सेवा में भी जो सहयोग कर सकते हो वो करो। ऐसा बाबा से दुनिया को भूलना, देह सम्बन्धों को भूलना हमारे लिए सहज हो जाना चाहिए मुश्किल नहीं लगना चाहिए। हमें तो भूलना है छोडऩे की भी बात नहीं, आसक्ति मिटानी है, मोह मिटाना है तो इसलिए बाबा के दीवाने बन जाना है। परवाने बन शमा पर स्वाहा हो जाना है। अब एक लगन हम सबकी लग जाये वास्तव में उससे ही ज्वालास्वरूप योग बनेगा। लगन की अगर तेज करनी है। ज्वाला स्वरूप योग और कोई चीज़ नहीं है पर अनन्य प्यार, सम्पूर्ण प्यार, दिल की कुर्बानी और बाबा के आज्ञा पर चलकर बाबा जैसा बन जाने की धुन लगन वो हमें मगन कर देगा। लवलीन कर देगा, कोई मेहनत नहीं लगेगी। अपने को शांति से बैठकर देखो कि हमारा प्यार बाबा से कैसा है। दिन प्रतिदिन जिसका जिससे प्यार होगा फिर देखना वो अपने आप सबसे न्यारा होता जायेगा क्योंकि उनकी लगन वहाँ लगी रहती है। हमारी लगन भी ऐसी बाबा से लग जायेगी तो अपने आप हम अन्तर्मुखी हो जायेंगे, वाणी पर संयम आ जायेगा, हमें कभी भी अकेलापन लगेगा नहीं हम हर घड़ी बाबा का साथ अनुभव करेंगे तुम्हीं से खाऊं, तुम्हीं से बैठूं, तुम्हीं से खेलूं, तुम्हें देखूं ये प्रैक्टिकल अब हमें करना है। हर चीज़ बाबा के साथ। बाबा कहते हैं ना कि कम्बाइंड स्वरूप। हम और बाबा बस तो चलो हम इसी लगन योग भी अभ्यास करेंगे।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें