कभी एक की बात दूसरे से वर्णन नहीं करना है। भल सुनो, लेकिन उसे वहीं पर सुनी अनसुनी कर दो। भूल को अन्दर रखने से वायब्रेशन खराब होता है। दूसरे की भूल को अपनी भूल समझो।
जहाँ दिल का सच्चा स्नेह और विश्वास है वहाँ मैं और तू, तेरा और मेरा सब समाप्त हो जाता है। आपकी महिमा सो मेरी महिमा। आपकी बड़ाई सो मेरी बड़ाई इसलिए हम अपने समान साथी को इतना रिगार्ड दें जो वह आपेही हमें दे, कहना न पड़े, यह हमारी ईश्वरीय मर्यादा है। हरेक की विशेषता को देखना है। हरेक में बाबा ने कोई न कोई खूबी ज़रूर भर दी है। बड़ी बड़ाई बाबा की है, मेरा नहीं। सदैव अपने सामने लक्ष्य हो, ‘बाबा’। बाबा ने हमें निमित्त बनाया है। लॉ उठाना, टोन्ट कसना, टोक देना, यह मेरा काम नहीं है। मैं कभी भी अपने हाथ में लॉ नहीं उठा सकती। हमें बाबा जो सेवा देता उसे दिल से करना है। किसी से भी रीस नहीं करनी है। बाप समान बनने की रेस ज़रूर करनी है। हरेक की बात का भाव समझना है, स्वभाव को नहीं देखना है। अगर किसी की गलती दिखाई भी देती है तो बाबा ने हमें समाने की शक्ति भी दी है। कभी एक की बात दूसरे से वर्णन नहीं करना है। भल सुनो, लेकिन उसे वहीं पर सुनी अनसुनी कर दो। भूल को अन्दर रखने से वायब्रेशन खराब होता है। दूसरे की भूल को अपनी भूल समझो। अपनी स्थिति को सदैव सुखमय रखो। कभी भी तंग दिल, उदास दिल नहीं बनना है। कोई झूठा अपमान करेगा, कोई सच्चा। दुनिया की टक्करें अनेक आयेंगी लेकिन हमें उदास नहीं होना है। पत्थर भी पानी की लकीरें खा-खाकर पूज्यनीय बनता है। तो हमें भी सबकुछ सहन करके चलना है। हलचल को समाप्त करने का साधन है – बाबा से बातें करना। बाबा के पास जाओ तो बाबा आपेही कदमों में बल भल देगा और मुझे किसी भी आत्मा पर डिपेंड नहीं करना है। आत्मा पर डिपेंड करने से बैलेन्स बिगड़ जाता है। बाबा पर डिपेंड करो। एक-दो का आधार लेकर चलना बिल्कुल गलत है। मुझे तो साथी चाहिए, सहयोग चाहिए… नहीं। मेरा साथी एक बाबा है। मैं बाबा से ही सहयोग लूँ। दूसरों को सन्तुष्ट करना – यह बहुत बड़ा पुण्य है। इससे हमारी आत्मा को बल मिलता है। किसी के गुणों पर मोहित नहीं होना है। सदा बाबा को आगे रखो। बाबा को आधार बनाओ तो किसी में भी फसेंगे नहीं। विघ्नों से कभी घबराओ नहीं। विघ्न भल कितना भी बड़ा हो लेकिन अपने संकल्प से कभी भी बड़ा नहीं करो। जड़ से समझकर बीज को काटो। जड़ क्या है उसको समझो। माया से डोन्टकेयर करना ठीक है, आपस में नहीं। जो आपस में डोन्ट केयर करते उनकी जबान पर लगाम नहीं रहता। जो आता वह बोल देते, यह स्वभाव भी डिससर्विस करता है। जि़द्द का स्वभाव ही ज्ञान में बहुत विघ्न डालता है। जि़द्द वाले अपना और दूसरों का नुकसान करते हैं। जहाँ जी हाँ का स्वभाव है वहाँ सब फूल बरसाते, दुआयें देते, जहाँ जि़द्द है वहाँ पानी के मटके भी सूख जाते हैं। हमारे अन्दर अनुमान, परचिन्तन, ईष्र्या, द्वेष आदि का कांटा नहीं होना चाहिए। इन कांटों को इस यज्ञ में स्वाहा करो। जहाँ नियम है वहाँ संयम है। जहाँ कायदा है वहाँ फायदा है। ईश्वरीय मर्यादा ही हमारा स्वधर्म है। सबसे प्रेम करो लेकिन प्यार मत दो, बाबा से सम्बन्ध जुटाओ स्वयं से नहीं। किसी से हल्का व्यवहार मत करो। गम्भीर रहो। हंसी मज़ाक से भी बहुत नुकसान होता है इसलिए ऐसी हंसी नहीं करो। काम से काम बस…।