बाबा ने कहा ना कि तुम जो हो, जैसे हो, क्या कहा है मेरे हो। देखो ऐसा कोई कहता है? भल दुनिया में सम्बन्ध जोड़ भी देते हैं समाज के कारण, परिवार के बुज़ुर्गों के कारण सम्बन्ध जोड़ भी देते हैं, साथ रहते भी हैं पर जो हैं जैसे हैं दिल से स्वीकार नहीं कर पाते।
कुछ कहानियां आपने पढ़ी होंगी, बाबा भी मुरली में कहते हैं, लैला-मजनू की बातें करते हैं। ऐसी कई कहानियां बाबा कहते हैं कि भल उनका दैहिक प्यार है, नामरूप से प्यार है पर विकार उन्हों में नहीं है। वो आत्माओं की बात है पर संगमयुग में ऐसा शुद्ध प्यार आत्माओं से भी नहीं हमें जोडऩा है। क्योंकि अभी परमात्मा बाप आये हैं और उनसे हमने सर्व संबंध जोड़े हैं इसलिए रूहानी पवित्र प्यार आत्माओं से करना नहीं है। हाँ हमारा सारे विश्व से प्यार है, सभी रूहानी आत्माओं से प्यार है, सभी आत्माओं से रूहानी प्यार है, शुभ भावनायें हैं क्योंकि सभी आत्मायें बाबा के बच्चे हैं। पर हमारे दिल का जिगरी प्यार, हमारे मन-बुद्धि का संबंध, हमारे जीवन का सौदा अभी एक बाबा से, तभी हम योगी कहे जायेंगे। नहीं तो योगी नहीं कहे जायेंगे। इसलिए ये चीज़ हमें बहुत पक्की करनी है और इस बात में सदा हमें सावधान रहना है और अपने आपको अटेन्शन में रखना है नहीं तो बाबा कहते हैं ना कि सारा किया करा पुरुषार्थ ज़ीरो हो जाता है। देहधारी में बुद्धि जाने से उसी घड़ी हम बिल्कुल नीचे चले जाते हैं, रसातल में चले जाते हैं, चट खाते में चले जाते हैं ऐसे बाबा बड़ी कड़ी शिक्षा हमें देते रहते हैं। बाबा कहते हैं ना चढ़े तो चाखे वैकुण्ठ रस गिरे तो चकनाचूर। तो ये शुरुआत बुद्धि से गिरने की होती है। बुद्धि से गिरने की होती है इसलिए मैंने ये शब्द यूज़ किया कि हम सभी भी पुरुषार्थी हैं। सम्पूर्ण आत्मभिमानी नहीं हैं, पुरुषार्थी हैं। पवित्र हैं नहीं,सम्पूर्ण निर्विकारी नहीं हैं हम बनने का पुरुषार्थ कर रहे हैं। इसलिए ऐसी पुरुषार्थी आत्माओं से, या लौकिक अज्ञानी आत्मा कोई भी आत्मा में हमारी नज़र डूबनी नहीं चाहिए। हमारी बुद्धि अटकनी नहीं चाहिए। इसलिए दादी भी पक्का कराते रहते हैं कि मेरा बाबा प्यारा बाबा मीठा बाबा। तो ये हर घड़ी बाबा-बाबा हमारे दिल से उठते रहना चाहिए और अब खास जबकि सत्य मिल चुका है, सम्पूर्ण ज्ञानी आत्मा हम बन चुके हैं तो अब अगर आगे बढऩा है, उडऩा है, सिद्धि स्वरूप बनना है तो अब बस बाबा से प्यार, लगन, समर्पण अनन्य भाव बस ये ही हमारा पुरुषार्थ है, साधना है। जिनको भगवान से प्यार है तो प्यार में उनके जैसा बनते जाना सहज हो जाता है। दादियां कहती हैं ना अपने अनुभव में कि हम तो प्यार-प्यार में बाबा जैसा बन गए, हमें कोई मेहनत नहीं लगी, हमें कोई प्लानिंग नहीं करनी पड़ी। बस उस प्यार ने सम्पूर्ण बना दिया, तो जब प्यारे बाबा ने हमें स्वीकार कर लिया। बाबा ने कहा ना कि तुम जो हो, जैसे हो, क्या कहा है मेरे हो। देखो ऐसा कोई कहता है? भल दुनिया में सम्बन्ध जोड़ भी देते हैं समाज के कारण, परिवार के बुज़ुर्गों के कारण सम्बन्ध जोड़ भी देते हैं, साथ रहते भी हैं पर जो हैं जैसे हैं दिल से स्वीकार नहीं कर पाते। इसलिए टकराव होते हैं, घृणा, नफरत होती है। एक-दो से लड़ाई-झगड़े होते हैं। बहन का मन किसी और में, भाई का मन किसी और में। ये हालात क्यों हैं आज! क्योंकि एक-दो से सम्बन्ध जोडऩे के बाद, समाज के सामने सम्बन्ध स्वीकार करने के बाद भी एक-दो को दिल से स्वीकार नहीं कर पाते। बाबा ने जो परम है, ऊँचे ते ऊँचा है उस बाबा ने हम आत्माओं को स्वीकार कर लिया। हम तो बाबा को स्वीकार करेंगे ना क्योंकि वो तो परम है, सम्पूर्ण है, न स्वीकारने जैसे उसमें कोई बात ही नहीं है। न स्वीकारने जैसे तो हम हैं। पर बाबा ने हमें स्वीकार कर लिया है। लेकिन अब बाबा हमें कहते हैं कि अगर सच्चा प्यार है तो जैसा मैं कहता हूँ ऐसे बनते जाओ। ठीक है तुम जो हो, जैसे हो मेरे हो। पर अब मैं जो सिखाता हूँ, मैं जो कहता हूँ वैसा बनते जाओ। तो हैं ना तैयारी सबकी! ये सौदा मंजूर है सबको? कि बाबा जैसा चाहते हैं वैसा हम बनते जायेंगे। दुनिया में भी गीत गाते हैं ना कि जो तुमको हो पसंद वो ही बात करेंगे। वो ही सोचेंगे, वो ही कर्म हम करेंगे। ये हमारा बाबा से प्यार-प्यार में प्रॉमिस है कि बाबा आपको जो पसंद है वो ही चिंतन हम करेंगे। जो आपको पसंद है वो ही ज्ञान रत्नों की लेन-देन हम अपने इस मुख से करेंगे। जो आपकी श्रीमत पर है उसी पर हमारे कदम चलेंगे। ये है आशिकों का काम। बाबा ने कहा न इसलिए तुम भगवान नहीं कहते हो बाबा कहते हो। क्योंकि बाबा कहने में सम्बन्ध,प्यार की बात अनुभव होती है। और आशिक बनना माना जिगरी चाहना वो जो कहे ऐसे करते जाना। हमें थोड़ा भी इधर-उधर नहीं होना है। और जो बाबा को नहीं पसंद, वो मुझे नहीं करना है। हम देहधारी को याद करें वो बाबा को पसंद नहीं है। तो हम भी बाबा को प्रॉमिस करते हैं कि बाबा जो आपको पसंद नहीं है वो हम भी नहीं करेंगे। हम भी आपके कदम पर कदम रखते हुए जीवन को चलायेंगे तो ये प्रैक्टिकल ऐसा करना माना तब माना जायेगा कि मेरा बाबा सही अर्थ में हमने कहा। मेरे सर्व सम्बन्ध बाबा से ये तब सही माना जायेगा। बाबा से प्यार माना बाबा के ज्ञान से प्यार, बाबा की मुरली से प्यार, बाबा के यज्ञ से प्यार, बाबा के कत्र्तव्य से प्यार, बाबा बाबा मैं करूँ और बाबा की बात मानूं नहीं बाबा के रचे हुए यज्ञ से प्यार न हो स् नेह सहयोग न हो तो इसको प्यार का प्रमाण नहीं माना जायेगा। बाबा से प्यार माना बाबा की मुरली से प्यार, बाबा के यज्ञ से प्यार, बाबा के विश्व कल्याण के कत्र्तव्य से प्यार। प्यार कर्म तक आना चाहिए। सिर्फ मन्सा नहीं प्रैक्टिकल कर्म से प्यार दिखना चाहिए। प्रैक्टिकल सिर्फ मन से बात करें पर वचन और कर्म तक उस प्यार का प्रभाव दिखनाचाहिए। क्योंकि देह धारी प्यार में भी आप देखते हैं कि प्यार छिपा नहींरहता। किसी को किसी देहधारी से प्यार हो जाताह ै तो अपने आप वो दिखाई देता है क्योंकि प्यार होजाने के बाद और कोई उसको दिखता नहीं। हर बात में उसे ही वो देखना चाहते हैं, उनसे बात करना चाहते हैं। इसलिए जो भीसाथ में होते हैं उनके बीच होते हुए भी पता नहीं कैसे कहाँ से, झटक कर चले जाते हैं और उनसे मिल लेते हैं बातचीत कर लेते हैं तो ये निशानी है कि वो उनकी तरफ खींचे रहेंगे। उनको योग लगाना नहीं पड़ता है उनका योग लगा हुआ ही होता है। वो देहधारीसे योग है। बाबा कहतेह ैं ना प्यार है ना तो प्यार खिंचता है। प्यार का आधार याद है। इसलिए बाबा से प्यार है तो बस बाबा को देखते रहना है। मन की आँख बार बार देखती रहे। क्योंकि उनसे नज़रें ङ्क्षमलाना चाहेगी आत्मा तो हमारी बुद्धि भी बार बार मन की आँख से बुद्धि के नेत्र से बाबा को देखते रहें। भल हम आपस में मिलते हैं, सेवा करते हैं, पढ़ाई करते हैं पर बार बार बुद्धि बाबा को देखती रहे। हम उनसे मिलते रहें। हम उनसे मन ही मन बात करते रहें तो योग लगाना नहीं पड़ेगा। पर बुद्धियोग लगा ही रहेगा। मन एकाग्र करने का और कोई सॉल्युशन नहीं। मन बाबा के साथ चिपका रहे, दिल लगा रहे उसका एक ही सॉल्युशन है प्यार। प्यार से ही मन बाबा से चिपका हुआ रह सकता है। हठ दमन से नहीं। क्रियाओं से न हीं। इसलिए अपने आपको कैसे भी समझाकर सुधारकर सीखाकर एक बाबा से प्यार मुझे सीख लेना है और करते रहना है। हमारा मन उनसे बात करे, ये नैचुरल है जिससे प्यार होगा दिल की हर बात आप उनसे करेंगे। आपस में मिलेंगे घंटों बातें चलेंगी। दिल में इतनी बात एक दो को बताने की भरी हुई होती है। दिल उनके आगे खाली हो जाता है। तो अगर हमारा बाबा से प्यार है सच में हम सब आशिक हैं एक बाबा के तो बस उनसे बात चलती रहे उनको देखती रहूँ, उनसे मिलती रहूँ, उनसे बात करती हूँ। फिर योग मेहनत नहीं है। नैचुरल है। दिल की हर बात बाबा से। कोई देहधारी से नहीं। इसलिए बाबा दादियां अगर हम और बातें किसी देहधारी को करते तो दादियां कहती थीं कि तुम दिल बेचु है। तुमने अपना दिल किसी दूसरे को बेच दिया है। मेरा बाबा कहने के बावजूद तुमने अपना दिल किसी दूसरे को दे दिया। नहीं। बाबा से बात करनी है। बेशक हम अपने बड़ों से जो निमित्त हैं, उनसे मार्गदर्शन लेते हैं पर दिल की बात और किसी से नहीं। ये है आशिक की निशानी। प्यार है कोई विघ् न का अनुभव नहीं होगा। ये हमारी बांधेली माताओं ने, बांधेले कुमारों ने, कुमारियों ने ये सिद्ध करके बताया है कि बाबा के प्यार में वो कितने विघ्न, सितम, मार, अत्याचार, सहन करते हैं तो देखो प्यार एक ऐसी शक्ति है कि बाबा के लिए सबकुछ सहन करने की एडजेेस्ट करने की स्वाहा होने की समर्पण करने की, त्याग करने की शक्ति ऑटोमेटिक आ जाती है। वो कोई कहने की बात नहीं है। प्यार एक ऐसी चीज़ है जो अपने आप फना हो जाती है। कुर्बान हो जाती है। आज देश के प्यार में कितने लोग जीवन कुर्बान कर देते हैं। बाबा ने कहा ना कि यहाँ जान कुर्बान करने की बात नहीं है जहान से बुद्धियोग निकालना है। तो हमें मुश्किल नहीं लगेगा। हमें इस योगी जीवन में केवल भगवान का बन कर जीने में हमें मुश्किल नहीं लगेगा। हमारी लगन को हमारी धारणाओं को, हमारे नियम मर्यादाओं को कोई तोड़ नहीं सकेगा। लगन का ये प्रमाण है। बाबा कहते है ंना जहाँ लगन है वहाँ विघ् न भस्म हो जाते हैं। तो बाबा के प्यार में कुछ भी त्याग करना मुश्किल नहीं लगेगा। बाबा की मुरली में बहुत सुन्दर गीत आता है ना तेरे फूलों से भी प्यार, तेरे कांटों से भी प्यार। दुनिया में भी प्यार के खातिर सबकुछ स्वीकार कर लेते हैं। पति अच्छा है उसके खातिर और सब सम्बन्ध स्वीकार कर लेते हैं। अपने शौंक भी छोड़ेंगे बाबा के खातिर भी हम ऐसा सच्चा प्यार होगा तो हम करेंगे। एक कुमारी ने शादी की शादी के कारण फिर सबकुछ स्वीकार किया। भई तुमको नौकरी नहीं करनी, भल तुम कितनी भी पढ़ी लिखी हो तो उसने स्वीकार किया। बहुत अच्छा उसके अन्दर डांस की कला थी पर बोला कि नहीं। डांस ये सब नहीं। तो एक व्यक्ति के प्यार और सम्बन्ध में हम अपनी इच्छाओं को हम अपने शौंक को छोड़ते हैं। बाबा के खातिर हम कर सकते हैं? बाबा से प्यार है तो हम बाबा जो चाहते हैं वो करके दिखाएं। हरेक को स्पष्ट है कि परिवार में रहने वालों के लिए बाबा की क्या आज्ञा है, बाबा क्या चाहते हैं। कुमारों से बाबा क्या चाहते हैं, कुमारियों से बाबा क्या चाहते हैं। तो अपनी चाहना को समर्पित करना अपनी इच्छाओं को नाम शेष करना और भगवान को आशाओं को स्वीकार कर उससे पूरी करने का पुरुषार्थ करने में लग जाना प्रैक्टिकल में सच्चा प्यार है। बाबा बाबा करें पर सहन करने को तैयार नहीं। एडजस्ट करने हम तैयार नहीं, यज्ञ की दिन चर्या चलने में हम तैयार नहीं तो ये सच्चा प्यार तो नहीं कहा जायेगा। सच्चा प्यार अनुरूप बनाता है। ऑटोमेटिक उनके जैसे आप बनते जायेंगे। उनको जो खाना पसंद है वो बनायेंगे। उनको पंसद है उस प्रकार के कपड़े पहनेंगे। अपने आप जीवन एडजस्ट होता जाता है। उसके अनुरूप बनते जाते हैं। तो अगर हमारा बाबा से जिगरी प्यार है तो बाबा जैसा हम बनते जायें। ये रिज़ल्ट आता है तो कहेंगे सच्चा प्यार, प्रैक्टिकल प्यार। हम उनके जैसे बनते जायें। जो उनको पसंद वो ही खाना, जो उनको पसंद वो ही पहनना है। तो आपको नियम नहीं लगेगा कि बाबा के बने हैं तो ये नहीं करना है, ये नहीं करना है ऐसा महसूस नहीं होगा। पर हमें लगेगा कि उनकी खुशी में हमारी खुशी है। उनकी खुशी में हमारी खुशी है। क्योंकि हमारा तो लक्ष्य ही है उनके जैसा बनते जाना बनते जाना, बाबा जैसा बनते जाना है। बाबा जैसा बन जाना है। यही तो हमारा आखिरी निर्णय है। इसलिए ना मुश्किल लगेगा न मेहनत लगेगी तब बाबा कहते हैं कि जहाँ मोहब्बत है वहाँ मेहनत नहीं है। अगर योगी बनने में मेहनत लग रही है तो मिन्स हमारी बाबा से मोहब्बत कम है। प्यार प्यार में बाबा जैसा बनते जाना है। सहज सहज खुशी खुशी बाबा जैसा बनते जाना है। करेंगे, देखेंगे, एक साथ तो नहीं होगा, धीरे-धीरे होगा ये बातें वो ही करते हैं जिन्होंने पहचाना नहीं है, जिन्होंने निर्णय नहीं किया है कि बाबा जैसा ही बन जाना है। तो मैं समझती हूँ कि बाबा के लिए प्यार बस वो ही हमारी एकाग्रता का आधार है। बाबा जैसा बनने का सहज साधन है अपना सबकुछ आप सुनते हैं ना कितने किस्से आप सुनते हैं ना कि एक देहधारी के प्यार में जिस देहधारी का कोई ठिकाना नहीं है, न कोई गुण लक्षण ठीक हैं संस्कार भी अच्छे नहीं, आदतें भी कैसी, कलियुग अंत की आत्मायें कैसी होंगी। ऐसे देहधारी के प्यार में घरबार छोड़ के चले जाते हैं, माँ बाप को छोड़ के चले जाते हैं, समाज की लोक मर्यादा तोड़ के चले जाते हैं। और आजकल तो ऐसे किस्से हो रहे हैं कि उस देहधारी के प्यार में सम्बन्ध भी नहीं बने हैं। उस प्यार में पैसों की गहनों की चोरी करके भी ले जाते हैं। ऐसा अन्धा प्यार कहते हैं ना। बाबा कितना परम है कल्याणकारी है बाबा के प्यार में हमें तो कुछ छोडऩा नहीं है बाबा ने कहा नहीं है कि तुम चोरी करके ले आओ। बाबा ने तो हमें कभी कुछ कहा नहीं है। बाबा तो हमें कितनी ऊंच शिक्षायें देता है। बाबा कहते हैं कि तुम अपने परिवार को पालो, बच्चों को सम्भालो। पर बाबा के यज्ञ और सेवा में भी जो सहयोग कर सकते हो वो करो। ऐसा बाबा से दुनिया को भूलना, देह सम्बन्धों को भूलना हमारे लिए सहज हो जाना चाहिए मुश्किल नहीं लगना चाहिए। हमें तो भूलना है छोडऩे की भी बात नहीं, आसक्ति मिटानी है, मोह मिटाना है तो इसलिए बाबा के दीवाने बन जाना है। परवाने बन शमा पर स्वाहा हो जाना है। अब एक लगन हम सबकी लग जाये वास्तव में उससे ही ज्वालास्वरूप योग बनेगा। लगन की अगर तेज करनी है। ज्वाला स्वरूप योग और कोई चीज़ नहीं है पर अनन्य प्यार, सम्पूर्ण प्यार, दिल की कुर्बानी और बाबा के आज्ञा पर चलकर बाबा जैसा बन जाने की धुन लगन वो हमें मगन कर देगा। लवलीन कर देगा, कोई मेहनत नहीं लगेगी। अपने को शांति से बैठकर देखो कि हमारा प्यार बाबा से कैसा है। दिन प्रतिदिन जिसका जिससे प्यार होगा फिर देखना वो अपने आप सबसे न्यारा होता जायेगा क्योंकि उनकी लगन वहाँ लगी रहती है। हमारी लगन भी ऐसी बाबा से लग जायेगी तो अपने आप हम अन्तर्मुखी हो जायेंगे, वाणी पर संयम आ जायेगा, हमें कभी भी अकेलापन लगेगा नहीं हम हर घड़ी बाबा का साथ अनुभव करेंगे तुम्हीं से खाऊं, तुम्हीं से बैठूं, तुम्हीं से खेलूं, तुम्हें देखूं ये प्रैक्टिकल अब हमें करना है। हर चीज़ बाबा के साथ। बाबा कहते हैं ना कि कम्बाइंड स्वरूप। हम और बाबा बस तो चलो हम इसी लगन योग भी अभ्यास करेंगे।