अपनी खुशियों के लिए हम दूसरों की टिप्पणियों के मोहताज क्यों हैं? हम सबको आज़ादी पसंद है, लेकिन हम किसी-किसी के ओपिनियन के गुलाम हैं। यह निर्भरता ही तो बदलनी है। लाइक, कमेंट, चैक करने के लिए रोज़ सोशल मीडिया पर घंटों बिताते हैं। माना कि ये दुनिया उतार-चढ़ावों से गुजर रही है। कभी कुछ हमारे अनुसार हो रहा है, तो कुछ हमारे अनुसार नहीं भी हो रहा है। लेकिन अगर हमारा दिमाग खुशियों के लिए बाहरी चीज़ों पर निर्भर हो गया, तो सच्ची खुशी हासिल नहीं कर पाएंगे। इसके लिए अंदर झांकना होगा। हमें समय रहते कदम उठाना होगा।
हमारे जीवन का एक साधारण-सा समीकरण है कि क्रक्रसंस्कार से संसार बनता है।ञ्ज चाहे वो संसार मेरा घर हो, चाहे वो संसार मेरा शहर हो या वो जो मेरी सृष्टि है। ये सब हम अपने संसार से बनाते हैं। आज हम सभी अनुभव करते हैं कि दुनिया बदलनी चाहिए। लेकिन हमें इस दुनिया के अन्दर क्या चाहिए? हम शांति चाहते हैं। खुशियां भी, जहाँ सबके चेहरे खुश होने चाहिए। सद्भावना, दूसरे को समझना और दूसरे के प्रति सही विचार, भावनाएं और नेमतें पैदा करना। कम्पेशन(सहानुभूति) चााहिए। यूनिटी चाहिए। रिसपेक्ट चाहिए। टॉलरेंस चाहिए। आज सोशल मीडिया पर कोई एक कमेंट लिख देता है तो चार रिएक्शन आ जाते हैं। माना असहिष्णुता हो रहे हैं तो चार रिएक्शन आ जाते हैं। माना असहिष्णु हो रहे हैं हम, छोटी-छोटी बातों पर प्रतिक्रिया करते हैं। लेकिन अब हमें स्पष्ट है कि हमें क्या चाहिए, पर कैसे बनेगी ऐसी दुनिया? हमारे पास एक लाख रूपए आ जाते हैं तो दस लाख चाहिए। दस लाख आ जाते हैं तो एक करोड़ चाहिए। इसका कोई अंत नहीं। रुपया कमाने में कुछ भी गलत नहीं है। पर स्पष्टता होनी चाहिए कि किसलिए चाहिए। एक मिनट एकाग्र होकर सोचिए कि हम धन कमाते हैं तो उस धन से क्या चाहिए? खुशी चाहिए। हमारा शब्दकोश कहता है कि इसे पाकर हमें खुशी मिलेगी। और हम बहुत कुछ हासिल करते जा रहे हैं ताकि खुशी मिले। चलिए एक मिनट में चेक करते हैं- क्या चीज़ें हमें खुशी दे सकती हैं? हम नई डे्रस खरीदते हैं तो खुशी मिलती है? खरीदकर खुशी मिलती है ना, सही है। अब पहन ली पहली बार, आज पार्टी में जाना है रात को। लेकिन जब पार्टी में जाते हैं तो कोई कुछ बोलता ही नहीं है। हमने इतनी महंगी ड्रेस खरीदी, हमें अच्छी भी लगी, खुशी भी हो रही थी। लेकिन हमने ये उम्मीद भी रखी कि जब हम जाएंगे तो लोग कहेेंगे बहुत अच्छी। कोई कुछ बोल ही नहीं रहा है सब चुप-चुप हैं। ऐसे में हम ही किसी तरह डे्रस का टॉपिक शुरू कर देते हैं। हम दूसरे की डे्रस की प्रशंसा करना शुरू कर देते हैं, ताकि कहीं न कहीं ध्यान तो जाए। क्रक्रआपकी डे्रस बड़ी सुन्दर है, आपने कहाँ से ली है, तो मैंने कहा हमने यहाँ से ली। आपकी भी बहुत प्यारी है।ञ्ज तब हमें सुकून मिलता है कि हमारी भी ड्रेस अच्छी है। आखिरकार दुनिया ने अप्रोच किया। अब आप खुशी महसूस करते हैं। यह प्रक्रिया बहुत सुन्दर गेम हो जाता है। हमें अच्छा लगता है, जब दूसरे कहते हैं कि आपकी ड्रेस बहुत अच्छी लगती है। फिर अचानक कोई आकर चार लोगों के बीच में कह देता है- क्या पहना हुआ है। एक बार ट्राई करके देखना तो चाहिए था ना, या कलर ठीक नहीं लग रहा है। अब वो खुशी गायब हो गई। अब तो अपनी ड्रेस पर डाउट होने लग गया। होता है डाउट कभी-कभी अपनी पसंद पर। फिर हम सहमति के लिए किसी और की तरफ रूख करते हैं कि मुझे बताना मेरी डे्रस कैसी है। सामने वाला कहता है बहुत अच्छी है। हम कहते हैं देखो उसने बोल दिया अच्छी नहीं है। सवाल है कि क्या यह आज़ादी है? घूमकर वापस उसी डे्रस पर आते हैं। आपने अपनी पसंद से उसे खरीदा था। लेते समय अच्छी लगी थी। जब अपनी पसंद अच्छी लगी, फिर चाहे वो एक ड्रेस हो, चाहे वो जीवन जीने का तरीका हो, चाहे वो काम करने का तरीका हो, चाहे वो अपने फैसले हों, चाहे वो अपनी लाइफ स्टाइल हो, ये सभी हमारी अपनी च्वॉइस हैं, हमारा खुद का चुनाव है। खुद को ड्रेस अच्छी लगी, फिर पब्लिक ओपिनियन से अपसेट क्यों हो गए? अपनी ही पसंद पर डाउट करना क्यों शुरू किया। क्योंकि हमने सोचा कि जब सब कहेंगे कि वो चीज़ अच्छी है, तो वो अच्छी है। डिपेंडेंसी। ऐसी निर्भरता शुरू में छोटी-छोटी चीज़ों से प्रारंभ होती है, लेकिन करते-करते हमारा दिमाग परिस्थितियों और लोगों के ऊपर निर्भर हो चुका है। जीवन अगर खुशी-खुशी बिताना है तो इस तरह की गुलामी से बाहर निकलना होगा। अपनी खुशी के लिए दूसरों की सहमति-असहमति का इंतज़ार न करें। अपने फैसलों पर अडिग रहें।