‘तुमने मुझे दर्द दिया’ पर किसका नाम आने वाला है? आप सबको देख सकते हैं। आपने मुझे धोखा दिया, आपने मुझसे झूठ बोला, आपसे मुझे धोखा मिला। परंतु मैंने अपने मन के अन्दर, दिल के अन्दर दर्द पैदा कर लिया। जैसे ही मैंने अपने दिल के अन्दर दर्द लिया तो पॉवर सारी किसके पास आ जाती है, अपने पास कि मैंने क्रियेट किया मैं ही ठीक करूंगी। जब वो शाम को घर आयेंगे ना आज तो हम उनके सामने मुँह बनाकर बैठ जाते हैं। उनको तो याद भी नहीं सुबह क्या हुआ था। अब हम इंतज़ार करते हैं कि वो सॉरी बोलेंगे। वो कहते हैं कि क्या बात आज आपका मुड ठीक नहीं है? मतलब उनको ये भी नहीं पता कि मेरा मुड क्यों ठीक नहीं है! और दर्द पैदा होता है कि इनको तो मेरी बिल्कुल परवाह नहीं है। हम अपने मन को गाली देते हैं फिर उनके सामने खड़े होते हैं सॉरी बोलो क्योंकि हमें लगता है कि उन्होंने हमें हर्ट किया। अब उनकी सॉरी हमें ठीक करेगी। सारा दिन लोगों के सामने हम लेने की इच्छा से खड़े होते हैं, सॉरी बोलो। कई बार लोग थक कर ऐसे ही सॉरी बोल देते हैं कि तुम बात करना शुरू करो, खाना बनाओ, सॉरी। कलियुग मतलब लेना। सतयुग मतलब देना। देवी देवताओं का सतयुग ऐसे (देना)।
किसी के सामने कभी भी ऐसे नहीं खड़े होना है ऐसे मतलब बुद्धि से कि आप कुछ करो कि जिससे मुझे अच्छा फील हो। मेरी फीलिंग मेरी च्वाइस है किसी और के व्यवहार पर डिपेंडेंट(आधारित) नहीं। इसलिए कौन मुझे दर्द दे रहा है,मैं। सॉरी कौन बोलेगा मुझे आज रात को सोने से पहले? मुझे अपने आपको सॉरी बोलना है। सॉरी मैंने तुमको कितना कष्ट दिया इतने साल। अब से एक बात पक्की करना कि पूरी दुनिया भी आपसे प्यार से बात न करे ना तो सिर्फ एक आप अपने आपसे प्यार से बात कर लो तो जीवनभर खुश रहेंगे। इसका ऑपोजि़ट(विपरित) भी सच है। अगर आप अपने आप से प्यार से बात नहीं करते हैं तो पूरी दुनिया आपसे प्यार से बात करे तो आप उसको देखते हैं कि क्या चाहिए इसको? क्यों इतने प्यार से बात की मुझसे! ऐसा इसलिए लगता क्योंकि हम अपने आपसे प्यार से बात नहीं कर रहे। हैप्पीनेस, पीस डिपेंड करता है कि मैं क्या सोचती हूँ, मैं अपने आप से कैसे बात करती हूँ। ये और किसी पर डिपेंड नहीं करता। मैं शक्तिशाली आत्मा हूँ। तो आज रात को सोने से पहले अपने आपको क्षमा करना और उन सबको जिनको मन में पकड़ के रखा था। आज से उनको छुट्टी। इसको कहा जाता है मुक्ति। मुक्ति चाहिए, मुक्ति चाहिए। ये है मुक्ति। क्योंकि पकड़ कर रखने से मेरा सर्कल क्या होता जायेगा, डार्क होता जायेगा। तो आज सोने से पहले जो छोटे-छोटे दाग पकड़ कर रखे थे, पास्ट को छोड़ो।
एक चीज़ याद रखना कभी भी दूसरों से बात करके मन हल्का नहीं होता। अगर मन को हल्का करना है तो बात सॉल्यूशन का करो, तो हल्का होगा। अगर प्रॉब्लम के बारे में ही विचार-विमर्श करते रहे तो मन हल्का नहीं बल्कि पहले से भी ज्य़ादा भारी हो जायेगा। क्योंकि निगेटिविटी अब मेरे पास ही नहीं मैंने दूसरे के चित्त पर भी रख दी। उससे तो रिश्ता क्या होता जायेगा और-और जटिल होता जायेगा। कोई भी गलत नहीं। सभी अपने-अपने नज़रिये से राइट हैं। हम उनको दुआयें देकर उनके संस्कारों को भी क्या करेंगे, चेंज करेंगे। उम्मीद रखने के बजाय उनको स्वीकार करेंगे। कोई भी मुझे हर्ट नहीं कर सकता।
एक छोटी-सी बात लास्ट, कभी भी, कहीं भी थोड़ा कुछ हो जाये आपस में राय में अंतर आ जाये, तो आजकल एक रिवाज़ बना हुआ है एक-दूसरे से बात करना ही बंद कर देते हैं। चाहे वो घर में भी हो। हम सोचते हैं कि बात न करने से अन्दर हीलिंग होती है। और हरेक ने अपना एक टाइम सेट कर लिया है कि एक घंटा बात नहीं करते। कुछ लोगों के लिए होता है कि अब ये एक दिन बात नहीं करेंगे। कुछ लोगों का होता है तीन दिन बात ही नहीं करते हैं। बात हुई… खत्म हो गई ये होना चाहिए। जब ऐसी कोई बात होती है तो कई बार बहस भी हो जाती है और फिर बैटरी डिस्चार्ज। कितनी डिस्चार्ज होती है, थोड़ी-सी। अगर साइलेन्स में चले जाते हैं तो बहुत फास्ट डिस्चार्ज होती है। क्योंकि हम बहुत भारी करने वाले विचार क्रियेट करते होते हैं एक-दूसरे के लिए। और उसका डायरेक्ट असर घर पर, सब परिवार के सदस्यों पर होता है। अपने घर का कल्चर बनायें, अपने वर्क प्लेस का कल्चर बनायें। कभी-कभी आयेंगी इस तरह की बातें लेकिन हमें तुरंत नॉर्मल हो जाना है। ताकि नुकसान कितना रखें, इतना थोड़ा-सा। ये नहीं कि पूरा दिन बात ही नहीं करनी है एक-दूसरे से। लेकिन अन्दर से सिर्फ उनसे ही बात हो रही है। हैवी निगेटिव एनर्जी(भारी नकारात्मक ऊर्जा)।
आप जो घर का कल्चर क्रियेट करेंगे ना तो आप बच्चों का जीवन उस पर आधारित है। इसलिए बहुत-बहुत ध्यान देने की ज़रूरत है। इस तरह की बातें रिश्तों में बहुत ज्य़ादा दूरियां ले आती हैं क्योंकि हम बहुत निगेटिव वायब्रेशन एक-दूसरे को भेज देते हैं। जो काम पांच मिनट में हो सकता है वो एक सेकण्ड में भी हो सकता है, वापिस वहीं आने में। टाइम का उसमें कोई फैक्टर ही नहीं है।