मीडिया समाज को सिर्फ दुनिया का दर्पण नहीं दिखाता, मीडिया समाज जो है, उसको वैसा बनाता भी है। हम में से अधिकतर की आज बीमारी है ज्य़ादा सोचना। लेकिन ज्य़ादा सोचने का कारण क्या? मेरे अंदर क्या सोच चल रही है, उसका स्रोत क्या है? हम सही सोच रहे हैं या नहीं, ज्य़ादा सोच रहे हैं या कम? वो जो सोच है एक एनर्जी है। उसका स्रोत क्या है? अगर उस एनर्जी को बदलना है तो उसके स्रोत को बदलना पड़ेगा।
हम कोई भी कार्यक्रम एक मिनट के मौन से शुरु करते हैं। क्योंकि ज्य़ादातर हम कुछ भी कार्य करने के लिए बाकी सब चीज़ों की तैयारी करते हैं, लेकिन जिस मन ने उस काम को करना है, उस मन की ही तैयारी नहीं करते। हम एक काम के बाद दूसरा काम, दूसरे के बाद तीसरे में शिफ्ट होते जाते हैं। वो सब करने के लिए बीच-बीच में हमें एक मिनट का मौन लेना चाहिए। चारों तरफ कुछ भी चल रहा हो, लेकिन हमारे अंदर वो शक्ति है कि अपने मन को डिटैच करके हम एक मिनट सिर्फ अपने आपसे बात कर सकते हैं। सारे दिन में हमारा रोल रहता है सबको बताना कि दुनिया में क्या हो रहा है। दुनिया में पत्ता भी हिले तो हमें सबको बताना है। सारा दिन में इतना फोकस बाहर की दुनिया पर होता है। ये जो अपने अंदर की बाहर की दुनिया पर होता है। ये जो अपने अंदर की दुनिया है, उसकी तरफ देखने का कभी-कभी टाइम ही नहीं मिलता। बाहर की जो दुनिया है, वो किससे बनती है? किसी हॉल में पचास लोग बैठे हैं। उसकी एनर्जी फील्ड क्या होगी? पचास मन की जो एनर्जी होगी, वो टोटल उस हॉल की एनर्जी होगी। अगर हमें उस हॉल की एनर्जी को चेंज करना है तो हमें किसको चेंज करना पड़ेगा? हम सबको बता रहे हैं कि दुनिया में क्या हो रहा है। लेकिन उसके साथ-साथ अगर हम थोड़ा-थोड़ा ये बताना शुरु करें कि जो हो रहा है उसको अगर बदलना है तो क्या करना है? पिछले दस-पंद्रह साल में जितना हम सुन रहे हैं, पढ़ रहे हैं, देख रहे हैं, उससे इन्फॉर्मेशन बढ़ी है, जितनी हमें मिलती है। आप और मैं स्कूल में थे तो कितनी इन्फॉर्मेशन मिलती थी? कितने टीवी चैनल थे, कितने न्यूज़ पेपर थे और इंटरनेट तो था ही नहीं। यह भाग्यशाली पीढ़ी। भाग्यशाली इसलिए क्योंकि कम इन्फॉर्मेशन कम थॉट, ज्य़ादा इन्फॉर्मेशन ज्य़ादा थॉट्स। गलत इन्फॉर्मेशन गलत थॉट्स। इन्फॉर्मेशन सीधे-सीधे सोच का स्रोत है। जो हम पढ़ते हैं, सुनते हैं, देखते हैं वो जैसे मन का भोजन है। वो हम मन में भरेंगे, उसी से सोच बनेगी। जैसी सोच होगी, वैसा समाज होगा। जैसा समाज होगा, वो आप कल पेपर में लिखेंगे। जो आप लिखेंगे, उसे सब लोग पढ़ेंगे। जो पढ़ेंगे, वैसा ही सोचेंगे। वैसा ही सोचेंगे, वो कल फिर और होता जाएगा। जो मीडिया में आता जा रहा है, वो समाज में बढ़ता जाएगा। अपने आप बढ़ता जाएगा। हमारे पास शक्ति है समाज को बदलने की। अगर हम रोज़ सिर्फ ये पढ़ेंगे कि क्या-क्या गलत हो रहा है तो मेरा नज़रिया दुनिया के प्रति हो जाएगा कि सब कुछ गलत है। इतना सारा कुछ जो अच्छा हो रहा है, वो शायद ही कहीं आ रहा है। मैं आपको एक उदाहरण बताती हँू। एक प्रोग्राम में हम थे। उसमें बहुत सारे गेस्ट थे स्टेज पर। उस स्टेट के चीफ मिनिस्टर और विपक्षी पार्टी के लीडर, वो दोनों भी थे। अब वो थोड़ा लेट आए, हम पहले पहुंचे। अरेंजमेंट ऐसा था स्टेज पर, एक बड़ी कुर्सी थी, बीच में बाकी सब साधारण कुर्सी थी। जैसे ही हम आए तो हमें बिठा दिया उस कुर्सी पर क्योंकि मुझे टॉक देनी थी। मुझे पांच मिनट के बाद लगा कि सीएम को आना है इस प्रोग्राम में। फिर मैं साइड वाली कुर्सी पर बैठी। उसके बाद जो विपक्षी लीडर थे वो आए, वो बैठ गए उस बड़ी कुर्सी पर। जब सीएम ने आना था, तो वो जो लीडर थे उनको कहा गया कि आपको यहाँ से उठना और दूसरी कुर्सी पर बैठना है। ये सब कुछ पांच-सात मिनट की बात थी सिर्फ। उसके बाद एक बहुत सुंदर प्रोग्राम था दो घंटे का इनर पीस और इनर पॉवर पर। दोनों ने बहुत अच्छा बोला। अपने आप के लिए, स्व-परिवर्तन के लिए और राज्य के लिए। अगले दिन वो न्यूज़ कवर हुई। वो चैनल्स पर आई। न्यूज़ में ये नहीं आया कि उन्होंने क्या बोला। न्यूज़ सिर्फ ये आई कि वो उनकी कुर्सी पर बैठे। सिर्फ यही दिखाया कि ये यहाँ से कुर्सी से उठ रहे थे और दूसरे वहाँ पर बैठ रहे थे। उस पूरे इवेंट से हमने क्या चुना? जो अच्छी चीज़ थी, उसको चुनना ज़रुरी नहीं समझा और एक छोटी-सी चीज़ को हाईलाइट करके बार-बार उसको दिखाया। यही सब आज सारा दिन हर जगह हो रहा है।