किसी की खामी को समझो… लेकिन अपने मन में समाओ नहीं

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जैसे हमारी दादी स्वयं भी सदा स्वमान में रही और दूसरों को भी सम्मान दिया, चाहे कोई छोटा हो या बड़ा, लेकिन दादी द्वारा उनको प्यार और सम्मान मिला है। जो स्वमान में रहेगा वह ऑटोमेटिक सबको सम्मान देगा। स्वमान में रहने से सबके प्रति शुभ भावना, शुभ कामना रहती ही है क्योंकि वो स्वयं ही अपने को एक मालिकपन की स्थिति में अनुभव करता है और उनका जो भी संकल्प, जो भी वाणी के शब्द होंगे, वो बाबा के हर फरमान को मानने वाले होंगे। दादी, जो बाबा ने कहा है वो मुझे करना है। ब्रह्मा बाबा से प्यार है तो उसका रिटर्न ज़रूर हमको देना है। लेकिन अभी दादी से भी आप सबका प्यार है, तो जो दादी ने किया, दादी ने करके पै्रक्टिकल अपने लाइफ से दिखाया। वो करके आपको दादी को भी रिटर्न देना है, अभी डबल रिटर्न देना है। तो डबल रिटर्न देने की हिम्मत है? क्योंकि प्यार इसी को ही कहा जाता है। जिससे प्यार होता है वो जो कहेगा उसको टाल नहीं सकते हैं। तो हमें अपने को चेक करना है कि सभी के प्रति, हमें सम्मान की वृत्ति रहती है? और अगर हम सम्मान देने वाले हैं उनसे हर एक को यही फीलिंग आती है कि यह हमारे हैं। तो हमारी लाइफ में भी हमारी ऐसी नेचर हो जिससे हर एक समझे तो यह हमारे हैं। इतने इज़ी हैं? इतने लवली हैं? तो अपने आपको चेक करना पड़ेगा। हमारे में छोटा-बड़ा वो तो नम्बरवार होगा ही लेकिन हमारी किसी के प्रति भी निगेटिव वृत्ति नहीं होनी चाहिए। क्योंकि हम दूसरों को कोर्स कराते हैं कि निगेटिव को पॉजि़टिव में चेन्ज करो। तो जो हम कहते हैं पहले किसके कानों में पड़ता है, तो हम दूसरों को सुनाते हैं माना पहले अपने को सुनाते हैं। तो यह चेंकिग अगर हमारी हो जाये, मानो कई कहते हैं कि क्या करें- इनका स्वभाव है ही ऐसा। तो बाबा ने एक बारी कहा था कि क्या यह कहना राइट है? एक है समझना और दूसरा है उसकी कमज़ोरी को अपने दिल में समाना। समझना और समाना इसमें रात-दिन का फर्क है। अगर मानों हमारे मन में उसकी कमी समा जाती है तब तो हमारी चाल-चलन उनसे वैसे चलती है ना, लेकिन अगर उसकी खराबी हम समझते हैं कि यह गलत है, माना वो अच्छी चीज़ नहीं है, तो उस बुरी चीज़ को जानते हुए हम अपने मन में समा क्यों देते हैं? उसकी रिज़ल्ट क्या होगी? जैसे भोजन में अगर खराबी है और वो भूल से भी खा लेते हैं, पेट में चला जाता है तो उसका नुकसान होता है ना? तो जैसे खराब भोजन पेट में समा गया तो नुकसान होता है, ऐसे अगर उनकी खराबी मेरे मन में समा गई फिर हम उनसे जो भी एक्ट करेंगे उसी भावना से करेंगे क्योंकि उसके प्रति खराब भावना हमारे मन में समा गई। तब कहा कि जैसे बाबा ने डायरेक्शन दिया है कि समझो भले लेकिन दिल में समाओ नहीं। तो किसी भी खराब चीज़ को अगर आप अपने मन में समाते हो तो उसका कारण क्या होता है? खराब चीज़ बाबा ने तो नहीं दी है, खराब जोभी कोई संस्कार कहो, संकल्प कहो, अन्दर मन मे मैंने समा लिया तो वो रावण की प्रॉपर्टी है। तो जिसके दिल में, मन में रावण की प्रॉपर्टी है उसके दिल में बाबा कम्बाइण्ड कैसे रह सकता है? हम कभी कभी यह समझते भी हैं कि यह नहीं होना चाहिए लेकिन वो सब समझते हुए भी जो नहीं होनाचाहिए, नहीं करना चाहिए वो हो ही जाता है, उसका कारण क्या है? इसका सूक्ष्म कारण यही है कि कम्बाइण्ड रूप से बाबा जो हमको मदद देवे, वो मन में मदद के लिए है ही नहीं। तो बाबा की मदद न मिलने के कारण हम जो चाहते हैं वह कर नहीं पाते। जिस समय कोई गलती होती है तो आत्मा कमज़ोर हो ही जाती है, ऐसे टाइम पर बाबा के कम्बाइण्ड स्वरूप की मदद फायदा देती है। और जब हमारे पास कम्बाइण्ड की फीलिंग ही नहीं है तो मदद कैसे मिलेगी। क्योंकि भावना ही वो हो जाती है, समझो वो अच्छा भी करेगा, तो भी मेरे मन में यह भावना है – यह है ही ऐसे, तो हमको उसकी अच्छाई में भी बुराई की ही फीलिंग आयेगी, कुछ भी अच्छा ही नहीं लगेगा। दादी सबको प्यारी क्यों लगती थी? दादी अगर कोई भी बातदेखती थी, दादी के पास किसी की भी रिपोर्ट आ जाए लेकिन दादी मन में कभी भी नहीं रखती थी। तो ऐसे अपने को चेक करो कि हमारी हर आत्मा के प्रति ऐसी शुभ भावना है? उनके निगेटिव कर्म का, वाणी का प्रभाव हमारे मन में तो नहीं है? तो जैसे बाबा की हैण्डलिंग भी ऐसे ही रही प्यार देने की, भले निगेटिव को जानता था लेकिन वो सब जानते हुए भी बाबा की फीलिंग शुभ भावना, शुभ कामना की रहती थी। ऐसे ही हम अपने को चेक करें। वृत्ति से वायब्रेशन होते हैं। किसी के प्रति बहुत अच्छी वृत्ति है, यह बहुत अच्छे पुरुषार्थी हैं, बहुत एक्यूरेट हैं तो हमारे वायब्रेशन उसके प्रति क्या होंगे? तो हमको कौन सी सेवा अभी करनी चाहिए? हमको भी दादी से प्यार है तो उसका रिटर्न हम क्या देंगे? हम वाणी में आते हुए शक्तिशाली वृत्ति से वायुमण्डल बनाने की सेवा करें। अभी योग को बहुत पॉवरफुल शक्तिशाली, ज्वालामुखी बनाना है। जिसमें मन की एकदम एकाग्रता भी हो और दूसरा हर आत्मा के प्रति रहमदिल की भावना इमर्ज हो। तोऐसेअभी हम लोग अगर ज्वालामुखी योग में बैठे हैं, तो क्या हर आत्मा के प्रति मैं सुख दे रही हूँ, शान्ति की फीलिंग दे रही हूँ, यह संकल्प चलेंगे या सिर्फ हम अपने योग के पॉवरफुल स्टेज में होंगे? सूर्य जब उदय होता है और किरणें देता है तो उन किरणों द्वारा कहाँ पानी को सुखाने की सेवा होती है और कहाँ पानी बरसाने की सेवा करता है, दोनों ही करता है तो क्या सूर्य मन में संकल्प करता है कि मुझे यहाँ सुखाना है, यहाँ बरसाना है? नहीं। ऑटोमेटिकली सूर्य जब उदय होता है और उनकी किरणें फैलती हैं तो जहाँ जो आवश्यकता है, समझो सुखाने के शक्ति की आवश्यकता है, बरसाने की शक्ति की आवश्यकता है, तो जब सूर्य की किरणें निकलती हैं उनसे स्वत: ही वो प्राप्ति होती है। तो हमको भी यह संकल्प करने की ज़रूरत नहीं है लेकिन हम मास्टर सर्वशक्तिवान की स्टेज पर एकाग्र बुद्धि से स्थित रहें क्योंकि हम अगर एकाग्र नहीं होंगे तो हमारी निर्णय शक्ति काम नहीं कर सकती है। हम कोई भी सही निर्णय तब कर सकेेंगे जब हमारा मन बुद्धि एकदम एकाग्र हो। तो दादी ने जो बाबा से बारह दिन की एप्लीकेशन डाली वो इसलिए कि क्योंकि अभी दादी के मन में और कुछ भी संकल्प नहीं है, जिम्मेवारी कोई भी नहीं है। सिर्फ विश्व कल्याण की जिम्मेवारी है, एक ही संकल्प है। मन-बुद्धि उसी एक सेवा में ही एकाग्र है, इसीलिए दादी ने बाबा को कहा तो मेरे को यहाँ रहाके मैं जो सेवा करूँगी वो आपके समान करूंगी। और हम लोग अभी कहते हैं बाबा हमारे साथ कम्बाइण्ड है, यह स्मृति में रखना पड़ता है लेकिन दादी के साथ बाबा कम्बाइण्ड तो क्या, लेकिन साथ में है ही है। तो वो भी पॉवर दादी की सेवा में ऑटोमेटिकली होगी। तो हम सबको अभी क्या करना है? दादी के प्यार का रिटर्न क्या देंगे? करेंगे ऐसी सेवा?एकदम ज्वालामुखी क्योंकि योग में एक होता है मा. सर्वशक्तिवान, तो शक्तियों की अनुभूति ऑटोमेटिकली होगी। हम यह नहीं कहेंगे मेरे में सहनशक्ति है, सामना करने की शक्ति नहीं है। जैसे बीज में सारे वृक्ष की सब शक्तियां स्वत: समाई हुई होती हैं। ऐसे हम भी बीजरूप यानी सर्वशक्तियों के बीजरूप प्रैक्टिकल रूप में होंगे तो हमारी सेवा यह हो सकती है। तो अभी यह पुरुषार्थ करना पड़ेगा। जब इन बातों में हमारा अटेन्शन चला जायेगा तो ऑटोमेटिकली हमारे दिल में शुभ भावना के सिवाए और कोई भी भावना नहीं होगी क्योंकि हमारे में संस्कारों का या वेस्ट थॉट्स का टक् कर होता है लेकिन अगर हम शुभ भावना की स्टेम में रहें और मन में किसकी बुराई समाये नहीं, समझे भले लेकिन समाये नहीं तो हमारे मन और दिल में शुभ भावना रहेगी फिर हमारी चलन स्वत: अच्छी रहेगी। तो अभी सब वृत्ति से वायुमण्डल बनाओ, पहले अपना फिर सेवाकेन्द्र का, फिर विश्व का। तो दादी को रिटर्न देंगे ना! अच्छा – एवररेडी हो जाना।

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