मन की बातें

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प्रश्न : मैं पुणे से सोनल कुलकर्णी हँू। मैं इंजीनियरिंग की स्टूडेंट हूँ लेकिन मुझे कुछ भी याद नहीं रहता। कॉलेज में जब प्रोफेसर पढ़ा रहे होते हैं तब भी मैं अपने आप को एकाग्र नहीं कर पाती तो इससे मुझे बहुत टेंशन रहता है। मुझे क्या करना चाहिए? उत्तर : अपने को चेक करें कि मन कहाँ भटक रहा है। आजकल ये जो प्यार का इफेक्ट है वो ज्य़ादा देखने में आ रहा है। ये जो अफेयर्स हैं, ये मनुष्य के मन को विचलित कर रहे हैं। स्टूडेंट लाइफ में तो इन सम्बन्धों से दूरे ही रहना चाहिए। पढ़ाई पूरी हो जाये, अच्छी जॉब में आ जायें फिर इन सब सम्बन्धों को जोड़ें, निभायें। तो ये जो अफेयर्स हैं यही कारण बनते हैं मन को भटकाने के। और बच्चों को इसका आभास नहीं होता। जब वो नाता जोड़ते हैं वो तो बरबस किसी की ओर खींचे चले जाते हैं। और वहाँ जब उनको धोखा मिलता है, अपनापन नहीं मिलता, जो एक्सपेक्टेशन्स रखते थे उन पर वो व्यक्ति खरा नहीं उतरता, तो उनका मन बहुत विचलित हो जाता है। मनुष्य जिस फील्ड पर कार्य कर रहा है उसे उसी पर पूरा ध्यान देना चाहिए। अगर वो काम एक जगह कर रहा है और मन दूसरी तरफ भटक रहा है तो उसकी बुद्धि वहाँ स्थिर होगी नहीं। इसका दूसरा कारण ये भी है- मैं स्टूडेंट्स से पूछता हूँ कि टीवी कितने घंटा देखते हो? कई बताते हैं बिल्कुल नहीं। इसमें जैसे हम चर्चा करते आ रहे हैं पूर्व जन्मों की और हमारे चारों ओर के वातावरण की। हमारे चारों ओर निगेटिविटी बहुत है। ऐसा समझ लीजिए चारों ओर गंदगी ही गंदगी फैली हुई है। तो जिस मनुष्य का मन, लड़के और लड़की का मन निगेटिव हो जाये एक बार तो वो बाहर की निगेटिव एनर्जी को अटे्रक्ट करने लगता है। इसलिए भी बहुतों का मन भटकता है। तो इससे बचने के लिए मैं आपको एक छोटी-सी विधि बता देता हँू, इससे आप दोनों ओर से ठीक हो सकती हैं। मैं आत्मा हूँ, आत्मा इन दोनों भृकुटियों के बीच रहती है। आत्मा बहुत सूक्ष्म प्वांइट ऑफ एनर्जी है। ये देह हमारा अलग है, और मैं आत्मा अलग हूँ। देखिए ये देह तो तब भी होता है जब मनुष्य की मृत्यु होती है लेकिन असली सत्ता, चेतन शक्ति आत्मा है जो उससे निकल जाती है। मैं आत्मा हूँ, प्वांइट ऑफ एनर्जी हूँ। अपने को थोड़ा एकाग्र करें। ये 10 सेकण्ड से प्रारम्भ करें और 1 मिनट तक ले चलें; और ऐसा दिन में पाँच बार कर लें। सवेरे उठते ही कॉलेज जाने से पहले ही 2-3 बार कर लें। मैं आत्मा यहाँ बैठी हूँ। चाहे आँख बंद करके करें, चाहे खोलकर, कोई बात नहीं। आत्मा के स्वरूप को देखें और संकल्प दें मैं आत्मा पीसफुल हूँ, मैं आत्मा प्युअर हूँ, बस ये संकल्प। आत्मा को विज़ुअलाइज़ करें, ऐसा सात बार रिपीट कर लें। तो धीरे-धीरे दूसरी चीज़ का निगेटिव फोर्स जो आपके ऊपर आ गया है, वो हट जायेगा और मन एकाग्र होने से बुद्धि पढ़ाई में लगने लगेगी और आपकी समस्या समाप्त हो जायेगी। ये अभ्यास जो हमने सिखाया पॉजि़टिव थॉट बताये, मैं पीसफुल आत्मा हूँ, मैं प्युअर हूँ। इससे आप सेफ हो जायेंगे बहुत जल्दी, और दो-चार दिन में ही। किसी-किसी का एक दिन में ही हो जाता है और किसी-किसी का तीन दिन में। बुद्धि एकाग्र हो जायेगी और फिर से आपको पढ़ाई में इन्ट्रेस्ट पैदा हो जायेगा और आप पढ़ाई को एन्जॉय करेंगी।

प्रश्न : मैं ब्र.कु. अनुराधा कर्नाटक से हूँ। मैं कर्नाटक के एक सेवाकेन्द्र पर सेवा दे रही हूँ। मैं सेवा में बहुत मेहनत करती हूँ लेकिन स्टूडेंट्स की वृद्धि नहीं हो रही है, मैं क्या करूं? उत्तर : हमारी इन ब्रह्माकुमारी बहनों ने अपना सम्पूर्ण जीवन ईश्वरीय सेवाओं में अर्पित कर दिया है। इन्होंने अपने लिए कुछ नहीं किया। केवल समाज को देने के लिए अपनी कुर्बानी कर दी है। इन्होंने इसके लिए पवित्र जीवन अपना लिया और साधनाओं का पथ अपना लिया। ये बिल्कुल नैचुरल है कि ऐसा करने के बाद भी अगर स्टूडेंट्स में वृद्धि नहीं होती तो मनुष्य को अच्छा नहीं लगता है। चारों ओर सेवाओं की रिमझिम हो, सभी लोगों को सुख मिल रहा हो। इनके त्याग भरे जीवन से सबको प्रेरणा मिल रही हो तो उनको बहुत आनंद होता है। तो ऐसे में मैं आपको एक विधि बताऊंगा केवल एक विधि – अपने सेन्टर के माहौल को पॉवरफुल बनायें, उसके लिए 21 दिन तक एक घंटा रोज़ फिक्स करके बहुत अच्छी तरह से, पूरी एकाग्रता से राजयोग मेडिटेशन का अभ्यास करें। और उसमें दो-तीन स्वमान लेंगे, स्वमान माना जिससे हमारी शक्तियां जागृत हो जाती हैं। जैसे मैं एक महान आत्मा हूँ, बिल्कुल हम भगवान के बच्चे हैं तो हम महान हैं। उसने हमें विश्व कल्याण का काम दिया है। तो दूसरा संकल्प रखें मैं विश्व कल्याणकारी हूँ। तीसरा संकल्प रखेंगे जो स्वयं भगवान ने हमें याद दिलाया तुम पूर्वज हो, तुम वही हो जिनकी मंदिरों में पूजा हो रही है। तो तीसरा संकल्प रखेंगे मैं पूर्वज हूँ, और चौथा संकल्प रखेंगे मैं इष्ट देवी हूँ। ये चार स्वमान हैं इनको बहुत अच्छी फीलिंग में लाकर एक घंटा बहुत पॉवरफुल राजयोग मेडिटेशन करें। जब हम पॉवरफुल मेडिटेशन कहते हैं तो उसका अर्थ होता है कि मन-बुद्धि और कहीं भटके नहीं। 21 दिन ऐसा करेंगे और योग के बाद देव कुल की आत्माओं का आह्वान करेंगे कि हमारे आस-पास मान लो हमारा शहर है दस-बीस किलोमीटर के एरिया में। जो भी देव कुल की आत्मायें हैं वो सब शिव बाबा के पास आ जाओ। हम उन्हें ऐसे बुलायेंगे जैसे कोई आवाज़ देकर किसी को बुलाता है। हम मन की आवाज़ से देव कुल की आत्माओं का आह्वान करेंगे। निश्चित रूप से इससे सेवा वृद्धि होगी। ऐसे सफल प्रयोग बहनों ने किए हैं।

प्रश्न : मेरे पति व मेरी सास मुझे शुरु से ही पसंद नहीं करते थे। वे मुझसे बात-बात पर झगड़ा किया करते थे। उन्होंने मुझे घर से निकाल दिया है। कुछ समय से मैं अपने भाई के घर में रह रही हूँ। लेकिन भाई के घर में मेरा मन नहीं लग रहा है। कुछ लोग मुझे वापिस ससुराल चले जाने की सलाह दे रहे हैं और मुझे भी लग रहा है कि मुझे अपने ससुराल चले जाना चाहिए। लेकिन मैं कंफ्यूज्ड हूँ कि मुझे क्या करना चाहिए? मैं यहाँ रहूँ या वहाँ चले जाना चाहिए। कृपया मेरा मार्गदर्शन करें। उत्तर : देखिए इससे पहले कि आप निर्णय लें तो नज़दीक के किसी ब्रह्माकुमारी आश्रम पर जाकर ईश्वरीय ज्ञान लें। राजयोग मेडिटेशन करें अपने बारे में बहुत कुछ जानें। कर्मों की गुह्य गति के बारे में जानें तो इनका चित्त शांत हो। क्योंकि आपके मन में पति और सास के लिए डेफिनेटली निगेटिव फीलिंग्स भर गई होंगी कि उन्होंने शुरु से ही इनके साथ दुव्र्यवहार किया। कभी-कभी ऐसा होता है कि बच्चे का झुकाव माँ की ओर होता है और अपने पत्नी और बच्चों की ओर बिल्कुल नहीं होता है। ऐसे कई केस सामने आये हैं। तो पहले तो आप अपने चित्त को शांत करें। और उन दोनों को क्षमा कर दें। बहुत अच्छा होगा ताकि जो आपके मन में कटुता भर गई है। और आपके मन की कटुता सबसे पहले आपको कड़वा बना रही है। इसे ज़हरीला कर रही है, इसकी शांति को भंग कर रही है, इसके जीवन में जो बहुत सुख होना चाहिए था पारिवारिक उसको नष्ट कर रही है। वो समाप्त हो जाये। और उन दोनों के प्रति क्षमाभाव,दोनों के प्रति शुभ भावना ले आयें। और जब आप ज्ञान-योग सिखेंगी तो आपको एक चीज़ सिखाई जायेगी कि ये सभी आत्मायें हैं और ये संसार एक विशाल नाटक है। सभी आत्मायें इसमें देह रूपी वस्त्र पहन कर अपना पार्ट प्ले कर रहे हैं। तो पति और सास भी दोनों आत्मायें हैं और अपना-अपना पार्ट प्ले कर रही हैं। तो इस दृष्टि से आपके मन की कटुता समाप्त होगी। और मेरी तो राय ये है कि भाई के पास तो आप कब तक रहेंगी। किसी नारी को अपने ही घर में रहना शोभा देता है। समस्यायें तो हैं लेकिन अपनी शुभ भावनाओं से आप इनका हल कर सकती हैं। आपको वहीं जाना चाहिए। और महत्वपूर्ण बात ये है कि उन्हें बदलने के बजाय अपने को बदलना चाहिए क्योंकि जब मनुष्य के साथ ऐसा व्यवहार होता है तो मनुष्य अपने को नहीं देख पाता। समझते हैं कि ये दोनों मेरे शत्रु हैं, ये दोनों मेरे को कष्ट पहुंचा रहे हैं, मेरी जीवन के साथ खेल रहे हैं। मुझे बिल्कुल नष्ट कर देना चाहते हैं। तो आपकी अपनी निगेटिव भावनायें उनको पहुंचती हैं और उनका गलत व्यवहार भी बढऩे लगता है। मैं आपको कहूंगा कि आप अपने को चेंज करें। अगर आपका कोई संस्कार ऐसा हो जो दूसरा को बुरा लगता हो, आपका बात करने का तरीका ऐसा हो जो दूसरों को भाता न हो, आपके कर्म करने का तरीका बहुत ढीला-ढाला हो। कई लोग बहुत ठंडा काम करते हैं, कुछ करते हैं कुछ नहीं करते उसको भी आप ठीक करें। तो वो आपको पसंद करेंगे। स्पिरिचुअलिटी का मैं एक अच्छा सिद्धान्त आपके लिए सुना देता हूँ। संसार में लोग कहते हैं हमें कोई भी प्यार नहीं करता। कई जगह ये समस्यायें ढूंढनी चाहिए कि कोई मुझे प्यार क्यों नहीं करता। प्यार तो हर मनुष्य के पास है, प्यार तो हर मनुष्य को देना भी चाहता है पर यदि दूसरे लोग मुझे प्यार नहीं दे रहे तो कहीं न कहीं मेरी भी कुछ गड़बड़ है। इसका मैं एक बहुत सुन्दर समाधान कहूँगा। जो आत्मा स्वयं को देह से न्यारा अनुभव करती है उसे सबका प्यार अवश्य मिलता है। बहुत सुन्दर ये स्पिरिचुअल फिलॉसफी है। इसलिए आपके लिए राय है कि आप राजयोग मेडिटेशन सीख कर मैं आत्मा हूँ ये देह अलग हूँ। मैं आत्मा हूँ, मैं तो पवित्र आत्मा हूँ, बिल्कुल शुद्ध हूँ। शक्तिशाली हूँ। मैं भी इस देह रूपी चोले को धारण करके इस नाटक में पार्ट प्ले कर रही हूँ। बिल्कुल मैं अलग, ये देह अलग। कुछ दिन आप ये अभ्यास करेंगी तो आपको अनुभव होगा जो लोग आपके घृणा करते थे वो लोग आपसे प्यार करने लगेंगे। ये समस्या भी संभव है कि कोई भी पति जब अपनी पत्नी को निकाल देता है तो वो क्रोध वश या किसी अहंकार के वश निकाल तो देता है लेकिन उसे कठिनाई बहुत होती है। तो वो फिर से उसको बुलाना चाहता है लेकिन अहंकार वश वो खुद बुलाना नहीं चाहता कि मैं नीचा न हो जाऊं। मेरा सिर न झुक जाये, आना हो तो आपे ही आ जाये। ईगो प्रॉब्लम। लेकिन आप मेडिटेशन की प्रैक्टिस करेंगी तो उनका विचार भी बदल जायेगा और आपको सम्मान सहित स्वीकार करेंगे।

प्रश्न : मैं जीन्द से शारदा कश्यप हूँ। मेरा बेटा इंजीनियरिंग का विद्यार्थी है। उसका दो पेपर में बैक आ गया है, अब वह घर में सारा दिन उदास बैठा रहता है। बहुत परेशान है कि मैं अपना पेपर कैसे क्लीयर करूंगा, कर पाऊंगा या नहीं। मेरा भविष्य क्या होगा। मैं बहुत समझाती हूँ कि सब ठीक हो जायेगा लेकिन वो समझ नहीं पा रहा है मुझे उसके लिए क्या करना चाहिए? उत्तर : निश्चित रूप से ऐसे केसेज बच्चों के साथ होते हैं। और वो बच्चा बहुत उदास हो जाता है। कुछ बच्चे तो ऐसे हैं खुशमिजाज नेचर के होते हैं कि जो कुछ भी हुआ ठीक है होना होगा हो जायेगा, छोड़ो कोई बात नहीं। लेकिन कुछ बच्चे बड़े सीरियस होते हैं जो हर चीज़ को सीरियसली देखते हैं। उनका एक साल बेकार जा रहा है ये क्या हो गया। तो उनके मन में उदासी आ जाती है। और माँ बाप भी थोड़े परेशान हो जाते हैं और चाहते हैं कि हमारा बच्चा इससे निकल जाये। मनुष्य का जीवन महत्वपूर्ण है। एक पेपर ही हो तो महत्वपूर्ण नहीं है ना। मैं आपके बच्चे के लिए कहूँगा ये जीवन तो खेल है, इसे खेल मानें। बैक आई है तो कल सफलता हो जायेगी। पेपर क्लीयर हो जायेंगे। अपने मन पर उदासी की चादर जो उन्होंने डाल ली है उसको उतार फेंके और बिल्कुल उमंग-उत्साह और खुशी अपने मन में लायें। और फिर से तैयारी करें पूरे उमंग-उत्साह के साथ। सफलता होगी। मैं तो ये राय दूंगा कि कोई आपके आस-पास ब्रह्माकुमारीज़ सेवाकेन्द्र हो तो वहाँ जाकर थोड़ा मेडिटेशन सीखें ताकि एकाग्रता बढ़े और जीवन में खुशी लौटे। मेडिटेशन का सबसे अच्छा फायदा यही होता है कि एक मुर्दे समान बने व्यक्ति में भी नवजीवन का संचार करने लगता है। और वहाँ हमारे सेवाकेन्द्रों में बहुत सारे भाई बहन आते हैं तो खुशी का माहौल इतना ज्य़ादा होता है कि उदास व्यक्ति भी वहाँ आकर खुश हो जाता है। आपके बेटे को हर समय घर पर ही नहीं रहना चाहिए, उससे थोड़ा बाहर आये। कई बार ऐसा होता है कि निराशा के बहुत गर्त में चले जाते हैं, मेरे फ्रैंड्स मुझे क्या कहेंगे, लोग क्या कहेंगे शायद ये सब बातें सोच-सोच कर बहुत ज्य़ादा परेशान हो रहा हो। लेकिन फिर बाहर तो निकलना ही है। घर पर कब तक रहेंगे। फ्रैंड्स से तो कभी न कभी मिलेगा ही। और फै्रंड्स भी जानते हैं बहुतों की बैक आती है कोई बात नहीं। ये खुलेगा तो फ्रैंड्स भी बहुत अच्छी तरह इनके साथ मिले जुले रहेंगे। तो और नहीं तो हमारे आश्रम पर जाये, वहाँ की खुशी का माहौल उनके अन्दर खुशी पैदा करेगा। और ये उदासीनता समाप्त हो जायेगी। क्योंकि उदासीनता तो उसकी ब्रेन की शक्तियों को नष्ट करती जायेगी। इसलिए उनको इस उदासी से बाहर आना ही है। इसलिए मैं कहूँगा माँ को उसको साथ देती रहें। उनको प्रोत्साहित करती रहें। और उनको अपने साथ घूमने-फिरने पिकनिक पर ले जाया करें, बाज़ार में ले जाया करें। और आश्रम पर भी इसे अपने साथ ले जायें तो वो इससे बाहर आ जायेगा।

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