अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय नव विश्व भवन चोपड़ापारा अम्बिकापुर में जन्माष्टमी का पावन पर्व बहुत ही हर्षोल्लास एवं धूमधाम से मनाया गया।
इस शुभ अवसर पर श्री कृष्ण के जीचन लीला पर आधारित एक सुन्दर भव्य झाँकी का सजाय गयाा है। जन्माष्टमी के शुभ वेला में नन्हें- नन्हें कलाकारों के द्वारा श्री कृष्ण और श्री राधे के चरित्र पर आधारित रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत कर सभा को मंत्रमुग्ध कर दिया।
इस शुभ अवसर पर सरगुजा संभाग की ब्रह्माकुमारी संस्था की सेवाकेन्द्र संचालिका ब्रह्माकुमारी विद्या दीदी शहरवासियों को जन्माष्टमी की बधाई देते हुये कहा कि जन्माष्टमी का पावन पर्व हम सभी के लिये बहुत बडा पर्व माना जाता है। क्योंकि श्री कृष्ण सतयुग का पहला राजकुमार है और वो सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण , सम्पूर्ण निर्विकारी मर्याद पुरुषोत्तम डबल अहिंसक है। कृष्ण का मतलब ही होता है जो सभी के मन को मोहने वाले हो, अपने आकर्षक व्यक्तित्व से सबके मन को प्रसन्नता एवं खुशी प्रदान करने वाले है। इन्होंने अपने पूरे जीवन को एक ऐसी श्रेष्ठ धारणा से बांधा जो सभी मनुष्य आत्माओं को जीवन जीने की कला सिखाती हैं। इसलिये कहा जाता है कि कृष्ण और राम जैसा बनो। आगे उन्होंने श्री कृष्ण के अलंकारों का आध्यात्मिक अर्थ बताते हुये कहा कि उनके हाथ में बांसुरी बजाता हुआ दिखाई देता हैं अर्थात् अपने मन को शांत और निर्मल बनाना है। मोर पंख अर्थात् अपने बुद्धि को पवित्र एवं स्वच्छ बनाना है, स्वदर्शन चक्र अर्थात् स्वयं को देखकर अपने अन्दर की कमी कमजोरियों पर विजय प्राप्त करना है। तथा हाथ में लड्डू अर्थात् भारत को पुनः स्वर्णिम भारत भरपूर भारत बनाना हैं। इसलिये श्री कृष्ण के जीवन से यही प्रेरणा मिलता है, कि कैसी भी परिस्थिति हो उसमें स्वयं को खुश रखकर, औरों को खुश करते हुये, सबके साथ मिलकर चलना और बिना किसी को दुःख, दर्द पहुँचाये उनका कल्याण करना है। श्री कृष्ण जैसा बनने का लक्ष्य रखकर स्वयं को उस स्वर्णिम भारत में जाने के लिये तैयार करना ही सच्चे मायने जन्माष्टमी मनाना होगा।
तत्पश्चात् मटकी फोड कार्यक्रम में सपना बहन और किषुन भाई ने भाग लिया। इन्होंने अपने एकाग्रता एवं सूझ बूझ की शक्ति से विषय- विकारों रूपी मटकी को एक बार में फोड़कर अपने अन्दर अच्छाई एवं दैवी गुणों को धारण करने का प्रण लेते हुये पहला विजेता हुये।
इस पावन पर्व पर ब्रह्माकुमारीज़ संस्था से जुडे़ 500 से अधिक भाई बहने उपस्थित थे।
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