कभी कोई उल्टा कुछ कहता भी है तो एक कान से सुनो, दूसरे से निकाल दो। लेकिन दादी कहती एक कान से सुनकर दूसरे से नहीं निकालो, नहीं तो वह अन्दर घूमकर फिर बाहर निकलेगा इसलिए अच्छा यही है कि यहाँ से ही सुनो, यहाँ से ही निकाल दो।
कईयों के पास सूक्ष्म में माया आती है, संकल्प, विकल्प बहुत आते हैं। माया के आने का कारण है बाबा से प्रीत में कमी। जब हमारा नया जन्म, नया बाप, नई माँ, नई पढ़ाई, नया ऑक्यूपेशन सब नया-नया है- फिर हम यह क्यों कहते हैं कि पुराना संस्कार है! क्यों पुराने को मारा नहीं है क्या? पुराना माना साँप, साँप को जि़न्दा रखेंगे तो फूँक तो मारेगा ही। हमें पुराना क्यों सोचना चाहिए, क्या करें – यह मेरा पुराना स्वभाव है ना! हमने कभी ब्रह्मा बाबा के मुख से यह शब्द नहीं सुने जो बाबा कहे मेरा पुराना संस्कार है। हमने कभी नहीं देखा कि बाबा में कोई पुराना संस्कार है। रात-दिन बाबा के संग रहे, पुराना स्वभाव-संस्कार-संकल्प क्या होता, यह कभी हमने नहीं देखा, इसीलिए आज पहले हम सब इस बात का संकल्प करें कि पुराना संस्कार मर गया। हमारा संस्कार नये ब्राह्मण जन्म का है।
सवेरे उठते हैं तो उठते ही बाबा सामने आता है या पुराना संस्कार सामने आता है? पिछले जन्म को मार कर उसका श्वास भी निकाल दो। पुराना संस्कार कहते हो माना अभी तक श्वास रखकर पालना करते हो, साँप को दूध देते हो कि हे साँप तू दूध पी और फूँक मार। क्यों कहें पुराना संस्कार है, जन्म नया, परिवार नया, पढ़ाई नयी, हमें जाना नयी दुनिया में है, सेवा हमारी नयी, फिर हम पुराना-पुराना क्यों पालकर बैठे हैं? पुराने संस्कार को मारें, तब ब्राह्मण जन्म का सुख ले सकेंगे।
कई चलते-चलते थक जाते हैं लेकिन हमारा बाबा कभी थकता है? तो हम भी बाबा जैसे अथक क्यों नहीं बनते हैं! इसके लिए टाइम पर सोओ, टाइम पर उठो तो थकावट की बात ही नहीं। लेकिन थकावट तब होती है जब दिलशिकस्त होते हो, अलबेले होते हो। तो न हमें अलबेला होना है, न सुस्त होना है। सदा चुस्त रहने के लिए उमंग और उल्लास के दो पंख साथ रखो।
अपनी मौज-मस्ती में रहो। कभी कोई उल्टा कुछ कहता भी है तो एक कान से सुनो, दूसरे से निकाल दो। लेकिन दादी कहती एक कान से सुनकर दूसरे से नहीं निकालो, नहीं तो वह अन्दर घूमकर फिर बाहर निकलेगा इसलिए अच्छा यही है कि यहाँ से ही सुनो, यहाँ से ही निकाल दो। जैसे इस कान में पानी पड़ा है तो यहाँ से ही निकालेंगे ना! ऐसे ही यहाँ से सुनो, यहाँ से ही निकाल दो। यहाँ की बात फालतू यहाँ तक भी क्यों घुमायें। उसे निकालने के लिए क्यों टाइम वेस्ट करें, यह भी रॉन्ग है।
हमारे लिए ऐसी कोई घड़ी न आवे जो हैरानी महसूस हो। मैं आज हैरान हूँ, परेशान हूँ, अब इस भाषा को समाप्त कर दो। न ऐसी कोई बात सुनो, न हैरान हो। किसी की फालतू बातें न सुनो, न उसका चिंतन करो। हाँ, किसी का मन भरा हुआ है तो जिसकी ड्यूटी है उसके पास जाकर सुनाके मन को हल्का करो। परन्तु ऐसे नहीं कि आपने दिल हल्की की और मैंने वह बात सुनकर दिल भारी कर ली। नॉट एलाऊ, इसलिए हमें न भारी होना है, न किसी को भारी करना है। न कभी मन को भारी रखना है। बात आई सेकण्ड में समाप्त हुई। इसी को कहा है ड्रामा की बिन्दी लगाना सीखो – इसकी विधि है ड्रामा, बिन्दू। बातें आयेंगी परन्तु आयी, गयी। अभी इन सभी बातों से हमें मुक्त होना है।