वर्तमान में न उलझे रहें जहाँ जाना है उसकी तैयारी में लग जायें

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हमें स्वयं को सिखाना है कि सब अलग-अलग हैं, वैराइटी हैं। सबमें कुछ खूबियां हैं तो कुछ कमियां। इसे स्वीकार करें और अपने को उससे सेफ करते हुए आगे की ओर बढ़ते चलें- जहाँ हमें जाना है, जहाँ पहुंचना है। हमें परफेक्ट बनने के लिए सबकी खूबियों को और विशेषताओं को देखते हुए सम्पूर्ण व सम्पन्न बनना है।

बाबा कहते हैं ना तुम्हारा लक्ष्य है कि अन्त में एक बाबा की याद रहे। अब जीवनभर जो बातें याद करेंगे, वही अन्त में याद आयेगा। तो जीवनभर कौन-सी बातें हम याद करते है, देखो अपने आपको। ज्ञान-योग तो रोज़ करते हैं पर अन्दर से हमारी लगन, अटेंशन, अटैचमेंट कहाँ है? तो जिस परिवार के साथ हमें दिन-रात उठना है, बैठना है, रहना है, खाना है, जीना है, अवस्था तो वहाँ ही बिगड़ती है ना ज्य़ादा! दूसरे तो अच्छे ही लगते हैं ना! उनके साथ कहाँ दिन-रात उठना-बैठना है, हर कोई सोचता है, उसका पति बहुत अच्छा है, वो कहेगा उनकी बीवी बहुत अच्छी है। मेरे ही बच्चे ऐसे हैं, अब वो सोचती उनको क्या पता, मैं ही जानती हूँ कि वो कैसे हैं। तो अवस्था वैसे तो अच्छी ही रहती है, बिगड़ती कहाँ है? आपसी सम्बन्धों में, घर-परिवार की और नौकरी-धन्धे की बातों में। तो वहाँ ही हमें लक्ष्य रखना है, अटेंशन रखना है कि जो हमें मिले हैं, बिना वजह तो कोई नहीं मिला है। बाबा कहते हैं ना, कार्मिक अकाउंट से ही मिले हैं। सोचते हैं, मिले तो मिले फिर मत मिलना और कोई जन्म में। क्यों? हमारे अपने हिसाब से मिले हैं। हम सिर्फ उस व्यक्ति को देखते हैं ना कि ये ऐसे हैं, ये वैसे हैैं। हम भूल जाते हैं कि हम खुद भी कैसे हैं? हमें भी कोई सहन कर रहा है। हमसे भी कोई एडजस्टमेंट कर रहा है। क्योंकि हम भी परफेक्ट नहीं है ना! मैं भी परफेक्ट नहीं हूँ। तो मैं दूसरे के लिए कैसे सोच सकती हूँ कि ये ऐसे हैं, वैसे हैं। हम भी तो कुछ हैं ऐसे टेढ़े-मेढ़े।

सेल्फ रियलाइज़ेशन – कि हम खुद कैसे हैं? हम भी परफेक्ट नहीं हैं। हमारे में भी कोई न कोई कमियाँ हैं। उसमें एक है, मेरे में दूसरी है। अगर सेल्फ रियलाइज़ेशन हमें क्लियर है, तो हमें फिर वो विचार नहीं आयेंगे कि ये ऐसे हैं, वैसे हैं। हमें दोनों तरफ से लक्ष्य रहे क्रएडजस्टमेंट काञ्ज। कुछ हम भी एडजस्ट करें, कुछ और भी एडजस्ट करें। दोनों तरफ से होता है तो आसानी से हम मिल के चल सकते हैं। पर शुरुआत तो खुद से ही करनी होती है। जि़म्मेवार तो हम अपने ही बन सकते हैं, दूसरे के तो बन नहीं सकते।

आत्म स्थिति का अभ्यास प्रबल करें- जितना हम आत्म स्थिति में रहते हैं और अपनी वास्तविकता — जो मुझ आत्मा के गुण, स्वभाव-संस्कार, शक्ति है, उसकी क्लियर मुझे महसूसता है तो मैं दूसरों को भी अंडरस्टैन्ड कर सकती हूँ; और मिल के चल सकती हूँ। बाबा ने यह पाठ तो सिखाया है ना हमें कि वैराइटी ड्रामा है, वैराइटी आत्मायें हैं, हर आत्मा का स्वभाव-संस्कार अपना-अपना है। तो प्रैक्टिकली हम अपने-आपको विभिन्न स्वभाव-संस्कार वाली आत्माओं के बीच भी, हम अपने-आपको ठीक, एकरस रख सकते हैं। हम ज्य़ादा डिस्टर्ब नहीं होंगे।
ये तो फस्र्ट लेवल है। उसको तो पहले क्रॉस करना है। फिर परिस्थितियाँ हैं। गर्वनमेंट की तरफ से आती हैं, प्रकृति की तरफ से आती हैं। परिस्थितियाँ तो आती हैं ना, नौकरी में, धन्धे में, बिज़नेस में, सब में। तो वहाँ भी हमें हिम्मत से, धीरज से और योगबल से चलना है। फेस तो इन पॉवर्स से करना है ना! परिस्थिति तो हर किसी के सामने आती है पर कोई व्यापारी तनाव में आ जाता है, कोई डिप्रेस हो जाता है, कोई हँसी-खुशी से पार कर देते हैं। परिस्थिति हर किसी के सामने आती है पर अपनी आन्तरिक, आत्मस्थिति से हम उनको पार करते हैं। उस समय डिस्टर्ब हो गये, टेन्स हो गये तो बाबा कहते हैं ना, फिर सॉल्यूशन नज़र नहीं आयेगा। जब कोई भी परिस्थिति आती है तो शान्ति और धीरज से हमें उनका सामना करना होता है। हम तो घबरा गये। घबरा गये तो फिर निर्णय नहीं कर पायेंगे। जब घबरा गये तो हम तो डिस्टर्ब हो गये, तो फिर निर्णय कैसे लेंगे? ठीक है, परिस्थिति आई है, इसलिए हमें ये जो रोज़ न्यारा रहने की प्रैक्टिस बाबा कराते हैं ना कि रोज़ देहभान से न्यारे रहो। रोज़ अपने क्ररोलञ्ज से न्यारे रहो कि ये ड्रामा में क्ररोलञ्ज है, पार्ट है। तो आप निरीक्षण कर सकेंगे कि क्या बात आई है, कैसे उनको पार कर सकते हैं।

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