रामरती की दो बहुए थीं। बड़ी बहू का नाम रेखा था। जो देखने में काली थी। वह उसके बड़े बेटे मोहन की बीवी थी। उन दोनों की लव मैरिज़ थी। रामरती अपनी बड़ी बहू को उसके रंग के कारण बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थी।
उसकी छोटी बहू का नाम कमला था। जोकि उसके छोटे बेटे रवि की बीवी थी। रामरती छोटी बहू कमला को बहुत पसंद करती थी। क्योंकि वह देखने में सुंदर थी और उसको रवि के लिए उसने पसंद किया था।
रेखा कुछ दिनों के लिए अपने मायके गयी हुई थी। रामरती अपने पति से रेखा चुगली करती है कि अगर मोहन ने मेरी बात मानी होती तो उसकी भी कमला जैसी सुन्दर बहू लेकर आती। रामरती का पति भी अपनी पत्नी को समझाता था कि रंग-रूप से कुछ नहीं होता, व्यक्ति के गुण मायने रखते हैं। लेकिन रामरती को कोई फर्क नहीं पड़ता था। एक दिन रामरती के छोटे बेटे और बहू ने गोवा जाने का प्लैन बनाया। उनको दो दिन बाद गोवा जाना था। अगले दिन रामरती की कमर में बहुत दर्द होने लगा।
उसको डॉक्टर के पास जाना था तो उसने अपने छोटे बेटे रवि को कहा तो रवि ने बोला कि आज हमें शॉपिंग करने के लिए मार्केट जाना है। आप बड़े भाई के साथ चले जाइये। शाम को जब वह घर लौटे तो रामरती की तबियत ज्य़ादा खराब थी और घर पर डॉक्टर आये हुए थे।
डॉक्टर ने रामरती को 1 हफ्ते बेडरेस्ट की सलाह दी। रवि के पिता ने रवि को गोवा में बाद में जाने की सलाह दी। तब छोटी बहू कमला बोली कि हमने गोवा जाने का बहुत दिन से प्लैन किया हुआ है। माँ जी तो रोज़-रोज़ बीमार होती हैं।
यह कहकर चली गयी। मोहन बोला पिता जी कोई बात नहीं मैं रेखा को कल सुबह ही बुला लूंगा। अगले दिन रवि और उसकी बीवी गोवा चले गए। रेखा को जैसे ही पता चला कि माँ जी की तबियत खराब है वह तुरंत घर पर पहुंच गयी।
रामरती को फिर अपनी गलती का एहसास हुआ कि रंग-रूप से ज्य़ादा व्यक्ति के गुण महत्त्व रखते हैं। वह जिस छोटी बहू को अच्छा समझती थी उसने ही उसको दु:ख पहुंचाया जबकि जिस बड़ी बहू रेखा को वह पसंद नहीं करती थी उसके अच्छे गुणों से वह बहुत खुश थी।
सीख : हमें व्यक्ति के रंग-रूप से ज्य़ादा व्यक्ति के गुणों पर ध्यान देना चाहिए।