मुख पृष्ठदादी जीदादी प्रकाशमणि जीजो अपने पुराने संस्कारों से मुक्त हैं वही जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव...

जो अपने पुराने संस्कारों से मुक्त हैं वही जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव कर सकते

मुझे सदा यही फुरना(फिकर) रहता कि मुझसे ऐसा कोई व्यवहार व बोल-चाल न हो जाए जो धर्मराज के आगे झुकना पड़े। यही मुझे डर है, बाकी मैं किससे डरती नहीं, दुश्मन मेरा रावण है। बाकी सब मित्र हैं।

हम सब मुसाफिर हैं। नांव में बैठे हैं। हमें मजधार से पार करने वाला खिवैया स्वयं सर्वशक्तिवान परम प्यारा हमारा बाबा है। डोरी उनके हाथ में है। वह कहता है नईया चलेगी, आंधी तूफान आयेंगे लेकिन घबराना नहीं। आंधी तूफानों से पार होने वाले का नाम है महावीर। अपना पांव नईया से मरने तक भी उतारना नहीं है। यह तो पक्का ही है। सवाल यह है कि अपनी अलौकिक जीवन पक्की है?
हम सभी अष्ट भुजाधारी हैं, हमारी अष्ट भुजाओं में अष्ट शस्त्र हैं। वह हैं अष्ट शक्तियां। तो चेक करो- मेरी भुजायें बरोबर हर शस्त्र को पकड़े हुए हैं? कोई टूट-फूट तो नहीं गया है? रोज़ अमृतवेले देखो हम अष्ट शस्त्रधारी हैं। जैसे सवेरे-सवेरे अमृतवेले ताकत के लिए माजून खाते, वैसे अपनी अष्ट शक्तियों को अपने पास दौड़ाओ। ऐसे भी नहीं कोई शक्ति ज्य़ादा और कोई कम हो। चेक करो सभी शक्तियां समान हैं या कम-ज्य़ादा? कोई का पेच ढीला तो नहीं है? जैसे कार चलते-चलते खड़ी तभी होती जब पेट्रोल नहीं फेंकती, कारण होता पेट्रोल में थोड़ी-सी मिट्टी। ऐसे ही अगर हमारे में थोड़ी भी कमज़ोरी है तो हम अलौकिक जीवन का आनंद नहीं ले सकते।
हम सब ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी पुराने संस्कारों से, पुरानी आदतों से मुक्त जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव करते हैं? जो अभी संस्कारों से मुक्त है वही मुक्ति जीवनमुक्ति पा सकते हैं। तो पहले चेक करो कि मैं सारे दिन में कितना समय मुक्त रहता हूँ। अपने संस्कारों से मेरी स्थिति मुक्त रहती है? या मैं वर्सा तो जीवनमुक्ति का ले रहा हूँ परन्तु अभी मैं संस्कारों के बंधन में बंधा हुआ हूँ? मैं लौकिक से निकल अलौकिक जीवन, अलौकिक दुनिया निर्माण करने वाला, अलौकिक संस्कार वाला ब्रह्माकुमार हूँ या शूद्र कुमार हूँ?
कभी मैं स्व के अलंकार छोड़ दूसरे को दोषी तो नहीं बनाती? इसने ऐेसा किया तो मैंने किया, इसने बोला तो मैंने भी बोला। मैं उसे कहती इसमें तुमने अपनी शक्ति क्या दिखाई! बाबा ने कहा है- बच्चे तुम पुण्य आत्मा हो तो मेरे कदम-कदम से, खाने से, पीने से, बोलने से, चलने से सबसे पुण्य होता है? पुण्य करते-करते कोई पाप तो नहीं कर लेते हो जिससे सौगुणा दण्ड पड़ जाए? मुझे सदा यही फुरना(फिकर) रहता कि मुझसे ऐसा कोई व्यवहार व बोल-चाल न हो जाए जो धर्मराज के आगे झुकना पड़े। यही मुझे डर है, बाकी मैं किससे डरती नहीं, दुश्मन मेरा रावण है। बाकी सब मित्र हैं। रावण को भी प्यार से कहती – ओ रावण अब तेरा राज्य पुरा हुआ। अब तू विदाई ले। उसे भी हम डांटकर नहीं भगाते। जब हम शीतल बन जाते तो वह आपेही चला जाता है। रावण बिचारा है, हम कोई बिचारे नहीं। अब तो उसका राज्य जा रहा है, मेरे बाबा का राज्य आ रहा है- इसलिए मुझे किसी से डर नहीं।
आज हरेक अपनी डायरी में नोट करो कि मैं पुराने संस्कारों से मुक्त हुआ हूँ? अगर संस्कार कभी इमर्ज हों तो समझो संस्कारों के वश हैं तो वह जेल में बंधायमान हैं। जब कोई कहता मैं क्या करूँ, मेरे संस्कार हैं ना! तो मुझे उसके ऊपर बहुत तरस आता है। मैं कहती तुम इस सुहावने संगम की स्वर्णिम लॉटरी को क्यों खत्म करते हो? जब सहारा मेरा बाबा है, तो उसका सहारा छोड़ संस्कारों का सहारा क्यों लेते हो? उन्हें क्यों प्रधान बनाते? तुम लेके सहारा बाबा का इन सबको खत्म करो।

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