सेवा की सफलता का आधार भावना, विश्वास और सच्चाई है

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च्चाई, सफाई, सादगी यह तीन शब्द सारी लाइफ में बहुत कीमती हैं। कोई सैलवेशन नहीं, आधार नहीं। बाबा कहता है सतयुग में महल मिलेगा, उसके पहले अभी यह संग बहुत अच्छा मिला है। बाबा ने कहा तुमको तो मूर्ति होके रहना है। एक बाबा दूसरा न कोई, वन्डरफुल। अभी जैसे शाम को सब मिल करके योग करते हैं, वैसे रात को भी पौने दस बजे 10 मिनट योग करके बाबा से गुडनाइट करके फिर सोना। एक घड़ी क्या, कोई भी घड़ी कुछ भी ख्याल नहीं करो। जैसे बाबा ने कहा अभी सभी ऐसे योग करो जैसे इस हॉल में कोई नहीं है। ऐेस शान्ति में रहने से एनर्जी बनती है। मुझ आत्मा को जो रूहानी शक्ति बाबा दे रहा है वो सबको मिले, यही मेरे दिल की भावना है, यही मेरी सेवा है। अन्दर भावना, विश्वास, सच्चाई है तो सारी लाइफ में बाबा ने जो सिखाया है वो जीवन यात्रा में काम आया है। और हमेशा मैं समझती हूँ हम यात्रा पर हैं। सारी लाइफ में कभी किसी के साथ भी ईष्र्या नहीं की है। आज कोई सेवा करता है तो उसे सेवा का ही नशा होता कि मेरे जैसी सेवा कोई नहीं करता। सूक्ष्म सेवा बरोबर की है, अच्छी तरह से की है परन्तु भावना हो मेरे को बाबा ने जैसे चलाया है वैसे ही चलना है और सबके लिए भावना हो यह भी चले। तो हरेक चेक करे कि ज़रा भी संस्कारों में किससे भेंट करने की आदत तो नहीं है? अन्दर में कोई भी प्रकार की थोड़ी भी ईष्र्या तो नहीं है? सारे दिन की दिनचर्या को देख, अपने आपको देख, एक-दो को देख, हम सब एक दो के मित्र हैं, पहला तो अपना मित्र आप बनना फिर बाबा को मित्र बनाना। बाबा मिला तो सब मिला। बाबा की मित्रता सिखलाती है, ऐसे सब मिलके चलो-चलाओ। सभी मेरे मित्र हैं, तो जो भी कोई नये भी आये हैं तो उन्हें भी यही सन्देश दो।
किसी की भी कमी हमको पता नहीं है। कोई बतावे भी नहीं, ऐसी दृष्टि, वृत्ति, स्मृति में रहने से मेरा आजकल का अनुभव है पूज्यनीय बन सकती हूँ ना! कोई भी पुराने व नये हो वो भी बनें, तो सभी इस भावना से दो शब्द भी बहुत काम करते हैं। समझो किसी के ऊपर कोई ग्रहचारी आई है, तो वो भी योगबल से कैसे हट जाये, वो सेवा अभी करनी है। बाबा ने इतना दिया है कि दे दान तो छूटे ग्रहण। सबसे पहले एक तो स्वयं ही स्वयं को सम्भालें, कोई हमारे से ऐसी गलती न हो जो पुरुषार्थ में ग्रहचारी आ जाये।

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