दृष्टिकोण के बदलने से बदलेगी दृष्टि

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मुरली कोई भी सुनाये लेकिन हम यह समझें कि हमारे सामने शिव बाबा हैं। शिव बाबा प्रजापिता ब्रह्मा के मुख से या किसी साकार के माध्यम से यह मुरली सुना रहे हैं और हमारे मन में वो भाव हो कि हम आत्मा हैं, परमपिता परमात्मा हमारे कल्याण के लिए यह ज्ञान दे रहे हैं। उस दृष्टिकोण से जब हम ज्ञान सुनेंगे, आप देखेंगे उसकी छाप मन पर पड़ती जायेगी।

वित्रता हमारी अनमोल निधि है। ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी जीवन की सबसे बड़ी सम्पत्ति यही है। हम चाहे दुनिया की दृष्टि से बिल्कुल गरीब ही सही, किसी भी दृष्टि से हम लोगों से बहुत पीछे ही सही लेकिन बाबा ने हमें जो पवित्रता रूपी अनमोल खज़ाना दिया है, यह तो अतुल है, इसका कोई मूल्य नहीं लगा सकता। सारी दुनिया के खज़ाने इसके सामने तुच्छ हैं। हम चाहते हैं कि हमारी दृष्टि ठीक रहे तो अपने दृष्टिकोण को ठीक रखें। दृष्टिकोण ठीक रखना है तो रोज़ हम मुरली सुनें। मुरली सुनते-सुनते हमारा दृष्टिकोण, हमारी अन्तर्दृष्टि, हमारी वृत्ति, हमारा सोचने का, देखने का तरीका बदले। जब वो बदलेगा तब हमारी दृष्टि धोखा नहीं देगी। जब तक हमें पूरी रीति से यह समझ नहीं होगी कि हम कौन हैं, किसकी सन्तान हैं, कहाँ से आये हैं, कहाँ जाना है तो हमारे में अन्तर परिवर्तन नहीं होगा। अगर हमारा अन्तर परिवर्तन नहीं होगा तो हमारे दृष्टिकोण में परिवर्तन नहीं होगा। इसलिए जब अन्तर परिवर्तन होगा, तब ही बाह्य परिवर्तन होगा।
अगर हम केवल बाहरी परिवर्तन करने की कोशिश करेंगे, जैसे सूरदास ने अपनी आँखें निकाल दीं, तो क्या नतीजा निकला? उसकी सारी रचनाओं को आप पढ़कर देखिये कि आँखें निकालने के बाद भी उसके मन की स्थिति क्या थी, वो पता पड़ेगा। वह कहता है, हे गोपाल! संसार एक सागर है, इसमें काम रूपी मगरमच्छ, क्रोध रूपी ग्राह आदि सब मुझे खा रहे हैं। हे गिरधर, मुझे बचाओ। कविता की दृष्टि से उनकी कवितायें बहुत अच्छी रचनायें हैं। उन कविताओं को जिस विषय पर लिखा है वो विषय उसके मन को प्रतिबिंबित करता है, उसकी अवस्था को झलकाता है।
कई लोग भगवान के वास्ते सबकुछ माँ-बाप, पत्नी, पुत्र, घर-संसार छोड़कर चले जाते हैं। लेकिन फिर, साधना के पथ पर चलते-चलते ज़मीन-जायदाद, स्थान-मान, धन-सम्पत्ति के पीछे लग जाते हैं। जैसे आपने राजा भर्तृहरि की कहानी सुनी होगी। उसका उदाहरण मैं कई बार दे चुका हूँ। वह अपने राज्य, महल, वैभव, धन, कनक, रानी को छोड़कर वैरागी बन जंगल में जा रहा था। जब चाँदनी में चमकती हुई एक चीज़ को अशर्फी समझ उठाने लगा तो पता पड़ा कि वह पान की थूक थी। उसकी आँखें उसको धोखा दे गयीं। उसे वैराग तो आ गया था पत्नी पर। जब पत्नी को छोड़ा, तो उसके साथ सबकुछ छोड़ चला लेकिन धन के प्रति उसका मोह नहीं टूटा था। पत्नी के प्रति उसकी दृष्टि बदली थी लेकिन धन के प्रति उसकी दृष्टि नहीं बदली थी। दृष्टि क्यों नहीं बदली थी? क्योंकि उसका दृष्टिकोण नहीं बदला था। इसलिए जब तक दृष्टिकोण नहीं बदलेगा तब तक दृष्टि नहीं बदलेगी, यह पक्का है। दृष्टिकोण तब बदलेगा जब हम मुरली को उस विधि से पढ़ते हैं, सुनते हैं। मुरली सुनने की विधि क्या है? सबसे पहले हम आत्म-अभिमानी होकर बैठें। पहले कुछ समय योग में बैठने से मुरली सुनने में अन्तर पड़ जाता है। विदेह अवस्था में, देह से न्यारे होकर, शिव बाबा की याद में मुरली सुनकर तो देखो, क्या अनुभव होता है! उस समय हमारी ग्रहण करने की अवस्था होती है। समझने की जो कुशलता होती है, वह अधिकतम होती है। मुरली कोई भी सुनाये लेकिन हम यह समझें कि हमारे सामने शिव बाबा हैं। शिव बाबा प्रजापिता ब्रह्मा के मुख से या किसी साकार के माध्यम से यह मुरली सुना रहे हैं और हमारे मन में वो भाव हो कि हम आत्मा हैं, परमपिता परमात्मा हमारे कल्याण के लिए यह ज्ञान दे रहे हैं। उस दृष्टिकोण से जब हम ज्ञान सुनेंगे, आप देखेंगे उसकी छाप मन पर पड़ती जायेगी। उससे हमारा जो दृष्टिकोण बनेगा, उस आधार पर हमारी दृष्टि बदलेगी।

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