परमात्म ऊर्जा

पने को विशेष आत्मायें अर्थात् विशेषता दिखलाने वाली समझती हो? ‘पास विद् ऑनर’ बनने का लक्ष्य और बाप का शो दिखलाने का लक्ष्य तो सभी का ही है लेकिन आप लोग विशेष क्या नवीनता दिखायेंगी? नवीनता व विशेषता यही दिखाना व दिखाने का निश्चय करना कि कोई भी विघ्न में व कोई भी कार्य में मेहनत न लेकर और ही अन्य आत्माओं को भी निर्विघ्न और हर कार्य में मददगार बनाते सहज ही सफलतामूर्त बनेंगे और बनायेंगे। अर्थात् सदा सहजयोग, सदा बाप के स्नेही, बाप के कार्य में सहयोगी, सदा सर्व शक्तियों को धारण करते हुए श्रृंगारमूर्त, शस्त्रधारी शक्ति बन अपने चित्र से, चलन से बाप के चरित्र और कत्र्तव्य को प्रत्यक्ष करना है। ऐसी प्रतिज्ञा अपने से की है? छोटी-छोटी बातों में मेहनत तो नहीं लेंगे? किसी भी माया के आकर्षित रूप में धोखा तो नहीं खायेंगे? जो स्वयं धोखा खा लेते हैं वह औरों को धोखे सेे छुड़ा नहीं पाते। सदैव यही स्मृति रखो कि हम दु:ख हर्ता सुखकर्ता के बच्चे हैं। किसके भी दु:ख को हल्का करने वाले स्वयं कब भी, एक सेकण्ड के लिए भी, संकल्प व स्वप्न में भी दु:ख की लहर में नहीं आ सकते हैं। अगर संकल्प में भी दु:ख की लहर आती है तो सुख के सागर बाप की सन्तान कैसे कहला सकते हैं? क्या बाप की महिमा में यह कब वर्णन करते हो कि सुख का सागर हो लेकिन कब-कब दु:ख की लहर भी आ जाती है? तो बाप समान बनना है ना! दु:ख की लहर आती है अर्थात् कहां न कहां माया ने धोखा दिया। तो ऐसी प्रतिज्ञा करनी है। शक्ति रूप नहीं हो क्या? शक्ति कैसे मिलेगी? अगर सदा बुद्धि का सम्बन्ध एक ही बाप से लगा हुआ है तो सम्बन्ध से सर्व शक्तियों का वर्सा अधिकार के रूप में अवश्य प्राप्त होता है लेकिन अधिकारी समझकर हर कर्म करते रहें तो कहने व संकल्प में मांगने की इच्छा नहीं रहेगी। अधिकार प्राप्त न होने कारण, कहां न कहां किसी प्रकार की अधीनता है। अधीनता होने के कारण अधिकार प्राप्त नहीं होता है। चाहे अपने देह के भान की अधीनता हो चाहे पुराने संस्कारों के अधीन हों, चाहे कोई भी गुणों की धारणा की कमी के कारण निर्बलता व कमज़ोरी के अधीन हों, इसलिए अधिकार का अनुभव नहीं कर पाते। तो सदैव यह समझो कि हम अधीन नहीं, अधिकारी हैं। पुराने संस्कारों पर, माया के ऊपर विजय पाने के अधिकारी हैं। अपने देह के भान व देह के सम्बन्ध व सम्पर्क जो भी हैं उनके ऊपर विजय पाने के अधिकारी हैं। अगर यह अधिकारीपन सदैव स्मृति में रहे तो स्वत: ही सर्व शक्तियों का, प्राप्ति का अनुभव होता रहेगा।

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