जीवन में सफलता का मूल मंत्र

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स्कूल की पढ़ाई के दौरान रिंकू अपने परिवार के साथ एक छोटे से शहर में रहता था। पढ़ाई-लिखाई में उनका मन नहीं लगता था। अपनी कक्षा में हमेशा ही फिसड्डी रहता था। मुश्किल से किसी तरह पास होकर अगली कक्षा में पहुंचता था। स्कूल के बच्चों से लेकर मोहल्ले तक लोग रिंकू का मज़ाक उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। रिंकू की पढ़ाई में कमज़ोरी से उनके माता-पिता भी दु:खी रहते थे। पढ़ाई में पिछडऩे का दु:ख तो रिंकू को भी होता था, परन्तु कोशिश करने पर भी पढ़ाई में उसका मन नहीं लगता था।
हर तरफ से उपेक्षा और तिरस्कार से दु:खी होकर अंतत: रिंकू ने पढ़ाई छोडऩे का मन बना लिया। अभी वह दसवीं कक्षा में था। उसकी पढ़ाई की जो स्थिति थी उससे बोर्ड की परीक्षा में उसे पास करने की उम्मीद लगभग न के बराबर थी। अपने जीवन से निराश रिंकू एक दिन जब स्कूल से घर लौट रहा था तो रास्ते में एक जगह रामायण की कथा हो रही थी। उस समय ओजस्वी स्वर में कथावाचक लंका कांड की व्याख्या कर रहे थे। कथावाचक के ओजस्वी स्वर से बुरे ख्यालों में खोये रिंकू की तंद्रा भंग हुई और वह सम्मोहित होकर कथा स्थल की ओर चल पड़ा। कथा स्थल पर पहुंचकर वह जगह
बनाते हुए आगे की पंक्ति में जा बैठा। रिंकू को देखकर कथावाचक मुस्कुराए और अपनी कथा को जारी रखा। रिंकू एकाग्रता से कथा के एक-एक शब्द को सुन रहा था। इस समय कथावाचक कह रहे थे, ”समस्या बड़ी गंभीर थी, सागर तट पर श्री राम की सेना के सभी योद्धा लक्ष्मण, हनुमान, सुग्रीव, अंगद आदि गंभीर सोच में डूबे थे। जटायू से यह तो पता लग गया था कि रावण सीता को लेकर दक्षिण दिशा में उफनते समुद्र के पास स्थित अपने राज्य लंका में गया है, परन्तु इस विशाल समुद्र को लांघकर लंका जाएगा कौन? समस्या विकट थी। तभी वहां पर उपस्थित सुग्रीव ने प्रभु राम से कहा कि हमारे बीच एक ऐसी दिव्य शक्ति है जो समुद्र लांघकर लंका जा सकती है। तब श्री राम की जिज्ञासा को शांत करने के लिए सुग्रीव ने महाबली हनुमान की ओर देखा। सुग्रीव के संकेत से हनुमान जी सकपका गए। हनुमान जी की असमंजसता को भांपते हुए सुग्रीव ने कहा- हे पवनपुत्र! संभवत: आपको अपनी शक्ति का ज्ञान नहीं है। बचपन में आपने सूर्य को एक फल समझते हुए एक छलांग में उसे सैंकड़ों कोस दूर जाकर निगल लिया था तो फिर लंका की दूरी ही क्या है? ज़रूरत है तो सिर्फ आपको अपने विश्वास को जगाने की। आप जब अपने विश्वास को जगा लेंगे और मन में ठान लेंगे तो शक्ति आपमें स्वत: आ जाएगी, सुग्रीव की बात सुनकर एक तरफ जहाँ हनुमान जी को आश्चर्य हुआ वहीं उनका विश्वास भी जागा और वे समुद्र लांघने को तैयार हो गए। अगले ही दिन उन्होंने पूर्ण विश्वास के साथ समुद्र लांघते हुए लंका की ओर प्रस्थान किया। रास्ते में मुश्किलें तो बहुत आईं फिर भी वे सभी मुश्किलों को परास्त करते हुए लंका में माँ सीता को ढूंढने में सफल हुए।”
वहाँ कथा वाचक के एक-एक शब्द को मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे रिंकू का नया जन्म हो चुका था। कुछ समय पहले तक जिस रिंकू की आँखों से निराशा के भाव झलक रहे थे, अब उसकी आँखों में चमक थी। उसके शरीर में उत्साह और स्फूर्ति का संचार होने लगा था। कथा खत्म होने के साथ ही वह तेजी से घर की ओर चल पड़ा। उसे सफलता का मूलमंत्र मिल चुका था। वह मन ही मन सोच रहा था कि जब हनुमान जी ने अपने विश्वास से शक्ति अर्जित कर समुद्र को लांघ लिया था, तो पढ़ाई कौन-सी बड़ी बाधा है। उसी दिन से रिंकू ने प्रण कर लिया कि वह ध्यान लगा कर खूब पढ़ेगा और सफलता अवश्य प्राप्त करेगा। उसकी मेहनत रंग लाई। अपनी कक्षा में सबसे फिसड्डी रहने वाला छात्र रिंकू दसवीं की बोर्ड परीक्षा में सबसे अव्वल आया। इसके बाद रिंकू ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और जि़ंदगी में हमेशा अव्वल ही आता रहा। वह लोक सेवा की परीक्षा में भी प्रथम स्थान पर आया और अपने आप पर विश्वास की बदौलत वह सरकारी महकमे में भी पदोन्नति पाते हुए ऊंचे ओहदे तक पहुंच गया।
शिक्षा : जब किसी व्यक्ति में विश्वास का संचार होता है तो उसमें शक्ति अपने आप संचालित होने लगती है। फिर जब तन और मन में शक्ति यानी ऊर्जा का संचार होता है तो मुश्किल काम भी असान हो जाता है।

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