खेल कैसा ये तकदीर का…

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बात बहुत पुरानी है। गुजरात के सूरत शहर में मनसुख लाल नाम के एक व्यापारी थे। इनका कीमती रत्नों का कारोबर था। इनका कारोबर दुनिया के कई देशों में फैला हुआ था। पूरे सूरत शहर में इनका मान और सम्मान था। मनसुख लाल के दो बेटे थे जिनका नाम रामलाल और श्यामलाल था। रामलाल को दौलत और रूतबे का बहुत घमंड था जबकि श्यामलाल एक शरीफ और सुलझा हुआ इंसान था। घमंड के साथ-साथ रामलाल में ईष्र्या और बेईमानी जैसे अवगुण भी थे। समय के साथ-साथ मनसुख लाल की उम्र बढ़ती जा रही थी। ऐसे में उनके दोनों बेटों ने कारोबर में पिता का अधिक से अधिक हाथ बंटाना शुरू कर दिया था।
कुछ समय के पश्चात मनसुख लाल चल बसे और कारोबार का पूरा भार रामलाल और श्यामलाल के कंधों पर आ गया। बड़ा भाई होने के नाते रामलाल ने व्यापारिक फैसलों में अपनी मर्जी चलानी शुरू कर दी। रामलाल बेईमानी और मक्कारी भरे फैसले लेने लगा। असली रत्न के नाम पर वह नकली रत्न का व्यापार करने लगा, जिससे उसका मुनाफा बढऩे लगा। इस मुनाफे से उसका बाकी बचा चरित्र भी काला हो गया। दौलत के घमंड में वह परिवार में उन्मादी(सनकी) जैसा व्यवहार करने लगा। दूसरी तरफ शरीफ और सुलझे हुए श्यामलाल को शुरू-शुरू में रामलाल की बेईमानी का पता नहीं चला, परन्तु जब उसने उसके व्यवहार में परिवर्तन देखा तो पूरे माजरे को समझने में उसे ज्य़ादा देर नहीं लगी।
रामलाल की करतूतों से श्यामलाल को बड़ा दु:ख हुआ। उसने रामलाल को समझाने और सही रास्ते पर लाने की कोशिश भी की। परन्तु वह नाकाम रहा। उल्टे रामलाल श्यामलाल से खफा हो गया औ व्यापार में बंटवारे का बहाना ढूंढने लगा। बंटवारे में भी उसने बेईमानी की साजिश रची। घर में कलह का माहौल पैदा किया। अंतत: रामलाल अपनी साजिश में सफल रहा और श्यामलाल के हिस्से के व्यापार पर भी वह कब्ज़ा कर बैठा। रामलाल के व्यवहार से दु:खी होकर श्यामलाल ने शहर में दूसरी जगह अपना ठिकाना बनाया और रत्न के अपने व्यापार को नए सिरे से शुरू किया। ईमानदारी की नींव पर शुरू हुआ श्यामलाल का व्यापार जल्दी ही चल निकला।
एक तरफ जहाँ श्यामलाल की ख्याति देश और विदेश में बढऩे लगी वहीं दूसरी तरफ रामलाल की करतूतों की पोल खुलने लगी थी। नकली रत्न के व्यापार के कारण रत्न बाज़ार में रामलाल की साख को ज़ोरदार धक्का लगा और उसके व्यापार का दायरा सिमटने लगा। अंतत: नौबत यहाँ तक आ गई कि बाहर क्या, अपने शहर का भी कोई व्यापारी रामलाल का नाम लेने से भी तौबा करने लगा। अब तो नौबत यहाँ तक आ गई कि रामलाल को धन के अभाव में अपना घर, दुकान, सामान तक बेचना पड़ रहा था। जल्दी ही रामलाल के हाथ से सबकुछ निकल गया और वह परिवार सहित सड़क पर आ गया। अब रामलाल को अपने किए पर पछतावा हो रहा था। परन्तु उसकी तकदीर ने जो खेल-खेल दिया था उससे आसानी से पीछे आना उसके लिए संभव नहीं था। दूसरी तरफ श्याललाल की तकदीर का खेल था जिसकी बदौलत वह रंक से राजा बन गया था।
जब रामलाल की बदहाली(खराब हालत) की खबर श्यामलाल को लगी तो उसे बड़ा दु:ख हुआ। पुरानी बातों को भूलकर वह भागा-भागा अपने बड़े भाई रामलाल के पास पहुंचा और रामलाल के लाख मना करने के बाद भी उसे परिवार सहित अपने पास ले आया। यह भी तकदीर का ही खेल था कि जिस भाई के साथ रामलाल ने बदसलूकी कर उसे सड़क पर पहुंचा दिया था, वही भाई आज उसे सड़क से उठाकर अपने घर में ले आया था।

शिक्षा : तकदीर कब किसके साथ क्या खेल-खेल दे इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता। हाँ इतना ज़रूर है कि आपके कर्म ही आपकी तकदीर लिखते हैं।

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