मैं अपने आपसे पूछती हूँ मेरा फुल कनेक्शन एक बाबा के साथ है? बाबा से मेरी बुद्धि की लाइन क्लियर है? बाबा मेरे से सदा सन्तुष्ट है? बाबा के पास मेरी कोई कम्पलेन तो नहीं है? मेरे में कोई अणु जितना दाग तो नहीं है?
मैं अपने डायमण्ड को अपने नेत्रों के सामने लाकर उसे दिव्य नेत्र से देखती हूँ कि मुझ डायमण्ड में अभी तक कोई फ्लो तो नहीं है? जैसे हीरे को आई ग्लास में देखा जाता, मैं भी आई ग्लास में अपने को देखती हूँ, मेरा बाबा मेरे लिए आई ग्लास है। मैं बाबा के पास ऊपर चोटी पर बैठ देखती हूँ कि बाबा के गुणों के समान मेरे में सर्वगुण भरतू हैं या नहीं? जब बाबा ने मुझे सच्चा डायमण्ड बनाया है तो मुझ डायमण्ड में कोई भी दाग नहीं रहना चाहिए। मैं सदैव दो शब्दों का ध्यान रखती हूँ – 1. अब, 2. सब। अगर कोई दाग है, कमी है तो उसे अभी ही निकालना है और सभी दाग निकालने हैं।
कई बार मुझे ऐसे लगता जैसे बाबा मेरे कानों में यह आवाज़ देता- बच्ची, तुम्हारी रीति है एक सेकण्ड में पंछी उड़ जा, हम सब पंछी एक सेकण्ड में उड़ जायेंगे। मैं एक सेकण्ड का पंछी हूँ, यह सेकण्ड, यह मिनट, दिन बीता, रात सोये, सवेरे उठे, तो यह मेरे सेकण्ड, मिनट, घंटे कितना कमाई में जमा हुए? रोज़ मैं यह चेक करती हूँ।
बाबा हमें रोज़ यह स्लोगन देता कि बच्ची तेरे भाने सर्व का भला, तेरी चढ़ती कला माना सर्व का भला। तो मैं हमेशा सोचती कि मेरा एक एक सेकण्ड कमाई में बीते, ऐसे नहीं अलबेले होकर रात को सोया, दिन में खाया, हँसा-बहला, दिन-रात पूरा हुआ। हमें तो आता कि यह संगम के थोड़े दिन कितने न महान हैं! यह गिनती के दिन हैं, यह कितने वैल्युबल दिन हैं! ऐसा सोचकर अन्दर ही अन्दर सम्पन्न बनने की मेहनत करती हूँ, लक्ष्य रहता है मुझे तो बाप समान कर्मातीत बनना ही है।
मुझे बाप समान बनना है तो अब बनना है। फुल त्याग, फुल तपस्या, फुल सेवा मुझे अभी करनी है। मेरी फुल लगन बाबा के साथ अब होनी चाहिए। दूसरा मैं सर्वशक्तिवान बाप की बच्ची हूँ तो मेरे में सर्वशक्तियां होनी चाहिए,फुलफोर्स होना चाहिए। मैं अपने अन्दर यह सोचती हूँ और सोचते-सोचते बाबा के अन्त में चली जाती हूँ।
मैं यह भी देखती हूँ कि सर्व के लिए मेरे अन्दर शुभ भावना है? मैं ऊपर में जाकर देखती हूँ कि मेरी वृत्ति साफ-पवित्र और सुन्दर है? फिर भी अगर मेरे से कोई सन्तुष्ट नहीं तो वह उसकी बात है। बाकी शुभ भावना, सच्चाई का आज नहीं तो कल रिकार्ड बजेगा। किसी की स्थिति से मैं अपना रिकार्ड क्यों खराब करूँ! मैं ऊपर चोटी की स्थिति में स्थित रहती हूँ, यह बाबा की बहुत बड़ी गृहस्थी है, हम पार्ट बजा रहे हैं। मैं गृहस्थी नहीं हूँ। मेरा बाबा चोटी पर है तो मैं नीचे क्यों आऊं।
बाबा ने हमें सेकण्ड में संकल्पों को स्टॉप करने की शक्ति दी है। बीच-बीच में मैं अपने संकल्पों को स्टॉप कर लेती हूँ। मैं कभी अपने समय व शक्ति को वेस्ट नहीं करती हूँ।