बाह्यमुखता से हटकर अन्तर्मुखता में आयें

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जिसको स्विमिंग करना नहीं आता, उसे डर लगता है कि डूब न जाऊं तो इसमें भी सब बातों को छोडऩा पड़ेगा, भूलना पड़ेगा, किसको बुद्धि से अवॉयड करके अन्तर्मुखी रहना पड़ेगा…

अपने को आत्मा समझना और एक को याद करना – बाबा बार-बार यही पाठ पक्का कराता है। क्योंकि आत्मा समझने से देह अभिमान छूटेगा और बाबा को याद करने से पाप कटेंगे। यह बात सारे दिन में न भूलें। बाबा कहता है मैं घड़ी-घड़ी याद दिलाता हूँ क्योंकि बच्चे घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं।
ऐसे तो मरने पर भी आत्मा शान्त चित्त नहीं हो सकती है, तो जीते जी कैसे हो सकती है? शान्ति कोई सहज बात है क्या! पर बाहर की बातों से फ्री हो करके जब डीप जाओ, अन्दर ही अन्दर चले जाओ तो जो मरने से भी शांत नहीं होते थे, वो जीते जी शान्त हो जाते हैं। आत्मा अपने निजी स्वरूप को जान करके उसमें अन्दर तक जब तक न जाये तब तक बाहर नहीं आना। जल्दी-जल्दी जम्प लगाके बाहर आते हैं, अरे, अन्दर तो चले जाओ ना, डुबकी लगाओ तो सही। जिसको स्विमिंग करना नहीं आता, उसे डर लगता है कि डूब न जाऊं तो इसमें भी सब बातों को छोडऩा पड़ेगा, भूलना पड़ेगा, किसको बुद्धि से अवॉयड करके अन्तर्मुखी रहना पड़ेगा क्योंकि बाह्यमुखता ऐसा खींचती है, बात मत पूछो।
हरेक अपने दिल से पूछे हम ऐसे अन्तर्मुखी बनें हैं, जो अन्तर्मुखी सदा सुखी का अनुभव होता रहे। तो अन्तर्मुखी वो बनेगा जो अपने अन्दर से बाप की बातें सुनता है, मुख के अन्दर है, पर बोलता नहीं है मुख। सुनता है अपने को देखने के लिए। तो बाह्यमुखता की आदत से छूटने के लिए अन्दर की आँख से अन्तर्मुखी बनना पड़ेगा। अन्दर भी बाहर की बातें सोचने की आदत है, हरेक दिल से पूछे सारा दिन क्या करते हैं? स्वप्नों में क्या करते हैं? अन्दर संकल्प में शान्ति नैचुरल हो। नींद नहीं आती है, ठीक है कोई बात नहीं है, अच्छा है, मज़ा है – बाबा को याद करने का, अपने आपको देखने का। जितना टाइम सोते हैं, बाबा कहता है कमाई तो नहीं होती है। पहले-पहले बाबा कहते थे कोई पाप करे उससे तो जाकर सो जायें तो अच्छा है। परन्तु कई ऐसे हैं जो स्वप्नों में भी पाप करते हैं, तो हम अटेन्शन देते हैं, जागते हैं तो भी अटेन्शन है। कोई हमको खराब ख्याल आ नहीं सकता। किससे बदला लेने का ख्याल आ नहीं सकता। मानो मैं उदास हुई तो पहले ख्याल आया ना! बाहर से करके मुस्कुराये, पर अन्दर से देखते हैं तो लगता है कि इसके अन्दर कुछ है। बाहर से हेलो, ओम शान्ति करता है पर अन्दर कुछ और है।
हरेक अपने आपसे पूछो कि मेरे अन्दर कुछ है क्या? दिल से पूछो, क्या है? दिल मेरी है, अपने दिल से हम पूछ सकते हैं कि मैं खुश हूँ? न खुश हूँ तो कारण? कारण कुछ भी नहीं है, सिर्फ न खुश रहने की आदत है। पुराना कोई संस्कार है तो दिल से खुश कैसे रहेंगे? पर सच्ची दिल है, साहब राज़ी है तो क्या होगा? भगवान भी कहे, सर्टिफिकेट देवे कि यह मेरा बच्चा सन्तुष्ट है, वरदान दे देवे, सदा सन्तुष्ट भव! जब साइलेन्स में डीप जायेंगे तो अपने अन्दर की सच्ची शान्ति को भंग नहीं करेंगे। नियम प्रमाण शान्त रहने का जो नियम है वो तोड़ेंगे नहीं। इसलिए शांत रहना है और शांत करना है।

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