एक बाप से सर्व सम्बन्ध जोडऩा ही सच्चा समर्पण

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हमारे सर्व सम्बन्ध एक बाप से हैं। हम उस सच्चे माशूक के आशिक हैं, हम सभी उस सच्चे माशूक के इश्क को जानते हैं। एक बाबा की लगन कितनी प्यारी, मीठी, सुखदाई है। ऐसी लगन में मगन रहने वाले कभी किसी दूसरे की लगन में नहीं जायेंगे। अगर किसी की आपस में बहुत-बहुत प्रीत होती है तो उसे तोडऩा मुश्किल होता है। ऐसे जब बाप से हमारी पूरी लगन है, प्रीत है तो यह भी गुप्त खुशी व नशा रहता है कि हमने तो उसी बाप को पाया है। सारी दुनिया कुछ भी नहीं है, एक तू इतना प्यारा है। हम उसी प्यार के समुद्र की नदियां हैं। इसी को ही हम कहते हैं निरन्तर योग में रहना, यह मस्ती बड़ी निराली है। बाबा के प्यार का अनुभव करते उसी मस्ती में रहो तो दूसरी कोई भी बात सामने आ नहीं सकती। यह पुरुषार्थ की बहुत सहज विधि है।
बाबा कहते तुम सब हो कठपुतलियां और तुम कठपुतलियों को मैंने दी है श्रीमत की चाबी। तो बाबा ने जो श्रीमत की चाबी दी है उसी अनुसार बेफिकर बादशाह बन निश्चिंत हो खेल करो। लेकिन सदा समझो हम राजऋषि, राजयोगी हैं। अपना ऑक्यूपेशन नहीं भूलो। योगी के लिए मूल चाहिए, ज्ञान से पुरानी दुनिया का वैराग्य। हम हैं योगी लोग, न कोई अपना न कोई पराया। हमें कौन जानें। यह बहुत मस्ती थी। इसलिए कहती – हे आत्मा तू बाबा को स्वाहा हो जाओ, तो मन-बुद्धि भी सब स्वाहा हो जायेगा। जब सब स्वाहा हो गया तो पुरानी दुनिया से वैराग्य हो ही जायेगा। पुरानी दुनिया तब तक खींचती है जब तक समर्पण नहीं हुए हैं। संकल्प शक्ति भी समर्पण है तो दूसरी कोई भी बात नहीं आ सकती। इसी का नाम तपस्या है। तो पहले अपने आप का त्याग करो अर्थात् समर्पण हो जाओ। जब आत्मा स्वयं समर्पण हो गई फिर तपस्या करना, अशरीरी बनना बहुत सहज है। अब हमारी तपस्या की, दुनिया को भी दरकार(ज़रूरत) है। तत्वों को भी इसकी दरकार है। हम सब देख रहे हैं दुनिया की हालत दिन-प्रतिदिन गम्भीर होती जाती है, यह दुनिया की गम्भीर बातें हमें और भी प्रेरणा देती हैं कि हमें तपस्या करके विश्व को अपनी साइलेन्स की किरणें देनी हैं।

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