सेंसिटिव नेचर छोड़ो, इनोसेन्ट बनो

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सबके प्रति शुभ भावना, कल्याण की भावना रहे। भले उनके अन्दर कुछ और भी हो, परन्तु मेरी कल्याण की भावना रहे, ऐसी हमारी नेचर हो जाए।

सेंसिटिव नेचर दो प्रकार की है, एक पॉजि़टिव रूप में लेवे तो बहुत जल्दी आगे बढ़ सकते हैं। दूसरा सेंसिटिव नेचर कई बार बहुत दु:ख देती है, सेंसिटिव नेचर वाले जल्दी उतावले हो जायेंगे। किसी के भाव को भी नहीं समझेंगे। उनमें धीरज नहीं रहता। समझने की कोशिश भी नहीं करते, इससे बहुत नुकसान हो जाता है। अभी उसे परिवर्तन करना है। किसी भी बात में सिद्ध करने की कोई ज़रूरत नहीं है।
ज्ञानी-योगी तू आत्मा का वास्तव में चिन्ह यह है कि जो सेकण्ड में वायब्रेशन से भी डिटैच कर लेवे, इशारे से कैच कर लेवे। जैसे वायरलेस कैच कर लेता है, अजब लगता है आवाज़ अन्दर घुस जाता है। ऐसे ही जितना हम साइलेन्स में जाते हैं, बुद्धि महीन होती जाती है, जो और कोई वायब्रेशन अन्दर घुस नहीं सकते। कोई की कैसी भी भावना हो, वह अन्दर टच नहीं कर सकती। इसके लिए बुद्धि इतनी स्वच्छ, साफ, क्लीन हो जो हर बात कैच कर सके। दिन-प्रतिदिन समय ऐसा आ रहा है, बाबा के दिल में जो हमारे प्रति हो, वो सेकण्ड में कैच कर लेवें।
दूसरा – एक-दो की भावनाओं को भी कैच कर लेवें। सबके प्रति शुभ भावना, कल्याण की भावना रहे। भले उनके अन्दर कुछ और भी हो, परन्तु मेरी कल्याण की भावना रहे, ऐसी हमारी नेचर हो जाए।
तीसरा – सेवा में आत्माओं को जो चाहिए वो फट से मिलता जाए। जो चीज़ साइंस से निकलती है वो चीज़ सिर्फ उनके लिए थोड़े ही है, वो सबके लिए यूज़ हो जाती है। ऐसे हमारे सारे ब्राह्मण परिवार में हो जाए तो बड़ा अच्छा हो जायेगा। कोई भी बात में किसी भी घड़ी, किसी के साथ भी यह ख्याल नहीं होता है कि कहूँ या न कहूँ? पता नहीं क्या रियेक्शन होगा…तो यह जो ख्याल होता है ना, यह भी तो एक प्रकार का साधारण व व्यर्थ ख्याल है। इससे भी फ्री हो जायें तो ख्याल श्रेष्ठ और कामलायक होंगे। इसमें एक तो याद में रहो, दूसरा सर्विस में आपस में सहयोग हो,उससे बाहर वाले लोग भी मानेंगे, यह गैरन्टी है।
हिम्मत, सत्यता और विश्वास तीनों एक जैसे हों। हिम्मत है लेकिन सत्यता की थोड़ी कमी है। हिम्मत और सत्यता है तो आत्म विश्वास या बाबा में विश्वास नहीं है। लेकिन जब तीनों एकदम पॉवर में हो जाते हैं, तो यह लाइफ अच्छी लगती है। चलो अपने में विश्वास नहीं है, तो बाबा करेगा यह तो विश्वास का आवाज़ हो! तो तीनों इकट्ठे होने से सब सहज हो जाता है, कोई बड़ी बात नहीं है। हुआ ही पड़ा है। तो यह एक हमारा अन्दर सोचने का तरीका जैसा होगा, हमारे बोल जैसे होंगे, उसमें सत्यता और विश्वास काम करेगा। आजकल बहुत सोचने की आवश्यकता नहीं है, रखो भगवान पर, करने वाला बैठा है। अन्दर से सभी सेंसिटिव नेचर को छोड़के इस तरह से बनो। तो क्विक पुरुषार्थ करके सफलता को पाओ और दूसरों को भी सफलता देने में मदद करो। तो सदा सफलता देख कहेंगे कि यह मेरा भाग्य है। पुरुषार्थ करके भाग्यवान बने तो ज़रूर सफलता मिलेगी। ऐसे नहीं जो भाग्य में होगा…नहीं। तो सोचने के तरीके को बड़ा अच्छा रॉयल, सुन्दर बनाना है।

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