बदलते समय में क्या हम भी बदल रहे हैं…!!!

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बदल रहा है सबकुछ। कल था… वो आज नहीं। आज है… वो कल नहीं होगा। पानी ठहर जाये, तो उसमें भी जर्म्स पैदा हो जाते हैं… बहता पानी और ही शुद्ध होता जाता है। हमें भी बदलाव पसंद है। बदलने की कोशिश भी करते हैं। अच्छे-अच्छे संकल्प भी यथा-समय करते हैं, पर क्या जो हमने चाहा वह होकर रहता है! अगर हमारी चाहत पूरी नहीं होती, तो उसके कारण पर कभी विचार किया? या फिर संकल्प किया और फिर संकल्प किया…बस… बदलाव तो हुआ नहीं! समय बदल गया… कहीं हम वहीं के वहीं ठहरे तो नहीं रह गये…!!!

हम हर वक्त बदल रहे हैं। लोग कहते हैं, हम परिवर्तन होना नहीं चाहते लेकिन हर घड़ी हम परिवर्तित हो रहे हैं क्योंकि हर घड़ी परिवर्तनशील है, क्रिया-प्रतिक्रिया होती रहती है। समय के अनुसार मनुष्य को स्वयं में परिवर्तन लाना बेहद ज़रूरी है। लेकिन देखा गया है कि बुराई की ओर अग्रसर होना तो इंसान के लिए सहज है, लेकिन स्वयं में कुछ श्रेष्ठ परिवर्तन लाने में लोगों को तकलीफ महसूस होती है। परिवर्तन होने का संकल्प भी कई मनुष्य लेते हैं, जैसे कोई त्योहार होगा, नये वर्ष का आरंभ होगा, कोई शुभ अवसर होगा तो कई सुंदर-सुंदर संकल्प लेते, प्रतिज्ञा करते कि आज से मैं ये नहीं करूंगा, अच्छे कार्य करूंगा, सभी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करूंगा, किसी को दु:ख नहीं दूंगा। लेकिन वो शुभ अवसर गया, पुराने संस्कार धीरे-धीरे हावी होने शुरु हुए और विस्मृति हो गई अपने श्रेष्ठ संकल्प की। फिर लगता, मैं जैसा हूँ, वैसा ही ठीक। प्रेम से काम कहाँ निकलता है! सिर्फ अच्छा ही करूंगा तो तरक्की कैसे होगी! और फिर जैसे के तैसे…! लेकिन…

स्वीकारें बदलाव को…
परिवर्तन प्रकृति का अटल नियम है, इसको कोई रोक नहीं सकता। हम कितना ही एक ही पटरी पर खड़े रहना चाहें, एक दिन पटरी खुद अपनी राह मोड़ लेती है। फिर या तो आप बाहर निकल जाते या फिर फंसकर अपनी जान गंवा देते। इसलिए परिवर्तन हरेक को स्वीकार करना ही होगा। चाहे स्वेच्छा से या मजबूरी से।
जीवन में हर समय हमारी परीक्षा होती है इसलिए हमें तैयार रहना पड़ता है। इसके साथ ही हम सभी जानते हैं कि हमने इस धरती पर जन्म लिया है तो हमारी मृत्यु भी निश्चित है। तो हमें अपनी अन्तिम घडिय़ों की परीक्षा के लिए भी तैयारी करनी पड़ती है। चाहे वह अपने जीवन की अन्तिम घडिय़ों की हो, चाहे सृष्टिचक्र की अन्तिम घडिय़ों की हो। लेकिन यह बात सब क्यों भूल जाते हैं? क्योंकि हम भ्रमित हो जाते हैं। अगर हमें सदा याद रहे कि हमें शरीर छोडऩा है तो ऐसा कोई भी कर्म नहीं करेंगे जिससे पाप बन जाए। ऐसा नहीं समझो कि मुझे पता चल जाए कि मैं उस दिन मरने वाला हूँ तो मैं अभी से कुछ भी गलत नहीं करूंगा या फिर अच्छे काम करूंगा। अन्तिम घड़ी के लिए इन्तज़ार करना, यह बड़ा भ्रम है, अपने आपको धोखा देना है क्योंकि हमारा श्वास कब बन्द हो जायेगा क्या पता? इसलिए हमें क्या करना है? बाबा(परमात्मा) ने जो करने के लिए कहा है, हमें वही करना है। उसके लिए कुछ ईश्वरीय नियम हैं, उनका अनुसरण करना है।

बदलें… तो क्या बदलें…!
बाबा कहते, सर्व देहधारियों की याद को भूल एक मुझ निराकार पिता को याद करो। अपनी देह को भी याद नहीं करो। भगवान को सब सौंप दो तो आप सर्व रूप से स्वतन्त्र होंगे। विकारों से स्वतंत्र होंगे, बुराइयों से स्वतंत्र होंगे, व्यर्थ से स्वतंत्र होंगे। मनमानी करना, व्यसनों में लिप्त रहना, पाप करना यह कोई स्वतंत्रता नहीं है। यह स्वतंत्रता के नाम पर पाप करने की स्वच्छन्दता है। बाबा बार-बार कहते हैं, नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनो। क्योंकि और सारे विकार भी आते हैं ‘मोह’ के कारण। अगर आप अपनी उन्नति चाहते हैं तो सबसे पहले ”मोह” पर जीत पाओ। मोह केवल व्यक्ति से नहीं है, लेकिन वस्तु से अथवा किसी वैभव, साधन या खाने-पीने की चीज़ों या अपने विचारों से भी हो सकता है। मोह यहॉँ तक खत्म हो कि उसकी राख भी न रहे। यह हमारी अन्तिम परीक्षा होगी। बाबा कहते, किसी की भी ग्लानि न करो। किसी के लिए बुरा नहीं सोचो, बुरा नहीं करो। जहाँ तक हो सके सबको सन्तुष्ट करो ताकि उनसे दुआयें मिल सकें। दुआयें लेना, यह जीवन में बहुत बड़ी उपलब्धि है। प्रतिदिन अपनी उन्नति का चार्ट चेक करो। स्वयं का जज बनो, स्वयं का डॉक्टर बनो, स्वयं का टीचर बनो। देखो, क्या मैं दिन-प्रतिदिन प्रगति कर रहा हँू? सदा मन में यह उमंग रहना चाहिए कि मुझे आगे बढऩा है।

आपको मालूम है… फिर भी…
बाबा ने कहा है कि आप बच्चों में भी कोई होंगे अन्तिम विनाश देखने के लिए। आप भी जानते होंगे कि विनाश का समय कैसा होगा! उस समय साम्प्रदायिक दंगे होंगे, लोग धर्म के नाम पर आपस में लड़ेंगे। जब विनाश होगा तब जीने के लिए जो ज़रूरी चीज़ें चाहिए, वे भी नहीं होंगी। उस समय यातायात, सूचना प्रौद्योगिकी ठप्प हो जायेंगी तो दुनिया की क्या परिस्थिति होगी आप अन्दाज़ा लगा सकते हैं! उस समय परीक्षा किस रूप में आयेगी? भय, असुरक्षा और दुश्चिन्ता।
तब आपको मन एकाग्र करना होगा, स्थिर करना होगा। योगयुक्त हो रहना पड़ेगा, विदेह अवस्था में, आनंद की स्थिति में रहना पड़ेगा। ये सब तब सम्भव होंगे जब आपको इन अवस्थाओं में रहने का अभ्यास बहुत काल का होगा। हमारी अन्त की स्थिति जैसी होगी वैसी ही हमारी गति होगी। हमारा भविष्य हमारे अन्त की मति पर आधारित होगा।

…ऐसे में निभाना होगा अपना दायित्व
बाबा ने यह भी कहा है कि विनाश के समय पाँच विकार और पाँच तत्व भी वार करेंगे। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार ये भी परेशान करेंगे। वे भी बड़े रूप में आयेंगे। उसके बाद आसुरी शक्तियाँ खत्म हो जायेंगी। लेकिन उससे पहले विकार और विकारी भी आपको परेशान करेंगे, आपका पीछा करेंगे परन्तु अगर आप आत्म-अभिमानी होंगे और परमात्म-अभिमानी होंगे तो उनको आपका प्रक ाश रूप दिखाई पड़ेगा, आप देवी रूप में दिखायी देंगी, फरिश्ते रूप में दिखायी देंगी। आप उस समय ऐसी शक्तिशाली अवस्था में होंगे तो वे आप के पास आ नहीं पायेंगे। उस समय आपको अपने योग बल से, योग अवस्था से ही मदद मिलेगी। उस समय प्राकृतिक प्रकोप होंगे। बाढ़ आयेगी, भूकम्प आयेगा। उस समय जल के प्राणी भी बाहर आ जायेंगे। तब लोग घर के बाहर भी रह नहीं पायेंगे। ऐसे समय जो योग में रहेंगे, बाबा के साथ का अनुभव करते रहेंगे उनको जानवर आदि से कुछ भी हानि नहीं होगी। इसलिए बाबा कहते, बच्चे फरिश्ता बनो, अशरीरी बनो, देही अभिमानी बनो। अगर हम अभी से तैयारी करेंगे तो उस अन्तिम परीक्षा का सामना कर पायेंगे और पास हो जायेंगे।

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