जिस दिन मोह खत्म… उस दिन रावण खत्म…

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रावण कोई असुर नहीं था- ब्राह्मण था, याद रखना। लेकिन जिन ब्राह्मणों में अहंकार आ जाता है अपनी विशेषताओं को लेकर, वही रावण है

पिछले अंक में आपने पढ़ा कि कैसे हनुमान को उनकी शक्तियों की स्मृति दिलाई, जो विस्मृत हो चुकी थीं। जब स्मृति आई तब जाकर उनके अन्दर श्री राम की मदद करने की हिम्मत आई। तो समुद्र लांघने का काम कर देता है। फिर जैसे ही समुद्र लांघने जाता है तो फिर एक माया खड़ी हो जाती है। ब्राह्मण जीवन में फिर एक माया आती है। कौन-सी? महावीर के सामने भी माया आती है कौन-सी? ‘सुरसा और सिंहिका’ समुद्र से निकल आई। और कहा कि हमें ब्रह्माजी का वरदान है, और तुम्हें हमारे मुख से गुज़रना होगा, तो उस समय हनुमान ने क्या किया, अपना रूप बहुत सूक्ष्म कर दिया। यानी बाबा जो कहते हैं ‘बालक सो मालिक’। कभी ‘मालिक’ बन जाओ, कभी ‘बालक’। बालक बनकर छोटा हो जाओ, आज्ञाकारी बन चलो। महावीर का ये लक्षण ‘बैलेन्स’ बहुत अच्छा है।
तब कब निकल कर आ गया पता ही नहीं चला, और उस माया के ऊपर भी विजय प्राप्त कर ली। लेकिन लंका पहुँचा तो वहाँ लंकिनी थी। वहाँ छोटा रूप लेकर जा रहा था तो कहा कि अरे तू कहाँ जा रहा है? तो वहाँ उसने बड़ा रूप कर दिया, और इतना बड़ा कर दिया जो उस लंकिनी को समाप्त। तो कहाँ बड़ा बनना है और कहाँ छोटा बनना है? ये
बैलेन्स भी जीवन के अन्दर बहुत ज़रूरी है। और जैसे ही ये बैलेन्स रखा तब जाकर रावण के दरबार में पहुंच गया और पहुँचने के बाद रावण ने उसका अपमान किया, उसको आसन नहीं दिया, तो उसने अपना आसन इतना ऊँचा कर दिया, रावण से भी ऊँचा। यानी लोग आपका अपमान करेंगे, ब्राह्मण जीवन में रावण अपमान करवाता रहेगा आपका लेकिन ऐसे समय पर अपने स्वमान में स्थित हो जाओ। और अपने स्वमान को इतना ऊँचा कर दो, ये बहुत ज़रूरी है। लेकिन स्वमान के साथ-साथ दूसरी दो चीज़ें ज़रूरी हैं — जो अंगद आता है और अंगद माना दृढ़ संकल्पधारी और दूसरा निश्चय बुद्धि। पैर रख दिया और रावण को कहा हिलाकर दिखा! अगर मेरा पैर हिल गया तो माता सीता तेरी। निश्चबुद्धि, हिलेगा नहीं राम मेरे साथ है। सारे बन्दर परेशान हो गये हैं, ये क्या कह दिया अंगद ने? अगर हिला दिया
तो? रावण हँसने लगा कि मैं तो क्या मेरे महारथी ही तेरे पैर को हिला देंगे। हिलाने की कोशिश की हिला नहीं, तब रावण स्वयं आता है हिलाने के लिए, पैर कौन-सा? बुद्धि रूपी पैर को हिलाने का प्रयत्न रावण करता है। ‘ निश्चयबुद्धि’ जो आत्मा है उनकी बुद्धि को हिलाने का प्रयत्न रावण ज़रूर करेगा, वो रावण है, माया नहीं है। रावण जब पैर हिलाने का प्रयत्न करने गया तो जैसे ही वो आया, उसको लात मार दी और कहा कि पैर पकडऩा है तो श्री राम के पकड़, मेरे नहीं।
तो इसीलिए जीवन में महावीर बनकर आगे चलने के लिये, अनुमान-अभिमान का हनन, दूसरा दृढ़ता की शक्ति और निश्चयबुद्धि बनना आवश्यक है। तभी हर प्रकार के रावण की परीक्षाओं से पार हो सकेंगे और ऐसे निश्चयबुद्धि के बन्दरों ने कहा कि अरे हिला देता तो क्या करता, रावण के महारथी ही। तो कहा पैर रखना मेरा काम, हिलाना और न हिलाना उसका काम। ‘निश्चयबुद्धि’ कि मैंने पैर भी अगर उसके भरोसे रखा है तो एक बल एक भरोसा। उसके भरोसे रखा है तो रावण की भी ताकत नहीं है। रावण तो क्या, बाबा कई बार कहते हैं मुरली में कि रावण का बाप भी आ जाये तो भी हिला न सकें। रावण का बाप कौन है? रावण का बाप कौन है? शिवबाबा। शिवबाबा है। शिवबाबा भी अगर हिलाने का प्रयत्न करें तो भी हिलने वाले नहीं, ऐसे ‘निश्चयबुद्धि’। क्योंकि रावण कोई असुर नहीं था- ब्राह्मण था, याद रखना। लेकिन जिन ब्राह्मणों में अहंकार आ जाता है अपनी विशेषताओं को लेकर, वही रावण है। रावण भी किसकी पूजा करता था? शिवबाबा की। तो वो आत्मायें, हैं अहंकारी लेकिन याद तो शिवबाबा को करती हैं ना? जैसे कहा कि रावण तो क्या रावण का बाप भी आ जाये तो हिला नहीं सकता, इतना निश्चयबुद्धि। तभी रावण को खत्म करने की शक्ति हमारे में आ जायेगी। तो पूरी रामायण ब्राह्मण जीवन है।
फिर रावण को मारना है, तो रावण को मारने की युक्ति क्या है? नाभि में मारो, नहीं तो सिर काटता था दूसरा निकल आता था, इसीलिए विभीषण ने कहा कि नाभि में मारो। तो नाभि कौन-सी है रावण की? रावण की नाभि है क्रमोहञ्ज। स्वयं से जब मोह है तो अहंकारी हो गया। दूसरों सेजब मोह है तो आसक्ति, प्रलोभन के वश है। इसीलिए सभी विकारों की जड़ मोह, तभी गीता के अन्दर भी भगवान ने अर्जुन को कहा कि नष्टोमोहा स्मृतिर्लब्धा। नाभि से ही पोषण मिलता रहता है, आप अभिमान को काटो नहीं, मोह को काटो। मोह जिस दिन खत्म हुआ, रावण मर गया। इसीलिए रावण की नाभि में मारना माना नष्टोमोहा स्मृतिर्लब्धा।
यही अठारह अध्याय गीता का सार और यही रामायण का भी सार, नष्टोमोहा बनो। हम ब्राह्मणों के अन्दर अभी भी थोड़ा-थोड़ा अंश रावण का है, इसलिए उसको समाप्त करना ज़रूरी है।

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