न्यायसंगत निर्णय

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अवध देश के एक राजा थे जो बहुत दयालु एवं न्यायप्रिय थे। जिसकी ख्याति अन्य राज्यों में भी फैली हुई थी। उनके न्याय के लिए सभी उनकी प्रशंसा करते थे। प्रजा को भी अपने राजा पर नाज़ था। न्यायसंगत राजा होता है तो प्रजा में खुशहाली होती है और प्रजा भी सद्मार्ग पर ही रहती है।
एक दिन की घटना थी, राजा के पुत्र ने एक गंभीर अपराध किया जिसपर प्रजा में बात होने लगी कि अब राजा क्या निर्णय लेंगे। लेकिन राजा ने अपने पुत्र को गंभीर अपराध की कड़ी सजा दी। पर इसके बाद भी राजा के लिए अपशब्द सुनाई देने लगे। प्रजा में काना-फूसी शुरू हो गई, यह देख राजा अत्यंत दु:खी थे। एक दिन उन्होंने अपने विद्वान मंत्री से इस विषय पर बात की, कि हे महामंत्री! हमने तो न्यायसंगत ही निर्णय लिया पर इस अपयश का क्या कारण हो सकता है?
मंत्री ने सरलता से उत्तर दिया – हे महाराज जब आसमान में बदली छाती है तो एक छोटा-सा बादल भी सूर्य के तेज को कम कर देता है लेकिन बादल छटते ही सूर्य अपने तेज के साथ पुन: निकलता है। उससे उसकी ख्याति में कोई प्रभाव नहीं पड़ता। आपके बेटे से बड़ा अपराध हुआ है लेकिन आपका निर्णय न्यायसंगत है इसलिए आपके यश में इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यह सुनकर राजा को संतुष्टि का अनुभव हुआ और वे अपने कार्यों में लग गए।

शिक्षा : जब इंसान धर्म के मार्ग पर न्याय संगत निर्णय लेता है तो उसे डरना नहीं चाहिए। और न ही किसी तरह के अपयश की चिंता में पडऩा चाहिए।

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