पर्व और पर्व की महिमा मंडन करने वाले शास्त्रज्ञ, विद्वान, विशेषज्ञ सभी अपने मानसिकता के आधार से उस पर्व की महत्ता को बयां करते हैं। उसी में एक पर्व जो अति विशेष और मानव कल्याण हेतु कार्य करता है, वो महाशिवरात्रि है। उसकी व्याख्या सभी के मुखारविंद से अलग-अलग देखने में आई। कोई इस पर्व को शिव की शादी के रूप में, कोई इसको पूजन के रूप में, या कोई किसी अन्य साक्ष्य के आधार से देखते हैं। लेकिन इस पर्व के अंतिम अक्षर में रात्रि शब्द जोड़ा गया है जिसका सीधा-सा अर्थ है कि परमात्मा जो प्रकाश स्वरूप है उसको रात्रि के साथ जोड़कर देखना ज़रूर अंधकार को दूर करने के परिप्रेक्ष्य में ही होगा। शिव का शाब्दिक अर्थ भी प्रकाश के साथ जोड़ा जाता है। बनारस में एक मंदिर प्रचलित है, काशी विश्वनाथ। काशी का अर्थ होता है प्रकाश की नगरी। और एक उक्ति प्रचलित है, शिव काशी विश्वनाथ गंगा। इसमें भी शिव है, काशी शब्द है जिसको प्रकाश के साथ जोड़ा जाता है। ऐसे महाशिवरात्रि परमात्मा शिव के दिव्य अवतरण का या उसके दिव्य जन्म का यादगार है।
आप इसको इस तरह से देखिये कि भक्ति बहुत समय से हम कर रहे हैं, लेकिन जब भी कोई समस्या आती है तो हमारी नज़र ऊपर की तरफ जाती है, कहते हैं कि हे भगवान ज़रा ध्यान रखना, हमारा साथ देना, अब आप ही हमारा सहारा हो, दोनों हाथ उठाकर हम कहते हैं, तो दोनों हाथ उठाकर जिसको आप याद कर रहे हैं, और बैठे आप मंदिर में हैं! हाथ आपका ऊपर, चेहरा भी ऊपर, आँखें भी ऊपर की तरफ देख रही हैं, तो किसकी तलाश कर रहे हैं! ज़रूर भले अप्रत्यक्ष रूप से कहें, लेकिन प्रत्यक्ष रूप से ये प्रमाणित है कि ज़रूर हम परमात्मा को निहारने की, उसको समझने की, उसको बताने की कोशिश कर रहे हैं, और ये पक्का है कि वो यहां तो नहीं है। कितनी उस निराकार परमात्मा की बात हम कर रहे हैं, क्योंकि सारे सहारे जब छूट जाते हैं तब परमात्मा की याद आती है और हम अपने आपको उससे जोडऩे की कोशिश करते हैं। बदलाव का मात्र एक माध्यम है, और वो है परमात्मा। उसी परमात्मा को शिव निराकार कहते हैं और जब इस दुनिया में पापाचार, भ्रष्टाचार अपनीसीमायें पार कर लेता है, उस समय परमात्मा का दिव्य अवतरण इस सृष्टि पर होता है। ये वही समय है जिसमें हम सबको शक्ति के लिए, सहारे के लिए उस परमात्मा की आवश्यकता है, क्योंकि वो निराकार है इसलिए वो अपना कार्य एक मानवीय तन के आधार से कर रहा है, जिसको वो खुद ही नाम देता है प्रजापिता ब्रह्मा। और प्रजापिता ब्रह्मा के मानवीय तन से प्रकट होकर वो विश्व नव निर्माण की संकल्पना को साकार रूप देता है। और उसी साकार माध्यम प्रजापिता ब्रह्मा के द्वारा हम सभी आत्माओं को चुनता है और अपने ज्ञान, गुण और शक्तियों को जो उसके अंदर हैं वो धारण करने के लिए कहता है। ये वही सृष्टि का अंतिम छोर है, अंतिम समय है जब परमपिता परमात्मा शिव हम सभी को विकारों से छुड़ाकर मनुष्य से देवता बनाने का कार्य कर रहे हैं। और उस कार्य की आधारशिला है मनुष्य का स्व परिवर्तन और परमात्मा के दिव्य शक्तियों और गुणों की धारणा। तो हे मानव, इस सृष्टि परिवर्तन की श्रृंखला में अपना बहुमूल्य योगदान देने के लिए खड़े हो जायें, क्योंकि ये वक्त जा रहा है।